आक्रोशित किसान अब आंदोलन की राह पर,सरकार से मदद की उम्मीद हो रही धूमिल
रायपुर ! कभी टमाटर की खेती से लाल होने वाले किसानों के चेहरो से मुस्कुराहट धीरे-धीरे छिनते जा रही है। किसानों के चेहरे मायूस नजर आ रहे हैं और उन्हें अपने कर्ज किसी तरह उतारने की चिंता सता रही है।

धमधा के टमाटर के खेत से लाइव शम्भाजी राव घाटगे, आर.पी. दुबे, विद्या भूषण ताम्रकार
रायपुर ! कभी टमाटर की खेती से लाल होने वाले किसानों के चेहरो से मुस्कुराहट धीरे-धीरे छिनते जा रही है। किसानों के चेहरे मायूस नजर आ रहे हैं और उन्हें अपने कर्ज किसी तरह उतारने की चिंता सता रही है। सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे किसान अब आंदोलन करने बाध्य हो रहे हैं। सब्जी उत्पादक कृषक दो जनवरी को राजधानी में जमा होकर प्रदर्शन करेंगे इस दौरान वे अपने उत्पाद लोगों को फ्री में बांटेंगे।
‘‘एक बार हमारी बात सुन लो’’ नौकरी की इच्छा को छोडक़र वापिस खेती के लिए लौटे किसान पुत्र व इलेक्ट्रीकल इंजीनियर तारकेश्वर कश्यप का स्वप्न अंधेरे में समा गया है टमाटर की खेती से परिवार व खुद को प्रगतिशील किसान बनाने का सपना लेकर गांव कन्हारपुरी पहुंचा युवा इंजीनियर फिर से शहरी जिंदगी की तरफ लौटने का मन बना रहा है। ताकि परिवार और बुजुर्ग पिता का स्वप्न पूरा कर सके। चकाचौंध की दुनिया से हटकर गांव के विकास की सोच रखने वाला युवा इंजीनियर किसान काफी हलकान-परेशान है।
देशबन्धु की टीम उंचे-नीचे पगडंडी नुमा रास्ते से गांव कन्हारपुरी पहुंची तो तारकेश्वर कश्यप पिता दिनेश कश्यप (25 वर्ष) के साथ खेत में फसल को बचाने की मुहिम में जुटा हुआ था। हमने बातचीत की तो उसने बताया कि वह खेती से खुद को आत्मनिर्भर बनाने व परिवार का सहारा बनने के लिए दो वर्ष पहले गांव लौटा था। तब टमाटर की खेती से किसान काफी खुश थे। लेकिन इस साल उन तमाम खुशियों में पानी फिर गया। अब तो नौबत यह है कि यह सोचना पड़ रहा है कि खेती में बने रहे या नहीं। वह कहता है कि कालाधन ढूढऩे वाली सरकार कच्चा धन को खत्म कर रही है। उसने बताया कि टमाटर की खेती में रेट नहीं तो कुछ नहीं। वह बताता है कि नए आप्शन के लिए भटकना पड़ रहा है।
वहीं राज्य सरकार के कृषि कर्मण पुरस्कार से पुरस्कृत किसान जालम सिंग पटेल (ग्राम दानी फोकड़ी) बताते है कि वर्ष 2010-11 में राज्योत्सव कार्यक्रम में यह पुरस्कार उन्हें दिया गया। उस समय प्रदेश के मुखिया ने कहा कि कृषि उन्नत कर आत्म निर्भर बनो। आज उसी मुखिया की सरकार निवाला छिन रही है। वे कहते हैं कि किसानों को 54 एकड़ में कृषि करने का अवसर दिया गया मगर सिंचाई पंप पर न मिलने वाली सब्सिडी ने कमर तोड़ दी। सरकार एक किसान को 1 पंप में सब्सिडी प्रदान कर रही है। जबकि 54 एकड़ सिंचाई में 3 से 4 पंप लगते है। 3 पंप का अनाप-शनाप बिल वसूला जा रहा है। जबकि साढ़े सात हजार यूनिट बिजली मुफ्त में देने का आश्वासन सरकार ने दिया है। सरप्लस बिजली वाले राज्य के किसान को बिजली नहीं मिल रही है। इससे दुखद और क्या हो सकता है। यहां तक कि अटल ज्योति के नाम से घर रोशन करने की बात कही गई। यह योजना केवल दुर्ग जिले के लिए लाई गई। जहां शाम 5 बजे से रात 11 बजे तक कटौती चल रही है। ऐसे में खेत-खलिहान की सुरक्षा में जुटे किसान किस तरह से सुरक्षित रह पाएगा। इसमें कटौती में ओव्हर लोड को कारण बताया जा रहा है। जबकि ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री अब जनरेटर से कृषि करने की सलाह दे रहे हैं।
टमाटर कैशलेस हो गया- किसान गजानंद यादव परसुली व लोधी पटेल, पोखराज कश्यप-दिनेश कश्यप कहते हंै कि मोदी सरकार केशलेस होने की बात कर रही है। जबकि किसान टमाटर की फसल में बिकवाली नहीं होने के चलते पहले ही केशलेस हो चुका है। वे बताते हैं कि परिवार के गुजर-बसर के लिए धान को बेचना पड़ रहा है। पैसे की कमी से घर से शांति छिन गई हैं। अब हर छोटी-बड़ी बात पर कलह हो रही है।
सोसायटी में बुजुर्गों से भिखारी जैसा व्यवहार - किसान बताते हैं कि किसानों को सोसायटी से पैसा नहीं मिल रहा है। किसानों को लगातार 6 दिन लाईन लगने के बाद भी पैसा नहीं मिल रहा है। खाते में पैसा है फिर भी नहीं मिल रहा है। सोसाइटी के कर्मचारी बुजुर्ग किसानों से काफी गलत व्यवहार कर रहे हैं।
घर से बाजार तक छाई शून्यता-धमधा के किसान कहते हैं कि वे दुकानदारों का कर्ज नहीं अदा कर पा रहे है। खाद्-बीज खरीदी के लिए पैसा नहीं बचा है। घर से लेकर बाजार तक हर तरफ शून्यता है।
किसान शेरसिंह (बसनी) का कहना है कि पिछले साल टमाटर की फसल को 500 से 700 रूपए प्रति कैरेट बेचा था। इस वर्ष 5 से 7 रूपए प्रति कैरेट खरीददार मांग रहे है जिससे लागत तो दूर-मजदूरी निकाल पाना असंभव हो गया है। सभी किसान काफी कर्ज में डुब चुके है।
फसल को टे्रक्टर से रौंदते देख दिल रोता है- ट्रेक्टर चालक- बलदाउ एवं किसान हीरालाल बताते है कि बाड़ी में टमाटर की फसल को टे्रक्टर से रौंदकर खत्म करते वक्त दिल रोता है। लेकिन कोई विकल्प नहीं बचा है वे बताते है कि फसल रौंदने से कम से कम बीज तो मिल जाएगा जो खेत में डालकर नई फसल लेने में शायद काम आ जाए।
प्रभावित किसान
1. दालू साहू 30 एकड़ कर्ज- 10 लाख
2. संतोष राणा 15 एकड़ कर्ज- 10 लाख
3. जालम सिंह पटेल 40 एकड़ कर्ज- 20 लाख
4. ठाकुर राम साहू (गोबणेगांव) 5 एकड़ 4 लाख
5. ढालसिंग पटेल (कोनका) 25 एकड़ 20 लाख
6. शिव कुमार वर्मा 25 एकड़ 4 लाख
ग्राम घोटवानी
7. सेवाराम साहू 5 एकड़ 4 लाख
परसबोड़
8. शेरसिंह (बसनी)
9. बलराम वर्मा बरहापुर 25 एकड़ 10-15 लाख
10. श्रीकांत वर्मा बिरझापुर 40 एकड़ 10-15 लाख
11. पीलाराम कश्यप कन्हारपुरी 10 एकड़
12. कमलेश कश्यप 10 एकड़


