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इसरो के कैनवास में रमन सिंह के रंग,मिशन में छत्तीसगढ़ का कोई न कोई वैज्ञानिक जरूर शामिल

रायपुर ! देश के सबसे बड़े अंतरिक्ष केंद्र इसरो को उस 'रो' में खड़ा करने में छत्तीसगढ़ के युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इसरो के कैनवास में रमन सिंह के रंग,मिशन में छत्तीसगढ़ का कोई न कोई वैज्ञानिक जरूर शामिल
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रायपुर ! देश के सबसे बड़े अंतरिक्ष केंद्र इसरो को उस 'रो' में खड़ा करने में छत्तीसगढ़ के युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि प्रदेश के युवाओं का रुझान लगातार इसरो की ओर बढ़ रहा है। इन सब के पीछे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सोच काम कर रही है।

इसरो के कैनवास में डॉ. रमन अपने मन के रंग भर रहे हैं। यही कारण है कि चाहे वो मंगल मिशन हो या फिर 104 उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करने का काम, लगभग हर काम में छत्तीसगढ़ का कोई न कोई वैज्ञानिक जरूर शामिल रहता है।

प्रदेश की राजधानी में डॉ. रमन सिंह ने विश्वविद्यालयों की पूरी एक श्रृंखला स्थापित कर रखी है। ये उसी का नतीजा है कि प्रदेश का युवा तकनीक से लेकर हरेक क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रहा है।

रायपुर विकास प्राधिकरण की तकनीकी शाखा के सहायक अधीक्षक भास्कर दीवान की इंजीनियर बेटी प्रियंका दीवान का चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) बंगलुरु में जूनियर साइंटिस्ट के पद पर हुआ है। इसरो ने सफल अभ्यर्थियों की सूची जारी की, जिसमें प्रियंका का नाम 170वें क्रम पर है।

प्रियंका दीवान शुरू से ही मेधावी छात्रा रही हैं। बारहवीं की परीक्षा में 80 फीसदी और बीई में 81 फीसदी अंक लाने वाली प्रियंका ने इलेक्ट्रॉनिक एंड टेली कम्युनिकेशन विषय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।

104 उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करने वाली महत्वाकांक्षी योजना की सफलता में छत्तीसगढ़ के अमन वहीद खान और विकास अग्रवाल का योगदान बताया जाता है। अमन के पिता छत्तीसगढ़ पुलिस में सब-इंसपेक्टर थे और वर्ष 2009 में राज्य के बस्तर इलाके में माओवादी छापामारों के साथ हुई मुठभेड़ में मारे गए थे।

अमन की मां ने अपने बेटे का लालन-पालन बड़ी विषम परिस्थितियों में किया। उसका एक ही सपना था कि वह ऐसा क्या करे कि उसके बेटे को देखकर एसपी साहब खड़े हो जाएं।

विकास अग्रवाल के पिता चाहते थे कि बेटा आगे की पढ़ाई न कर छत्तीसगढ़ के कोरबा में पारिवारिक किराने की दुकान संभाले। यही वजह थी कि विकास आईआईटी की प्रवेश परीक्षा नहीं दे पाए। पिछले साल फरवरी की 16 तारीख को जब विकास ने इसरो की परीक्षा पास की। जो सपना उन्होंने बचपन से देखा था, वो अब पूरा होने जा रहा था।

अमन इसरो में मौसम वैज्ञानिक हैं। उपग्रह लांच में उनकी वैसी ही भूमिका थी जैसी विकास अग्रवाल की। विकास रॉकेट के उस पुर्जे की देख रेख कर रहे थे, जिसे क्वहीट शील्ड कहा जाता है।

विकास की कहानी कुछ अलग है, क्योंकि वो एक ऐसे परिवार में पैदा हुए जहां व्यवसाय ही सबसे बड़ा माना जाता रहा है। उनके घर में ही उनकी पढ़ाई का विरोध होता रहा। यही कारण है कि उन्हें अपने पिता की किराने की दुकान संभालनी पड़ी। उन्होंने कोरबा के स्थानीय स्कूल से पढ़ाई की फिर स्थानीय कालेज से बीएससी किया।

विकास ने बताया, "मेरे पापा चाहते थे कि मैं बीकॉम करूं। मैंने कोरबा के कालेज से ही इंजीनियरिंग की, मेरा अटेंडेंस हमेशा कम रहता था क्योंकि मुझे दुकान पर बैठना पड़ता था। फिर भी मैंने टॉप किया। मैं स्कूल से लेकर कालेज तक लगातार टॉप करता रहा। पापा बीमार भी रहते थे और वो मुझे कहीं बाहर नहीं जाने देना चाहते थे। मगर मेरी मम्मी को हमेशा लगता था कि मुझे आईआईटी जाना चाहिए।"

इसी तरह विनोद गुप्ता को मंगल मिशन में यान का तापमान कंट्रोल करने वाली टीम का हिस्सा बनाया गया है।

विनोद आईआरएनएसएस के थर्मल सिस्टम समूह में भी शामिल थे। साथ ही उन्हें इसरो के अगले प्रोजेक्ट 'आदित्य' में भी शामिल किया गया है।

विनोद के पिता चाहते थे कि वह बर्तन बेचकर रोजी-रोटी का इंतजाम करें, लेकिन उन्होंने अपने मेहनत के दम पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसरो में वैज्ञानिक बनकर मंगल मिशन जैसे बड़े प्रोजेक्ट में हिस्सेदार बने।

विनोद का जन्म बिलासपुर के रतनपुर में हुआ था। उनके पिता सुरेश गुप्ता बर्तन बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। पिता चाहते थे कि बेटा भी बर्तन ही बेचे। काफी मान-मनौव्वल और जिद्द के बाद पिता ने विनोद को पढ़ाई करने की इजाजत दी।

पिता चाहते थे विनोद बर्तन बेचें, लेकिन वह वैज्ञानिक बन इसरो के 'मिशन मार्स' का हिस्सा बने। अपने विकास में गरीबी को बाधा मानने वालों के लिए इसरो के वैज्ञानिक विनोद गुप्ता का जीवन संघर्ष प्रेरणादायी बन सकता है।

विनोद के पिता चाहते थे कि बेटा बर्तन बेचकर रोजी-रोटी का इंतजाम करे, लेकिन विनोद ने अपनी मेहनत के दम पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इसरो में वैज्ञानिक बनकर मंगल मिशन जैसे बड़े प्रोजेक्ट में हिस्सेदार बने।

विनोद ने हिंदी माध्यम से स्कूली पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने आईआईटी-रूड़की से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक करने के बाद इसरो से जुड़ गए। उन्हें थर्मल सिस्टम में विशेषज्ञता है।

जिस छत्तीसगढ़ के बस्तर में बंदूक और बारूद से माओवादी तबाही का तांडव कर रहे हैं, उसी राज्य के युवा मुख्यमंत्री के कुशल मार्गदर्शन में इसरो जैसे संगठनों में वैज्ञानिक बनकर अपना करियर बना रहे हैं। माओवाद को इससे करारा जवाब और क्या हो सकता है?


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