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बारिश शुरू होते ही आती है वाटर हार्वेस्टिंग की याद

गर्मी सीजन में भीषण पेयजल की किल्लत से जूझने के वावजूद भी लोगों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति रूचि नहीं

बारिश शुरू होते ही आती है वाटर हार्वेस्टिंग की याद
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सरायपाली। गर्मी सीजन में भीषण पेयजल की किल्लत से जूझने के वावजूद भी लोगों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति रूचि नहीं है. इन दिनों सैकड़ों की तादाद में मकान बन रहे हैं यहां तक की शासकीय भवन भी बनाए जा रहे हैं, लेकिन शासकीय भवनों के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग की जो अनिवार्यता है उसका पालन नहीं हो रहा है. लोगों को तो वॉटर हार्वेस्टिंग का नाम भी नहीं मालूम, लेकिन शासकीय भवनों के निर्माण के समय में भी इसे भुला चुके हैं.

जल संरक्षण के लिए शासन के द्वारा सभी घरों के लिए रैन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को अपनाने की सलाह दी गई है. शासकीय मकानों के लिए तो यह अनिवार्य किया गया है ,परंतु शासन के इस निर्देश का पालन नहीं के बराबर हो रहा है.वहीं आम लोगों में भी इसके प्रति रूचि जागृत नहीं हो रही है. अभी शुरूवाती दौर के बारिश के बावजूद भी कई गांवों में पेयजल की किल्लत दूर नहीं हो सकी है. लगातार जलस्तर गहराते जाने के कारण बरसात शुरू होने के बाद भी स्थिति कुछ दिनों तक गर्मी जैसी ही बने रहने की उम्मीद है.

बरसात का पानी आम तौर पर बहकर चला जाता है. भविष्य में होने वाले जल संकट को देखते हुए नए भवनों के लिए रैन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को अनिवार्यतरू अपनाने की सलाह दी गई है. परंतु इसका पालन एक प्रतिशत भी नहीं हो रहा है. रैन वाटर हार्वेस्टिंग एक ऐसी तकनीक है जिसे अपनाकर जल संकट से आसानी से बचा जा सकता है. इसके तहत बरसात के पानी को घर की छत में इका किया जाता है. तत्पश्चात उस पानी को पाइप के माध्यम से जमीन में बनाए गड्ढे में डाला जाता है. जिन भवनों में बोरवेल्स के माध्यम से जल का उपयोग किया जाता है. उसमें भी इस तकनीक का उपयोग करके छत के पानी को पाईप के माध्यम से बोरवेल्स के अंदर तक पहुंचाया जा सकता है. इससे जल स्तर बना रहता है. यह तकनीक कम खर्च में आसानी से किसी भी व्यक्ति के द्वारा अपनाया जा सकता है. परंतु जागरूकता की कमी की वजह से लोगों में इस योजना के प्रति आकर्षण नहीं देखा जा रहा है.

वाटर हार्वेस्टिंग के प्रति आम लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता- क्षेत्र के कई गांवों में पेयजल का संकट गहराता जा रहा है. पूर्व में जल स्तर जो कि 100-150 मीटर नीचे तक रहता था,वह अब 500 मीटर या उससे अधिक तक भी चला गया है. पानी के मनमाने दोहन की वजह से तालाब, बांध आदि को भी बारिश के पानी का इंतजार है. यदि इसका प्रचार-प्रसार एवं इसके लाभ को ठीक ढंग से बताया जाए तो निजी स्तर पर बनने वाले बड़े-बड़े भवनों में भी अपनाया जा सकता है.


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