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नये गुल खिलाएगी राहुल की अमेरिका यात्रा

करीब तीन माह पहले इंग्लैंड के प्रसिद्ध कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिये गये भाषण से उठा तूफान अभी पूरी तरह से शांत भी नहीं हुआ है कि राहुल गांधी अब अमेरिका पहुंच गये हैं

नये गुल खिलाएगी राहुल की अमेरिका यात्रा
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करीब तीन माह पहले इंग्लैंड के प्रसिद्ध कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिये गये भाषण से उठा तूफान अभी पूरी तरह से शांत भी नहीं हुआ है कि राहुल गांधी अब अमेरिका पहुंच गये हैं। वहां बुधवार से उनके कई कार्यक्रम तय हैं जो ज्यादातर भाषण, संवाद एवं मेल-मुलाकात के हैं। देश के भीतर उत्पन्न जिन परिस्थितियों में और कतिपय घटनाक्रमों के पश्चात राहुल का उस देश में जाना हो रहा है, तय है कि वह नये गुल खिलाएगा। वह इसलिए कि हाल ही में भारत में जो कुछ घटा है, उससे पहले से ही यहां और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में देश को लेकर अनेकानेक विवाद उठ खड़े हुए हैं। राहुल के कैंब्रिज में दिये गये भाषण एवं वहां प्रेस से बातचीत आदि के दौरान भारत सरकार और उसे संचालित करने वाली भारतीय जनता पार्टी के कार्यकलाप व विचारों को लेकर जैसे सवाल उठ खड़े हुए हैं, उसके कारण तय है कि जब तक राहुल भारत लौटते हैं वे कई नये मुद्दे खड़े कर चुके होंगे जिनके व्यापक प्रभाव भावी सियासत पर पड़ेंगे।

बात कुछ यहां से शुरू की जाये कि पिछले साल सितंबर के पहले सप्ताह से जब राहुल ने लगभग 3600 किलोमीटर की ऐतिहासिक 'भारत जोड़ो यात्रा' पूरी की थी तो उससे एक तरह से राजनीति का पूरा रंग व तासीर ही बदल गई है। दक्षिण के कन्याकुमारी से निकले इस पैदल मार्च का समापन जब उनके द्वारा कश्मीर के श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराकर किया गया, देश का राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक विमर्श एकदम से बदल गया। जिन विषयों पर देश का विपक्ष बात करने से घबराता था, उन पर राहुल ने मुखरता से आवाज बुलन्द की। वे कदम-दर-कदम भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारनामों का कच्चा-चिठ्टा खोलते चले गये।

क्रोनी कैपटलिज़्म को किस तरह से मोदी ने बढ़ावा देकर देश को बदहाल किया, उसकी पोल खोलकर राहुल ने रख दी। उन्होंने मोदी द्वारा अपने पूंजीपति व कारोबारी मित्रों को किस तरह फायदा पहुंचाया, यह भी लोगों के सामने रखा। यात्रा की सफलता ने राहुल की ताकत इस कदर बढ़ाई कि वे यात्रा के तुरन्त बाद लोकसभा के सत्र में पहुंचे और मोदी तथा उनकी शह पाकर बढ़े पूंजीपति गौतम अदानी के रिश्तों को लेकर सवाल पूछ-पूछकर देश-विदेश में तहलका मचा दिया। बौखलाई भाजपा सरकार ने उनके सदन में दिये गये भाषणों को कभी कार्यवाही से निकाल दिया तो कभी उनका माइक ही म्यूट कर दिया जाता रहा।

मार्च के पहले हफ्ते में उन्होंने कैंब्रिज विवि तथा वहां की प्रेस से बातचीत में बतलाया कि कैसे यहां विपक्ष की बात दबाई जाती है तो उसे लेकर भाजपा व सरकार हमलावर हो गई। उन पर अंतरराष्ट्रीय मंच से भारत का अपमान करने का आरोप भी लगाया गया।

उनके खिलाफ गुजरात की एक कोर्ट में लम्बित अवमानना का एक पुराना मामला निकाला गया। आनन-फानन में इस पर फैसला आ गया। उन्हें अधिकतम दो साल की सजा सुना दी गई। उनका पक्ष जाने बगैर ही उनकी न केवल फुर्ती से सांसदी छीन ली गई बल्कि बेहद तत्परता से उनका शासकीय आवास भी खाली करा दिया गया। इतना ही नहीं, पासपोर्ट के बहाने से उनकी इस यात्रा को रोकने की कोशिश भी एक भाजपायी नेता के माध्यम से की गई।

एक ओर यह सब कुछ, तो दूसरी तरफ 13 मई को घोषित कर्नाटक की चुनावी सफलता का सेहरा अपने माथे पर बांधकर वे अब अमेरिका पहुंचे हैं- पिछली यूके यात्रा में अपनी कही गई बातों के प्रमाण लेकर। दुनिया में वे इस बात के स्वयं उदाहरण हैं कि कैसे उनकी आवाज को दबाने की कोशिश मोदी एवं उनकी सरकार ने की है। यह वह समय भी है जब कांग्रेस के नेतृत्व में ही करीब 20 भाजपा विरोधी सियासी दल 2024 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने के लिये लामबन्द हो रहे हैं। इस साल तयशुदा 5 विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की हालत खस्ता है।

भारतीय समय के मुकाबले तकरीबन 11 घंटे पीछे चलने वाले अमेरिका में वहां की बुधवार को गुणवत्तापूर्ण ज्ञान के मामले में कैंब्रिज की तरह ही दशकों से विश्व के प्रथम तीन विश्वविद्यालयों में हमेशा से रहने वाले स्टेनफोर्ड विवि में वे छात्रों के समक्ष वक्तव्य देंगे। इसी दिन वे एक अन्य बैठक में भारतीय उद्योगपतियों के बीच होंगे। सान जोस में एक निजी भोज में वे शामिल होंगे जिसमें करीब एक हजार मेहमान रहेंगे। शनिवार तक उनके विभिन्न कार्यक्रम तय किये गये हैं, जिनमें वाशिंगटन डीसी स्थित हडसन इंस्टीट्यूट में वे सवाल-जवाब वाला सत्र, नेशनल प्रेस क्लब की प्रेस कांफ्रेंस, लगभग 80 अमेरिकी राजनीतिज्ञों के साथ रात्रि भोज, न्यूयॉर्क में नेताओं व आम जनों के बीच बैठक और एक विशाल जनसभा शामिल है। यह भी ध्यान रहे कि 22 जून से मोदी भी अमेरिका की यात्रा करेंगे जहां उन्हें राहुल के छोड़े सवालों के जवाब देने भारी पड़ सकते हैं।


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