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राहुल, तेजस्वी, अखिलेश : नई उम्मीद जगाते लोग

बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) के शिक्षकों की जनरल नालेज की परीक्षा चैनल लेने लगे

राहुल, तेजस्वी, अखिलेश : नई उम्मीद जगाते लोग
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- शकील अख्तर

बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) के शिक्षकों की जनरल नालेज की परीक्षा चैनल लेने लगे। जो मुंह में आए सवाल कर रहे थे और जवाब न दे पाने पर उन्हें अयोग्य साबित कर रहे थे। उनके खुश होने नाचने-गाने के वीडियों डाल रहे थे कि देखिए क्या कर रहे हैं। खुश होना अपराध बता रहे थे। शायद यह कहना चाह रहे थे कि जब इतना कसा जा रहा है तब जनता इतना खुश कैसे हो सकती है।

बिहार में का बा!
नौकरियों की बहार ही बहार बा।
और अपने यूपी में?

यहीं से करबे जा बा। सब मास्टर, मास्टरनियां बन गए। सरकारी नौकरी। पक्की नौकरी। तनखा पचास हजार से ऊपर। यहां तो पेपर लीक हो रहे हैं। पहले आर ओ (रिव्यू आफिसर) के हुए और अब पुलिस के।

यह वह संवाद हैं जो आज उत्तर प्रदेश में घर-घर हो रहे हैं। कितने लोगों ने फार्म खरीदे इसका कोई आकंड़ा अभी उपलब्ध नहीं है। मगर आम तौर पर जितने लोग फार्म खरीदते हैं उसके आधे ही भरते हैं, एलेजिबल ( पात्र) होते हैं। 48 लाख एडमिट कार्ड इशु होने की खबर है। मतलब एक करोड़ युवाओं ने करीब फार्म खरीदे थे। एक फार्म की कीमत 400 रुपए।

जोड़ते रहिए हिसाब की सरकार ने कितने पैसे कमा लिए। और वह भी बेरोजगारों से। और यह तो सरकार की आमदनी है। अभ्यार्थियों (केंडिडेंट) का कितना खर्च हुआ। यह उनके बयान सुनिए। जो आज सोशल मीडिया में पचासों वीडियो के रूप में घूम रहे हैं। संक्षेप में हम बता दें फिर अगले मुद्दे पर चलेंगे कि अपने गांव से आकर शहर में कोचिंग की फीस। कमरे का किराया। खाना, किताबों का खर्चा। और फिर परीक्षा देने के लिए आना जाना।

यह भी खुद ही जोड़ते रहिए, अगर बेरोजगार के दु:ख को समझना है तो। और इसमें यह तथ्य भी याद रखिए कि लड़के-लड़की के मां-बाप भी गरीब हैं। पुलिस कांस्टेबल (सिपाही) के लिए गरीब निम्न मध्यम वर्ग के बच्चे ही जाते हैं और वह परिवार किस तरह अपना पेट काटकर बच्चों को पैसे पहुंचाता है इसे आएगा तो मोदी ही चिल्लाने वाले भक्त शायद ही समझ सकते हैं। मगर जैसा कि एक लड़के का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह कह रहा है कि मैंने दाल फ्राई नहीं खाई। उबली दाल खाकर काम चलाता रहा कि वर्दी पहन कर गांव जाऊंगा। मगर अब क्या करूं?

यह सारी सच्चाइयां और इससे भी ज्यादा कई वीडियो में सोशल मीडिया में चल रही हैं। मगर मुख्यधारा के मीडिया में यह नहीं है। वहां बिहार की कहानियां हैं। तेजस्वी यादव ने दो लाख से ऊपर शिक्षकों को वहां नियुक्त कर दिया। जाहिर है इससे गोदी मीडिया के जंगल राज की सारी धारणा धराशायी हो गई। लालू का लड़का, शिक्षा विभाग उसके दल के पास और बिना एक भी कमी के लाखों टीचरों को नियुक्ति पत्र दे दिया। तहलका मच गया। वीडियो बनाए जाने लगे।

बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) के शिक्षकों की जनरल नालेज की परीक्षा चैनल लेने लगे। जो मुंह में आए सवाल कर रहे थे और जवाब न दे पाने पर उन्हें अयोग्य साबित कर रहे थे। उनके खुश होने नाचने-गाने के वीडियों डाल रहे थे कि देखिए क्या कर रहे हैं। खुश होना अपराध बता रहे थे। शायद यह कहना चाह रहे थे कि जब इतना कसा जा रहा है तब जनता इतना खुश कैसे हो सकती है।

मगर सच यह है कि उन्हें जब बीपीएससी की परीक्षा में कोई कमी नहीं मिली तो शिक्षकों में ढूंढने लगे और इससे भी आगे का सच यह है कि उस समय के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बेरोजगारों को रोजगार देने के इस काम से पूरी मोदी सरकार हिल गई थी। हम केन्द्र में दस साल से सरकार होने के बाद कई राज्यों में डबल इंजन सरकार होने के बाद नौकरी दे नहीं पा रहे या दे नहीं रहे और इस कल के लड़के तेजस्वी ने लाखों नोकरियां दे दीं। और वह भी बिना पेपर लीक हुए। हमारे मित्र मीडिया को कोई कमी नहीं मिली।

नौकरी देने के चक्कर में ही तेजस्वी की नौकरी गई। ऐसे ही लैपटाप बांटकर अखिलेश ने दुश्मन कमाए। जैसे आज केवल बिहार में नहीं देश भर में बिहार में टीचर नियुक्ति की चर्चा हो रही है वैसे ही पहले केवल यूपी में नहीं देश भर में अखिलेश यादव के विद्यार्थियों को लैपटाप बांटने की धूम थी। एक ने छात्रों को पढ़ने के लिए लैपटाप दिए दूसरे ने पढ़ाने के लिए शिक्षक दिए।

मगर मीडिया के लिए यह कभी देश को आगे ले जाने वाली खबरें नहीं थी। वह तो इस भाषण को छापता है टीवी पर डिबेट करता है कि कांग्रेस ने देश के भविष्य के लिए कुछ नहीं किया।

नेहरू ने आईआईटी, एम्स दूसरे उच्च शिक्षण संस्थान बनाए राजीव गांधी ने नवोदय स्कूल जो गांव में होता है और पूरी तरह रेजिडेंशल ( छात्रों को वहीं होस्टल में रखकर, खाने-पीने की व्यवस्था सहित) की बिल्कुल नयी अवधारणा। और फिर यह जो अखिलेश के लैपटाप देने का एकदम आगे का कदम और तेजस्वी के सरकारी स्कूलों को मजबूत करने के लिए पारदर्शिता के साथ योग्य शिक्षकों की नियुक्ति न प्रधानमंत्री मोदी को देश का भविष्य बनाने वाले लगते हैं और न मीडिया को।
उन्हें तो पकौड़े तलने से रोजगार आता है यह देश को विश्व गुरु बनाने की बात लगती है। उन्हें लगता है कि बड़ी-बड़ी बातें बनाने से दुनिया में देश का सम्मान बढ़ गया। नेहरू, इन्दिरा के बड़े-बड़े कामों से देश का नाम नीचे गिरा है।

दरअसल अब लड़ाई बातों की बादशाहत और काम की कर्मवीरता के बीच हो गई है। बेरोजगारी देश की सबसे भयावह समस्या है। मगर भाजपा के लिए और उसके मित्र मीडिया के लिए सबसे बड़ी समस्या देश में भाईचारे का माहौल और रोटी के बारे में सोचना है। दोनों मिलकर नफरत और विभाजन को इस स्तर तक बढ़ा चुके हैं कि किसान जिसे वे खुद अन्नदाता कहते थे अब गुंड़ा, मवाली, खालिस्तानी, देशद्रोही हो गया है और जनता जो अधिकार मांगे वह निकम्मी। इंडिया गेट पर राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया। जन अधिकार पथ नहीं। पहले मीडिया किसी भी समस्या जनता की परेशानी में सरकार से, प्रशासन से सवाल करता था। उसकी अनदेखी, गलतियां बताता था। आज जनता की बताता है। कोविड तक में गलती जनता की बताई जाती रही। जब ज्यादा समस्या आई तो व्यवस्था की बता दी। मगर क्या मजाल है सरकार पर एक ऊंगली भी उठाई हो। उल्टा उसके ताली थाली बजाकर कोरोना को भगाने की दिल खोलकर प्रशंसा की।

वह तो चुनाव हैं। तो यूपी में पुलिस भर्ती की परीक्षा रद्द कर दी। नहीं तो अग्निवीर की भर्ती तो बंद हुई नहीं। देश भर के युवाओं ने उसका विरोध किया। फौज के तमाम जनरलों ने इसे सेना के लिए बेहद खराब योजना बताया। मगर अग्निवीर चालू रही।

यूपी में संख्या बड़ी थी। 48 लाख युवा ने परीक्षा दी। मतलब हर जिले के हजारों लड़के लड़कियां। इतने आक्रोश को भाजपा सहन नहीं कर सकती थी। और उस अवस्था में तो बिल्कुल नहीं जब यहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का समझौता हो गया है। एक और एक मिलकर ग्यारह होने का माहौल बन गया है। अस्सी सीटें हैं यूपी में। जिस और झुक जाएंगी उधर ही सरकार बन जाएगी।

राहुल की यात्रा यूपी में बहुत फलदाई रही। रविवार को यूपी में आखिरी दिन था और इस दिन अखिलेश यादव ने यात्रा में शामिल होकर यात्रा को और चमका दिया।
ये सब भविष्य के चेहरे हैं। राहुल, अखिलेश, तेजस्वी, उद्धव, स्टालिन, हेमंत सोरेन, केजरीवाल, ममता आदि। सबके पास भारत के भविष्य की और युवाओं को आगे ले जाने की परिकल्पना है। योजना है और जिसको भी जब मौका मिला है उसने इसे बताया है। इस बार इस सम्मिलित शक्ति का मुकाबला करना केवल बातों से कैसे संभव होगा देखने का मजेदार मौका मिलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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