मप्र में जमीनी खाक छान रही राहुल की टीम
मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर डेढ़ दशक से बनवास झेल रही कांग्रेस हर हाल में सत्ता में वापसी चाहती है

- संदीप पौराणिक
भोपाल। मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर डेढ़ दशक से बनवास झेल रही कांग्रेस हर हाल में सत्ता में वापसी चाहती है, यही कारण है कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी टीम को राज्य के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय कर रखा है। राहुल की टीम जहां जमीनी खाक छानने में लगी है, वहीं जिले स्तर के नेता अब भी कुंडली मारकर बैठे हैं और पेड़ से आम गिरने का इंतजार कर रहे हैं।
राज्य में कांग्रेस वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से क्या बाहर हुई, उसके बाद पार्टी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक का मनोबल लगातार गिरता गया, क्योंकि चुनाव दर चुनाव सिर्फ हार ही खाते में आई। कई बड़े नेता तो पार्टी को ही छोड़कर चले गए, वहीं गुटबाजी का रोग खत्म होने की बजाय बढ़ता ही गया।
राज्य में राहुल गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के तीन सचिव नियुक्त किए और उन्हें विभिन्न हिस्सों में सक्रिय रहने की जिम्मेदारी सौंपी। वर्षा गायकवाड़ जहां ग्वालियर-चंबल में सक्रिय हैं, वहीं सुधांशु त्रिपाठी बुंदेलखंड-विंध्य क्षेत्र में सक्रिय हैं, वहीं हर्षवर्धन सपकाल महाकौशल क्षेत्र में सक्रियता दिखा रहे हैं।
इन तीनों सचिवों की कार्यशैली पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात तो साफ हो जाती है कि वे जमीनी स्तर पर सक्रिय हैं।
कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, त्रिपाठी अपने क्षेत्र के 10 जिलों के 52 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग 29 स्थानों का पूरी तरह भ्रमण कर चुके है। त्रिपाठी गांव-गांव और विकासखंडों तक पहुंचकर कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद कर रहे हैं और पार्टी की स्थिति तो दूसरी ओर वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार को लेकर जनता के मूड को भी भांप रहे हैं। कार्यकर्ता तक सिर्फ एक ही संदेश पहुंचाने में लगे हैं कि उम्मीदवार कोई भी हो, उन्हें उम्मीदवार नहीं, कांग्रेस को जिताना है।
इसी तरह वर्षा गायकवाड़ और सपकाल पार्टी की ओर से सौंपी गई जिम्मेदारी के मुताबिक, विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करने में लगे हैं। दोनों ही सचिव सभी जिला मुख्यालयों तक पहुंच चुके हैं। वे जिला व विकासखंड स्तर पर बैठकें कर रहे हैं, इसके बाद गोपनीय रिपोर्ट पार्टी हाईकमान को भी भेज रहे हैं। आलम यह है कि इन पदाधिकारियों के दौरों की खबर मीडिया तक को नहीं लग पाती। इसी के चलते कई बार मीडिया को कांग्रेस के लोग ही मनगढ़त खबर परोस देते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि कांग्रेस राज्य में जमीनी हकीकत को जानकर अगर वास्तव में जीतने में सक्षम नेता को ही चुनाव में उतारती है तो नि:संदेह पार्टी को लाभ होगा, मगर कांग्रेस में ऐसा होगा, इसकी संभावना कम ही है।
उन्होंने कहा कि यहां कांग्रेस अब भी गुटों में बंटी है, ऊपरी एकता तो दिखाने की कोशिश हो रही है, मगर वास्तव में एकता नहीं है, हाथ तो मिले दिखते हैं मगर दिल नहीं मिले हैं। यह बात आगे भी नजर आएगी, टिकट बंटवारे में ही उजागर होगी कांग्रेस की वास्तविक एकता।
राज्य में जिले स्तर पर पार्टी की स्थिति पर नजर दौड़ाई जाए तो तस्वीर साफ हो जाती है और गुटबाजी नजर आने लगती है। जो नेता या कार्यकर्ता जिसका समर्थक है, उसके पोस्टर में उसी के नेता की तस्वीर होगी। प्रदेश प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया समितियों के सदस्यों को साफ निर्देश दे चुके हैं कि होर्डिंग, बैनर, पोस्टर में राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कांग्रेस का निशान ही दिखे, नीचे भले कार्यकर्ता अपना नाम लिखा सकता है, मगर उनके निर्देशों का कहीं कोई असर नहीं है।
कांग्रेस की आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए चल रही कोशिशों में सबसे बड़ा रोड़ा चेहरे का घोषित न करना है। मतदाता भ्रम में है कि अगर कांग्रेस जीतती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा, वहीं भाजपा मतदाता को डराने में लगी है कि अगर कांग्रेस जीती तो राज्य का हाल वर्ष 2003 से पहले जैसा हो जाएगा।
इन हालात से भी राहुल की टीम वाकिफ हो रही है और अपने सुझाव राहुल गांधी तक भेजने में लगी है। देखना है कि राहुल की टीम की कोशिशें कितनी रंग लाती है।


