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राजनीति को मानवीय बनाते राहुल

ऐसे वक्त में जब भारतीय राजनीति में नफ़रत और हिंसा का बोलबाला है, राहुल गांधी एक बार फिर से मणिपुर में हैं। यह वही मणिपुर है जो पिछले तकरीबन डेढ़ साल से बारूद के ढेर र बैठा है

राजनीति को मानवीय बनाते राहुल
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ऐसे वक्त में जब भारतीय राजनीति में नफ़रत और हिंसा का बोलबाला है, राहुल गांधी एक बार फिर से मणिपुर में हैं। यह वही मणिपुर है जोपिछले तकरीबन डेढ़ साल से बारपूद के ढेर र बैठा है। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी सशस्तप्र संघर्षों के चलते इस दौरान बड़ी संख्या में दोनों ओर के लोगों की जानें गई हैं। हालांकि मरने वालों और उत् ीड़न के ज्यादा शिकार कुकी हुए हैं। बता दें कि ये दोनों ही आदिवासी समुदाय हैं। फर्क इतना ही है कि मैतेई हिन्दपू हैं जबकि कुकियों ने सदियों हले ईसाईयत अ ना ली है। मैतेइयों की नाराज़गी का कारण यह है कि कुकी आरक्षण के हकदार हैं और वे इससे वंचित हैं। इसके अलावा प्रदेश में उनकी जनसंख्या लगभग 64 प्रतिशत है जबकि राज्य के केवल 10 प्रतिशत भपूभाग र ही उनका आधि त्य है पिछले वर्ष मई के महीने में वहां जो कुछ हुआ उसने न केवल देश बल्कि सम् पूर्ण विश्व को स्तब्ध करके रख दिया था। भारतीय जनतापार्टी की सरकार के प्रशप्रय एवं धप्रुवीकरण की राजनीति के चलते कुकियों र हमले तेज़ हुए। उस समुदाय की दो युवतियों को निर्वस्तप्र कर उनकी रेड कराई और उनके साथ बदसलपूकी की। इस शर्मनाक घटना को भाजपा की सरकार ने लम्बे समय तक छिपाकर रखा, जिसके मुख्यमंतप्री एन. बीरेन सिंह हैं। कुछ स्थानीय दलों के साथ बनी यहां की भाजपा सरकार जातीय दंगों को रोकने में पूरी तरह से नाकाम ही रही। कुकी महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार का वीडियो जब तीन महीने बाद सामने आया, तो लोगों के दिल दहल गये।

इसके बावजपूद प्रधानमंत्री नरेन्दप्र मोदी ने इसकी ओर से आंखें मपूंद लीं। वे ही नहीं, पूरी केन्दप्र सरकार ने इसे लेकर लम्बा मौन वप्रतपाला। तब तक यह बात भी सामने आई कि जातीय झड़पों में 60 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए, 1000 से ज्यादा घायल हुए और 220 से अधिक लोग मारे गये हैं। करीब 5000 घरों में आग लगा दी गई। हालांकि यह मामला मोदी, उनके मुख्य सि हसालार केन्दप्रीय गृह मंतप्री अमित शाह समेत पूरी केन्दप्र सरकार को मालपूम था लेकिन किसी ने चपूं तक न की। वीडियो का स्वत: संज्ञान सुपप्रीम कोर्ट ने लेते हुए केन्दप्र सरकार को चेताया कि अगर वह कुछ नहीं करती तो अदालत कोई कदम उठायेगी। इससे हिली सरकार में कुछ हलचल हुई। नये संसद भवन के उद्घाटन अवसर र हुए सतप्र के हले मोदी ने तप्रकारों से इस विषय र संक्षिप्त चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस घटना से वे बहुत व्यथित हैं। वैसे यह मामला कई देशों की संसद में भी उठा लेकिन भारतीय संसद में इस र कभी भी विस्तृत बहस नहीं हुई।

प्रधानमंत्री ने पिछले साल जब अमेरिका का दौरा किया तब हले तो वे वहां अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ किसी संयुक्त प्रेस कांफप्रेंस के लिये राजी नहीं हुए रन्तु जब आखिरकार उन्हें ऐसा करना ही ड़ा तो जो सवाल मीडिया से आया वह भारत में लोकतंतप्र की बिगड़ती अवस्था को मिलाते हुए इसके बाबत ही था। उन्होंने इस र तथ्यात्मक व तार्किक जवाब देने की बजाये वहां की मीडिया को लोकतंतप्र कापाठ ढ़ाया और एक बार फिर से याद दिलाया कि 'भारत लोकतंतप्र की जननी है।' इधर मोदी के इशारों र काम करने वाले लोकसभा स् ीकर ओम बिरला हों या राज्यसभा के सभा ति जगदी धनखड़, दोनों ने कभी भी वि क्ष को इस र चर्चा की अनुमति नहीं दी।

मोदी ने कभी भी मणिपुर का रुख नहीं किया। उनके बारे में जुमला ही चल ड़ा कि 'वे 'म' से मटन, मछली, मंगलसपूत्र, मुसलमान सब जानते हैं रन्तु 'मणिपुर का म' नहीं जानते।' ऐसा इसलिये क्योंकि इस डेढ़ साल में उन्होंने मणिपुर का ज़िकप्र तक नहीं किया। यहां तक कि भाजपा की मातृसंस्था राष्टप्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 2023 की विजयादशमी र दिये अ ने भाषण में कहा था कि पूरी सरकार, खासकर अमित शाह को मणिपुर में जाकर बैठना चाहिये और स्थिति को शांत करना चाहिये, उनके कहे का वैसा कोई असर नहीं हुआ।

शाह कुछेक दिनों के लिये वहां ज़रपूर गये लेकिन मोदी ने वहां जाने की न तो हिम्मत की और न ही ज़रपूरत समझी। अलबत्ता, लोकसभा चुनावों के हले जब मोदी कई अखबारों एवं टीवी चैनलों में साक्षात्कारों की शप्रृंखला चला रहे थे तब एकाध समाचार तप्र के लिये किये गये इंटरव्यपू में उन्होंने इस बाबत पूछे सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि 'उनकी सरकार ने इस मामले को बहुत संवेदनशीलता के साथ सम्हाला है वरना स्थिति और भी गम्भीर होती।' यह लगभग वही भाषा थी जैसी बीरेन सिंह ने कही थी कि 'मणिपुर में इतनी घटनाएं हुई हैं कि सब र मामले दज़र् नहीं किये जा सकते।'

अब राहुल की यह तीसरी मणिपुर यातप्रा है- हिंसा भड़कने के बाद से। जब वहां दोनों ओर से काफी लोग हताहत हुए तब वे वहां तीन दिनों तक रहे थे। उन्होंने दोनों क्षों के लोगों से बात कर उनके घावों र मरहम लगाने की कोशिश की। इतना ही नहीं, उन्होंने अ नी भारत जोड़ो न्याय यातप्रा (14 जनवरी, 2024) की शुरुआत भी वहीं से की थी। भाजपा की विभाजनकारी नीति से आहत मणिपुर में राहुल का होना राजनीति को संवेदनशील व मानवीय बनाना है, न कि सियासी लाभ उठाने की कोशिश करना क्योंकि राज्य की दोनों लोकसभा सीटें कांगप्रेस को हले ही मिल चुकी हैं और विधानसभा चुनाव अब 2027 में होंगे।


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