Top
Begin typing your search above and press return to search.

कई असंभाव्यताओं पर निर्भर करेगा राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में अदालत द्वारा सजा के फैसले और फिर संसद से उनकी बर्खास्तगी के बाद राजनीतिक रूप से समाप्त हो गये हैं

कई असंभाव्यताओं पर निर्भर करेगा राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य
X

- कल्याणी शंकर

राहुल की सफलता कई अगर-मगर पर निर्भर करती है। इसमें यह शामिल है कि क्या उन्हें अपने फैसले पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय का आदेश मिलेगा और जनता कैसे प्रतिक्रिया देगी। कांग्रेस को 2024 के चुनावों के लिए चुनावी आख्यान भी बदलना चाहिए। संक्षेप में, भाजपा राहुल को राजनीतिक परिदृश्य से दूर नहीं कर सकती।

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाल ही में अदालत द्वारा सजा के फैसले और फिर संसद से उनकी बर्खास्तगी के बाद राजनीतिक रूप से समाप्त हो गये हैं? यह उनके और उनकी पार्टी के लिए फायदा है या झटका? इसकी भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी क्योंकि यह एक विकसित हो रही कहानी है। लेकिन अनुभव कहता है कि कोई भी राजनेता तब तक खत्म नहीं होता जब तक कि वह स्वयं समाप्त नहीं हो जाता।

भाजपा इस बात से खुश है कि न्यायालय ने राहुल को ठिकाने लगा दिया है और मानती है कि वह राजनीतिक रूप से खत्म हो चुका है। हालांकि, कांग्रेस का दावा है कि राहुल फायदे की स्थिति में हैं। यह फायदेमंद होगा अगर कोई उच्च न्यायालय फैसले पर रोक लगाता है या पलट देता है। अगर ऐसा नहीं होता है, तो राहुल 'कोई भी कीमत' चुकाने और यहां तक कि जेल जाने को भी तैयार हैं, जिससे उन्हें और अधिक राजनीतिक लाभ मिल सकता है।

न्यायालय ने राहुल को क्यों दी सजा? क्योंकि उन्होंने अप्रैल 2019 में कर्नाटक में एक चुनावी अभियान रैली में कहा था- 'इन सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों है? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी?'

इसके जवाब में, एक भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने एक आपराधिक मानहानि शिकायत दायर की जिसमें उन्होंने गांधी पर 'मोदी समुदाय' को बदनाम करने का आरोप लगाया।

फैसला नरम हो सकता था। परन्तु गुरुवार को सूरत (गुजरात) के न्यायालय ने दो साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने उन्हें तुरंत जमानत भी दे दी और सजा को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया, जिससे उन्हें सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील करने का समय मिल गया।

गांधी के खिलाफ इस्तेमाल किये गये मानहानि के प्रावधान 1860 के दशक के हैं, जब भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था। आईपीसी की धारा 500 में इस अपराध के लिए दो साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है।

राहुल निचले सदन में अपनी मौजूदा सदस्यता गंवाने के अलावा अगले आठ साल तक लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पायेंगे। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले के अनुसार, दो साल या उससे अधिक की सजा पाये सांसद या विधायक की सदस्यता अदालत द्वारा दोषी ठहराये जाने के तुरंत बाद समाप्त हो जाती है। लोकसभा ने तुरंत अगले दिन राहुल की बर्खास्तगी की घोषणा की।

स्थिति से बाहर आने के लिए राहुल को तीन स्तरों के समर्थन की जरूरत है जिसके लिए एकजुट पार्टी का मजबूत समर्थन भी चाहिए, और संयुक्त विपक्ष के अलावा जनता का भी।

कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि दोषसिद्धि संसद में अडानी मुद्दे को मोड़ने के लिए थी क्योंकि कांग्रेस ने अडानी-हिंडनबर्ग रिपोर्ट की संयुक्त संसदीय जांच की मांग की है।
राहुल गांधी ने कहा कि वह अडानी शेयरों के मुद्दे पर सवाल पूछने से 'पीछे नहीं हटेंगे' या धमकियों, अयोग्यताओं और जेल की सजा से भयभीत नहीं होंगे। टिप्पणी के लिए माफी मांगने से इनकार करते हुए राहुल ने कहा, 'मेरा नाम सावरकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है। गांधी किसी से माफी नहीं मांगते।'

दूसरे, इस फैसले ने सत्तारूढ़ व्यवस्था के खिलाफ विपक्ष को एकजुट कर दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और अन्य विपक्षी नेताओं, जैसे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन, पूर्व यू.पी.मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अधिनियम की निंदा में शामिल हुए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस कार्रवाई की सबसे पहले निंदा करने वाली थीं, जबकि वह इन दिनों कांग्रेस का विरोध करती रही हैं।

तीसरा, हालांकि जनता सजा से हैरान है, लेकिन पूरी प्रतिक्रिया अभी बाकी है। कांग्रेस को आने वाले दिनों में लोगों को शामिल करने के लिए सड़कों पर उतरना बाकी है।
राहुल गांधी की सजा ने कैम्ब्रिज में राहुल के विवादास्पद भाषण जैसे अन्य विवादास्पद मुद्दों को आगे बढ़ाया है। भाजपा उनसे माफी की मांग कर संसद का कामकाज ठप कर रही है।

भले ही सजा राहुल, उनकी पार्टी और पूरे विपक्ष के लिए एक मनोवैज्ञानिक झटके के रूप में आई, लेकिन उनका राजनीतिक भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि इसे लोगों तक कैसे पहुंचाया जाता है, स्थिति का किस प्रकार परिचालन किया जाता है, किस प्रकार इसे जनता की सहानुभूति में तब्दील किया जाता है, और इस मुद्दे को 2024 के लोकसभा चुनावों तक कैसे बनाये रखा जाता है।

आलोचक इनके प्रति आशंकित हैं। भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता, मीडिया पर कड़ा नियंत्रण और उनकी जीत की होड़ को देखते हुए यह आसान नहीं हो सकता है। लेकिन गांधी अब भी खबर बने रहेंगे। आने वाले महीनों में, 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, कांग्रेस कर्नाटक में अपनी पहली महत्वपूर्ण परीक्षा का सामना करेगी, उसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में, जहां भाजपा के साथ सीधा मुकाबला होगा। यदि पार्टी इन राज्यों में चुनाव जीतती है, तो यह विपक्ष को खुश करेगी। अगर पार्टी हारती है, तो यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक झटका होगा और मोदी की हैट्रिक को स्वीकार करना पड़ेगा।

जो भी हो, राहुल की सफलता कई अगर-मगर पर निर्भर करती है। इसमें यह शामिल है कि क्या उन्हें अपने फैसले पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय का आदेश मिलेगा और जनता कैसे प्रतिक्रिया देगी। कांग्रेस को 2024 के चुनावों के लिए चुनावी आख्यान भी बदलना चाहिए। संक्षेप में, भाजपा राहुल को राजनीतिक परिदृश्य से दूर नहीं कर सकती। कोई भी राजनेता तब तक समाप्त नहीं होता जब तक वह खुद समाप्त नहीं हो जाता। राहुल कोई अपवाद नहीं हो सकता।

भाजपा शायद इस कहावत को समझ गई है कि अपने विरोधी को कभी सुर्खियों में नहीं लाना चाहिए। कहानी का सबक यह है कि राजनेता, चाहे वे किसी भी उच्च पद पर हों, उनको अपनी जुबान पर कड़ा नियंत्रण कायम रखना चाहिए।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it