Top
Begin typing your search above and press return to search.

राहुल का साहसिक लेख : हिन्दू होने का मतलब निर्भय!

गांधी जयंती से ठीक पहले राहुल गांधी ने बेमिसाल काम किया है

राहुल का साहसिक लेख : हिन्दू होने का मतलब निर्भय!
X

- शकील अख्तर

हिन्दू होने का मतलब उदार समावेशी हर प्राणी की चिंता और रक्षा करना है। यही मानवता का सिद्धांत है। हर धर्म का मूल। हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई सब का। राहुल ने प्रेम का रास्ता खोल दिया। हिन्दू देश का बहुसंख्यक है। जीत-हार वही तय करता है। राहुल ने उनसे सीधा संवाद किया है। एक हिन्दू होने के नाते अपने धर्म पर बात करना उनका अधिकार है।

गांधी जयंती से ठीक पहले राहुल गांधी ने बेमिसाल काम किया है। कठिन दार्शनिक एवं आध्यात्मिक विषय पर लिखने का। परिवारवाद का आरोप हमें तो यहां बिल्कुल सही लगता है। अपने पूर्वजों की तरह लिखने पढ़ने से नाता जोड़े रखने की परंपरा कायम रखने को ही तो यह लोग परिवारवाद कहते हैं!

नेहरू ने कई किताबें लिखी हैं। बहुत गहन विषयों पर। इतिहास और संस्कृति पर। मगर यहां उद्देश्य नेहरू पर बात करना नहीं है। नेहरू तो इस प्रसंगवश आ गए कि राहुल उस परिवार के हैं तो वह डीएनए जो शब्द हमारे प्रधानमंत्री जी को बहुत प्रिय है और वह पूरे एक राज्य बिहार का बता रहे थे तो वह डीएनए लिखने पढ़ने का सत्य और साहस का देशप्रेम का तो आएगा ही।

मगर यहां बात शुरू की थी हमने गांधी जयंती से। तो गांधी जयंती पर राहुल ने लिखा है सत्यम शिवम सुन्दरम। हिन्दू होने का अर्थ। भय की तलहटी तक जाकर सत्य को देखने का साहस। यही तो गांधी जी कहते थे। हिन्दू होने का मतलब है- दया सहिष्णुता समावेश। गांधी जी के यंग इन्डिया, हरिजन और नवजीवन में छपे लेखों का एक संग्रह है हिन्दू धर्म क्या है! इसमें गांधी वही ढूंढ़ते हैं जो राहुल ने अपने इस लेख में तलाशने की कोशिश की है। और नेहरू फिर यहां आएंगे। अपने उन विचारों के लिए जिन पर सब से कम लिखा गया है और वह हैं- उनके अपने धर्म हिन्दू पर उनके विचार। हिन्दू पर वे कहते हंै कि बाकी सभी धर्मों की बातों की तरह यहां भी कई रुढ़ियां हैं। मगर हिन्दू धर्म क्रान्तिकारी और मौलिक विचारों पर चर्चा के लिए हमेशा तैयार रहता है।

आज जब सारी राजनीति हिन्दू पर की जा रही है और उसे एक वोट बैंक में बदलने की कोशिश की जा रही है तो गांधी-नेहरू की परंपरा में राहुल के इस विषय पर विचार बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। राजनीति और धर्म को अलग रखने की बात बहुत पुरानी है। और जिसने यह कर लिया वह विकसित भी हो गया। यूरोप ने सबसे पहले किया था। चर्च ने खुद माना था कि राजनीति उसका विषय नहीं है और वह खुद को केवल धार्मिक कार्यकलापों तक ही सीमित रखेगी। यह दो सौ साल पुरानी बात है। फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद।

उसके बहुत बाद इन्डिया और पाकिस्तान दो देश एक साथ बने। इन्डिया ने राजनीति को धर्म से अलग रखा और उधर पाकिस्तान ने राजनीति पर धर्म हावी कर दिया। दोनों के परिणाम आप देख सकते हैं। किसी उदाहरण की जरूरत नहीं।

भक्त क्या कहते हैं कहने दीजिए। खुद प्रधानमंत्री भी कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात होती थी। इन बातों को दुनिया में कोई गंभीरता से नहीं लेता। मजाक का विषय है। असली बात यह कि दुनिया भर में भारत के पढ़े-लिखे लड़के और लड़कियां जो नेहरू के बनाए आईआईटी, एम्स, आईआईएम और दूसरे उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़े थे पहुंच गए। और वहां अपने प्रोफेशनल काम से भारत का नाम ऊंचा किया। आज तो हम इस मानसिक दिवालिएपन का शिकार हो रहे हैं कि देश को इन्डिया नहीं भारत कहें। जैसे भारत कहने से दुनिया मान जाएगी कि मणिपुर में महिलाएं और बच्चे सुरक्षित हैं। वहां सैंकड़ों चर्च नहीं जलाए गए। जिस पार्टी भाजपा की वहां दो-दो सरकारें हैं।

केन्द्र और राज्य दोनों की जिन्हें वे गर्व से डबल इंजन कहते हैं उसके मणिपुर से केन्द्र में मंत्री जो विदेशी मामलों के मंत्री हैं आर के रंजन उनका घर दो बार जला दिया। और कहां राजधानी इंफाल में! खुद पार्टी भाजपा का प्रदेश कार्यालय जला दिया गया। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष शारदा देवी के घर पर पथराव हुआ। वे कह रही हैं कि मेरा घर जला देगें। ये सब सरकार के लोग कह रहें हैं कि राज्य में कोई कानून व्यवस्था नहीं हैं।

मगर हम हर जगह प्रधानमंत्री विदेश मंत्री के सामने लगी नेम प्लेटों में भारत लिखवाकर ऐसे खुश हो रहे हैं जैसे इससे मणिपुर की खबरें दब जाएंगीं। दुनिया कहेगी टुरिज्म के लिए बेस्ट शांत और सुरक्षित जगह! खासतौर से महिलाओं के लिए!

संसद में जो आज तक नहीं हुआ। वहां खुले आम गालियां दी जा रही हैं। और देने वाले भाजपा सांसद को इनाम दिया जा रहा है। और हम सोच रहे हैं कि अगर नाम भारत हो जाए तो यह खबर कहीं नहीं पहुंचेगी कि भारत में धर्म के आधार पर सत्तारुढ़ पार्टी का सांसद गालियां देता है। और पार्टी उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बदले उसे राजस्थान के टोंक में जो एक पुरानी नवाबी रियासत रही है वहां का इन्चार्ज बनाकर गाली अभियान को और आगे बढ़ाने के लिए भेज देती है।

अरब देशों से भारत के बहुत अच्छे संबंध हैं। वहां लाखों भारतीय काम करते हैं। बड़ी तादाद में विदेशी मुद्रा यहां भेजते हैं। उन देशों से और मधुर संबंध बनाने के लिए लोकसभा में दी गालियों का अरबी और अंग्रेजी में ट्रांसलेशन सिखा कर इन सांसद महोदय को वहां विशेष दूत बनाकर भेजना चाहिए।

तो ऐसे समय में जब सब कुछ वोटों के लिए हो रहा हो। देश की संस्कृति, गौरवशाली परंपराओं, विदेश में उसके सम्मान किसी की कोई चिन्ता न हो। वोट चुनाव जीतना ही सिद्धांत निष्ठा सब बन जाए तब राहुल का यह लिखना साहस का काम है कि निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही हिन्दू धर्म है। संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है।

उनके पास चुनाव जीतने का एक ही तरीका है। नफरत और विभाजन की राजनीति। मणिपुर में चर्च जल रहे हैं। ट्रेन में नाम पूछकर ड्यूटी पर सुरक्षा के लिए तैनात सिपाही मुसलमानों को गोली मार रहा है। स्कूल में एक जगह शिक्षिका एक मुसलमान लड़के को दूसरे लड़कों से पिटवाती है। तो दूसरी जगह टीचर लड़कियों को जातिसूचक नाम से पुकार कर रोज उनका अपमान करते हैं। मध्य प्रदेश में एक आदिवासी के सिर पर भाजपा का नेता पेशाब करता है। ऐसी जाने कितनी घटनाएं पिछले साढ़े 9 साल में हुई हैं। मुसलमानों की लिंचिग, दलितों को गुजरात में कपड़े उतार कर खंबे से बांध कर मारना। दलित छात्र रोहित वेमुला को इतना सताना कि उसे होस्टल से बाहर निकलना पड़े और फिर आत्महत्या करना पड़े। कितनी एक से एक अमानवीय घटनाएं हैं। भयावह! पूरे देश को भय के अंधे कुएं में धकेल देने की कोशिश।

इसी के खिलाफ राहुल बोलते हैं। लड़ रहे हैं। और अभी यह लेख लिखा है। भय को पहचानने और उसे जीतने की कोशिश का। सबको साथ लेकर चलने का। सभी धर्मों का सार यही है। राहुल ने इसे हिन्दू धर्म के आइने में लिखा है। और सही है अपने धर्म का सही स्वरूप लोगों को बताना। ऐसे समय में तो बहुत जरूरी है जब धर्म के नाम पर ही राजनीति की जा रही हो। लेकिन जैसा कि इस लेख में राहुल ने लिखा धर्म को कुछ चीजों तक सीमित करना उसका अल्प पाठ होगा।

हिन्दू होने का मतलब उदार समावेशी हर प्राणी की चिंता और रक्षा करना है। यही मानवता का सिद्धांत है। हर धर्म का मूल। हिन्दू-मुसलमान-सिख-ईसाई सब का। राहुल ने प्रेम का रास्ता खोल दिया। हिन्दू देश का बहुसंख्यक है। जीत-हार वही तय करता है। राहुल ने उनसे सीधा संवाद किया है। एक हिन्दू होने के नाते अपने धर्म पर बात करना उनका अधिकार है। देश कल कौन सा रूप लेगा यह हिन्दू ही तय करेंगे। एक तरफ भाजपा है जो धर्म का विकृत रूप पेश करने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ राहुल हैं जो लिखकर उसका सौन्दर्य उदारता और करूणामयी रूप दिखा रहे हैं।

तय देश को करना है कि वह गांधी के धर्म के रास्ते जिसे राहुल ने बताने की कोशिश की है उस पर चलेगा या गोडसे के रास्ते पर जहां अब गोलियों के बाद गालियां हिंसक भाषा क्रूरता और विभाजन है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it