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झारखंड में योग के जरिए धर्मनिरपेक्षता सिखा रही राफिया

झारखंड की राजधानी रांची के डोरंडा की रहने वाली मुस्लिम युवती राफिया नाज आज योग के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम हैं

झारखंड में योग के जरिए धर्मनिरपेक्षता सिखा रही राफिया
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रांची। झारखंड की राजधानी रांची के डोरंडा की रहने वाली मुस्लिम युवती राफिया नाज आज योग के क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम हैं। योग को धर्म से परे मानने वाली राफिया को आज योग के कारण ही निशाना भी बनाया जा रहा है।

झारखंड में 'योग बियोंड रिलिजन' अभियान का अहम हिस्सा बन चुकीं राफिया आज न केवल स्कूली बच्चों और विभिन्न संस्थानों में जाकर लोगों को नि:शुल्क योग का प्रशिक्षण देती हैं, बल्कि योग का एक स्कूल भी चलाती हैं। राफिया अब तक 4000 से ज्यादा बच्चों को योग का प्रशिक्षण दे चुकी हैं।

राफिया चार साल की उम्र से योग कर रही हैं। वर्तमान समय में वह रांची के डोरंडा इलाके में आदिवासी, मुस्लिम और अनाथ आश्रम के बच्चों को योग सिखा रही हैं। राफिया कहती हैं, "खुद को स्वास्थ रखने के लिए योग से सही कुछ भी नहीं। योग का धर्म से कोई लेना देना नहीं है।"

रांची की मारवाड़ी कॉलेज की स्नातकोत्तर की छात्रा राफिया की पहचान आज पेशेवर योग प्रशिक्षक के रूप में होने लगी है। योगगुरु बाबा रामदेव के साथ मंच साझा कर चुकीं राफिया ने आईएएनएस से कहा, "योग आत्मा से परमात्मा को जोड़ने का माध्यम है, जो प्राकृतिक है। योग स्वास्थ्य लाभ के लिए है। जो लोग योग को धर्म से जोड़ते हैं, दरअसल वे योग की महत्ता को नहीं समझते।"

राजकीय और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान और पुरस्कार पा चुकी राफिया से जब 'योग में मंत्र पढ़ने और सूर्य नमस्कार से परेशानी' के संबंध में पूछा तब बेबाक राफिया ने कहा, "मुझे मुस्लिम होने के बावजूद मंत्र पढ़ने से कोई परेशानी नहीं है। अगर, किसी को परेशानी है तो वे मंत्र नहीं पढें़। कहीं भी योग में मंत्र की अनिवार्यता नहीं है। सूर्य नमस्कार एक सीरीज है जिसका नाम 'सन सैल्यूशन' कर लें।"

जीवन में शुद्धता और पवित्रता को योग का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में लगातार कार्य किए जा रहे हैं। योग में सुख, शांति और सहयोग की स्थापना का लक्ष्य हैं।

राफिया को योग के कारण अपने ही समाज की कट्टरपंथियों के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। राफिया हालांकि ऐसे लोगों को किसी धर्म और समाज से जोड़कर नहीं देखना चाहतीं। उन्होंने कहा कि योग के कारण उन्हें जान से मारने की ही धमकी नहीं दी गई, बल्कि लोगों के फोन और सोशल मीडिया पर भद्दी गालियां भी सुननी पड़ती हैं। वे कहती हैं कि ऐसे कौन लोग हैं, उन्हें वे पहचानती तक नहीं हैं।

वे कहती हैं कि उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस से भी की। उन्होंने आईएएनएस को बताया, "किस्तों में यह धमकी पिछले चार सालों से मिल रही है। लेकिन बीते कुछ दिनों से इसकी संख्या में वृद्धि हुई है। लोग धमकी देते हैं कि उठवा लेंगे। मार देंगे।"

वे कहती हैं कि अब तो उनको ऐसी धमकी की आदत हो गई है। एक साल पहले उन पर जानलेवा हमला तक किया गया है। पुलिस ने अब उन्हें अंगरक्षक दे रखा है।

इन धमकियों से बेपरवाह राफिया कहती हैं कि वे किसी भी धमकी से योग नहीं छोड़ने वाली हैं। उन्होंने माना कि पहले अल्पसंख्यक लड़कियों में योग को लेकर न दिलचस्पी थी और न ही स्वीकार्यता थी, लेकिन अब इस समाज में भी योग की स्वीकार्यता बढ़ने लगी है। राफिया बताती हैं कि कई लोगों ने उनके जनाजे पर नमाज नहीं पढ़ने की धमकी तक दे चुके हैं।

राफिया की योग की शिक्षा से उनके छात्र भी खुश हैं। राफिया की छात्रा शिफा अभी 11 साल की है। शिफा कहती है कि योग से दिन की शुरुआत करने से न थकान महसूस होती है और न ही मन अशांत रहता है। उसने बताया कि उसे अपने परिजनों से भी योग के प्रति प्रोत्साहन मिलता है। वह कहती है कि पिछले आठ महीने से वह योग सीख रही है।

राफिया को एक साल पहले जम्मू एवं कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय योगा फेस्टिवल में 'नेशनल पतंजलि योगा प्रमोटर पुरस्कार' से नवाजा गया था। इसी तरह लखनऊ के अखिल भारतीय योग महासम्मेलन में 'योगप्रभा' की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है।


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