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गैंडों का शिकार रोकने के लिए लगाए रेडियोएक्टिव चिप

दक्षिण अफ्रीका में गैंडों के सींगों में रेडियोएक्टिव पदार्थ डाल दिया गया है ताकि उनके शिकार को रोका जा सके.

गैंडों का शिकार रोकने के लिए लगाए रेडियोएक्टिव चिप
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दक्षिण अफ्रीका में गैंडों के सींगों में रेडियोएक्टिव पदार्थ डाल दिया गया है ताकि उनके शिकार को रोका जा सके.

दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिकों ने जीवित गैंडों के सींगों में इंजेक्शन से रेडियोएक्टिव पदार्थ डालने की एक नई योजना शुरू की है. इसका मकसद खतरे में पड़े इन जीवों को शिकारियों से बचाना है. वैज्ञानिकों का कहना है कि रेडियोएक्टिव पदार्थ की मदद से चौकियों पर इन गैंडों के सींगों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा.

इंटरनेशनल राइनोसोरस फाउंडेशन के एक अनुमान के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में लगभग 15 हजार गैंडे रहते हैं. दुनिया के सबसे अधिक गैंडे दक्षिण अफ्रीका में ही पाए जाते हैं लेकिन वहां इनका सबसे ज्यादा शिकार भी होता है. एशिया में गैंडों के सींगों की भारी मांग है क्योंकि वहां इनका इस्तेमाल पारंपरिक दवाएं बनाने में किया जाता है. दक्षिण अफ्रीका के शिकारी गैंडों को मारकर उनके सींग काट लेते हैं और उन्हें एशियाई बाजारों में बेचा जाता है.

इस्तेमाल नहीं हो सकेंगे सींग

दक्षिण अफ्रीका के उत्तर पूर्व में वॉटरबर्ग इलाके में जानवरों के लिए लिंपोपो अनाथालय है, जहां गैंडों को रखा जाता है. विदवॉटर्सरैंड यूनिवर्सिटी की रेडिएशन एंड हेल्थ फिजिक्स यूनिट के डाइरेक्टर जेम्स लारकिन ने इस परियोजना की शुरुआत की है.

उन्होंने बताया कि सींग में दो छोटे रेडियोएक्टिव चिप लगाए गए हैं और इस प्रक्रिया में गैंडों को कोई दर्द नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि रेडियोएक्टिव मटीरियल की खुराक इतनी कम है कि इससे जानवरों की सेहत पर कोई असर नहीं होगा.

यूनिवर्सिटी के विज्ञान विभाग की डीन नित्या चेट्टी कहती हैं कि रेडियोएक्टिव चिप के कारण ये सींग कहीं भी इस्तेमाल नहीं किए जा सकेंगे क्योंकि यह मटीरियल इंसान के लिए जहरीला है.

फरवरी में देश के पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि अवैध कारोबार को काबू करने की तमाम कोशिशों के बावजूद 2023 में 499 गैंडे मार दिए गए. यह 2022 के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा है.

सेहत का पूरा ख्याल

‘राइसोटॉप' नाम की इस योजना के तहत पहले चरण में 20 गैंडों को रेडियोएक्टिव चिप लगाए जाएंगे. ये चिप इतने शक्तिशाली होंगे कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर लगे न्यूक्लियर डिटेक्टर इन्हें पकड़ पाएंगे. लारकिन ने कहा कि ये डिटेक्टर न्यूक्लियर आतंकवाद को रोकने के लिए लगाए गए थे.

दुनियाभर में ऐसे हजारों डिटेक्टर लगे हैं. इनके अलावा हवाई अड्डों या अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात बॉर्डर एजेंटों के पास रेडिएशन डिटेक्टर होते हैं जो रेडियोएक्टिव पदार्थों को पकड़ सकते हैं.

ब्लैक मार्केट में गैंडों के सींगों की भारी मांग है और इनकी कीमत सोने और कोकेन के बराबर हो सकती है. गैंडों के लिए बनाए गए लिंपोपो अनाथालय की संस्थापक एरी वान डेवेंटर कहती हैं कि शिकार रोकने की कई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं, जिनमें गैंडों के सींग हटा देना या उन पर जहर लगा देना आदि शामिल हैं.

डेवेंटर कहती हैं, "हो सकता है शिकार रोकने की यह कोशिश कामयाब हो जाए. यह अब तक आया सबसे अच्छा आइडिया है.”

परियोजना की मुख्य अधिकारी जेसिका बाबिच कहती हैं कि सभी वैज्ञानिक और नैतिक मूल्यों और नियमों को ध्यान में रखा जा रहा है और आखिरी चरण में जानवरों की देखभाल पर ध्यान दिया जाएगा. वैज्ञानिक उनके खून के नमूने लेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये विशाल प्राणी सुरक्षित हैं. उनके सींग में रेडियोएक्टिव पदार्थ पांच साल तक रहेगा.


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