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मणिपुर दंगे पर सर्वोच्च न्यायालय में मोदी सरकार के हलफनामे पर उठा सवाल

महिलाओं का संगठन, कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय, शवों को चूड़ाचांदपुर लाने के लिए बार-बार मांग कर रहा है

मणिपुर दंगे पर सर्वोच्च न्यायालय में मोदी सरकार के हलफनामे पर उठा सवाल
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- अरुण श्रीवास्तव

महिलाओं का संगठन, कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय, शवों को चूड़ाचांदपुर लाने के लिए बार-बार मांग कर रहा है, लेकिन 'कोई असर नहीं हुआ'। मणिपुरवासी पर्याप्त सबूत पेश किए बिना मारे गये भारतीय नागरिकों को 'घुसपैठिए या अवैध प्रवासी' कहने पर एसजी मेहता और सरकारी अधिकारियों से नाराज हैं। उनके अनुसार, 'यह एक गंभीर मामला है और यह झूठ बोलने और अदालत को गुमराह करने के समान है।

अपने विरोधियों और राजनीतिक शत्रुओं के खिलाफ अनैतिक और निराधार टिप्पणियांकरना और हमेशा धरातल की सच्चाइयों से इनकार की मुद्रा में रहना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रमुख विशेषता रही है। जाहिर है, मणिपुर में लावारिस शवों के निस्तारण के मामले में मोदी सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की दलीलें इसी विशेषता को दर्शाती हैं।

मुर्दाघरों में लावारिस पड़ी लाशों के प्रति भी पूरी तरह से असंवेदनशीलता और चिंता की कमी का प्रदर्शन करते हुए, मेहता ने यह स्वीकार करने के बजाय कि शव भारतीयों के थे, अदालत को बताया कि जातीय हिंसा के अधिकांश लावारिस शव तथाकथित विदेशी 'घुसपैठियों' के हैं। एसजी मेहता की इस एकल-पंक्ति प्रस्तुति ने मणिपुर के लोगों, विशेषकर कुकी महिलाओं को तबाह कर दिया है।

केंद्र और मणिपुर दोनों सरकारों की ओर से पेश हुए मेहता ने 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 'अधिकांश लावारिस शव घुसपैठियों के हैं'। यह अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए उनके पास क्या बुनियादी जानकारी या सबूत थे? यह अभी तक रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया गया है। सरकार के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी होने के नाते, उन्हें अपनी टिप्पणियों में कुछ हद तक संयम रखना चाहिए था।

उनकी टिप्पणी से मणिपुर की महिलाएं इस हद तक आहत हुई हैं कि शायद न्यायिक इतिहास में पहली बार मणिपुर के कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय की महिला संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में मेहता द्वारा की गयी इस टिप्पणी को वापस लेने की मांग की है।

एक अन्य बयान में, यूएनएयू आदिवासी महिला मंच, दिल्ली-एनसीआर ने कहा कि मणिपुर के कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय की माताएं, जो समूह का प्रतिनिधित्व करती हैं, सॉलिसिटर जनरल द्वारा की गयी टिप्पणियों से 'गहराई से आहत और भयभीत' हैं। 'देश के सॉलिसिटर जनरल की ऐसी ढीली और निराधार टिप्पणी अशोभनीय, अस्वीकार्य और घृणित है।' समूह ने अपने बयान में कहा, 'यह मृतकों के परिवारों के लिए बेहद दुखद है, जो आज तक अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करने में असमर्थ हैं।'

प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगियों के मन में ईसाई कुकियों के प्रति तीव्र घृणा की भावना राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा शवों को उनके रिश्तेदारों को सौंपने की अनिच्छा में भी प्रकट होती है, जो शवों को अंतिम संस्कार के लिए घर ले जाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जहां एक ओर शव इंफाल के मुर्दाघरों में पड़े हुए हैं, वहीं शोक संतप्त परिवार मौजूदा सुरक्षा स्थिति के कारण शवों तक पहुंचने में असमर्थ हैं, जिसमें अगर वे शवों को निकालने की कोशिश करेंगे तो 'उन्हें निश्चित मौत का सामना करना पड़ेगा'।

महिलाओं का संगठन, कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय, शवों को चूड़ाचांदपुर लाने के लिए बार-बार मांग कर रहा है, लेकिन 'कोई असर नहीं हुआ'। मणिपुरवासी पर्याप्त सबूत पेश किए बिना मारे गये भारतीय नागरिकों को 'घुसपैठिए या अवैध प्रवासी' कहने पर एसजी मेहता और सरकारी अधिकारियों से नाराज हैं। उनके अनुसार, 'यह एक गंभीर मामला है और यह झूठ बोलने और अदालत को गुमराह करने के समान है, और यह देश के दूसरे सर्वोच्च कानूनी कार्यालय का पद संभालने वाले किसी व्यक्ति को शोभा नहीं देता है'।

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की : 'लेकिन अंतत:, जिनके साथ बलात्कार किया गया और जिनकी हत्या की गयी, वे हमारे लोग थे, है ना? इसलिए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय हो, बस इतना ही।'

दंगा पीड़ितों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की पूर्ण उदासीनता, राज्य का दौरा करने से इनकार करना और यहां तक कि पीड़ितों को सांत्वना देने से इनकार करना, राज्य के आदिवासियों और कुकियों को हैरान और अलग-थलग कर दिया है। एसजी मेहता की अप्रिय टिप्पणी ने उनके घावों पर नमक छिड़क दिया है, और इसलिए उन्होंने इस भयानक टिप्पणी को रद्द करने की मांग की है। जिस बात ने उन्हें सबसे अधिक आहत किया है वह यह है कि जहां प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी गरिमा और शील की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया है, वहीं उनकी सरकार ने मृत आत्माओं को न्यूनतम मानवीय अधिकार देने की इच्छा भी व्यक्त नहीं की है। एक बयान में, यूएनएयू आदिवासी महिला मंच, दिल्ली-एनसीआर ने कहा कि समूह द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले मणिपुर के कुकी-हमार-ज़ोमी समुदाय की माताएं सॉलिसिटर जनरल द्वारा की गयी टिप्पणियों से 'गहराई से आहत और भयभीत' हैं।

इसके अलावा, एसजी तुषार मेहता के निराधार दावे ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को भी मुश्किल में डाल दिया है। भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा बीएसएफ की जिम्मेदारी है। इतनी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठियों का प्रवेश बीएसएफ की प्रभावकारिता और क्षमता पर सवालिया निशान लगाता है। फिर यदि वास्तव में ऐसा मामला है, तो केंद्रीय गृह मंत्रालय, जो कि बीएसएफ का बॉस है, को विस्तृत स्पष्टीकरण देना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में घुसपैठिये पुलिस की मजबूत उपस्थिति के बावजूद भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने में कैसे कामयाब रहे?

वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेज ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि इंफाल के एक मुर्दाघर में महीनों से 118 शव अज्ञात पड़े थे। 'वे सड़ रहे हैं। हम वहां जाकर उनकी पहचान नहीं कर सकते। हमें पहचानने में मदद करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है', गोंसाल्वेज ने कहा। इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा: 'आप 118 शवों को मुर्दाघर में अनिश्चित काल तक नहीं रख सकते।' अदालत ने एसजी मेहता से यह बताने के लिए कहा कि कितने शवों की पहचान की गयी है और कितने का पता लगाया जाना बाकी है।

कुछ स्थानीय रिपोर्टों में कहा गया है कि अधिकांश मृतक हिरासत में मौत के शिकार थे। ऐसे ही एक मामले में, 25 मई को एक एफआईआर दर्ज की गयी थी, लेकिन पीड़ित की मौत की जांच के लिए आज तक कोई कार्रवाई शुरू नहीं की गयी है, जो गिरफ्तारी के दिन से इंफाल में मणिपुर पुलिस की हिरासत में था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का यह हश्र हुआ।

यह गृह मंत्रालय और राज्य सरकार की खराब कार्यप्रणाली को दर्शाता है कि मणिपुर में जातीय हिंसा के तीन महीने बाद भी कम से कम 53 शव- जिनमें से ज्यादातर कुकी समुदाय के हैं- अभी भी इम्फाल पूर्व और पश्चिम के दो जिला अस्पतालों में लावारिस पड़े हुए हैं। इसके अलावा, मैतेई समुदाय के व्यक्तियों के तीन या चार शव चूड़ाचांदपुर के अस्पताल में लावारिस पड़े हुए हैं।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोदी सरकार ने मणिपुर के मृतकों और जीवितों दोनों को छोड़ दिया है। यह देखना बाकी है कि सर्वोच्च न्यायालय मृत आत्माओं के प्रति घोर अनादर दिखाने के लिए जिम्मेदार राजनेताओं, शासकों, अधिकारियों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई शुरू करता है।
मणिपुर पुलिस द्वारा प्रदर्शित नृशंस रवैया, गिरफ्तार किये गये लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने में उनकी घोर विफलता और जिनके खिलाफ अभी तक आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है, यह दर्शाता है कि कैसे उन्हें हिंदुत्व कट्टरता के पैदल सैनिकों में बदल दिया गया है। मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह द्वारा 'नार्को-आतंकवादियों' और 'अवैध आप्रवासियों' पर युद्ध की आड़ में भयानक हिंसा को उचित ठहराना पुलिस की मिलीभगत और कुकियों के प्रति उनके पक्षपातपूर्ण रवैये को रेखांकित करता है।

मणिपुर में न तो मुख्यमंत्री और न ही पुलिस ने संविधान के प्रावधानों का पालन किया। ऐसी दो भयावह घटनाएं डल्लमथांग सुन्ताक और लालरेमरूट पुलमटे की मृत्यु से संबंधित हैं। उन्होंने 3 मई की देर शाम इंफाल से चूड़चांदपुर जाते समय मोइरांग पुलिस स्टेशन में सुरक्षा मांगी थी। दुर्भाग्य से,पुलिस के कार्रवाई करने से पहले ही भीड़ ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला। आशंका व्यक्त की जा रही है कि पुलिस ने उन्हें भीड़ को सौंप दिया था (जैसा कि उन्होंने वायरल वीडियो की पीड़ित महिलाओं के साथ किया था, जिसने लैंगिक हिंसा की भयावहता को सामने ला दिया था), पर सच्चाई जानना कठिन है। वास्तव में चौंकाने वाली बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की गहरी चुप्पी है, जो अन्यथा विपक्ष के नेतृत्व वाली सरकारों की खिंचाई करने में काफी सक्रिय रहा है, लेकिन इन घृणित घटनाओं पर अपनी आवाज नहीं उठायी या स्वत: संज्ञान जांच शुरू नहीं की।


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