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यातना शिविर में तब्दील हो चुके हैं क्वारंटीन सेंटर्स : अखिलेश

समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि कोरोना संकट के प्रति प्रशासन तंत्र ने उदासीनता का रवैया अपना लिया है

यातना शिविर में तब्दील हो चुके हैं क्वारंटीन सेंटर्स : अखिलेश
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में क्वारंटीन सेन्टर्स के ‘यातना शिविर‘ में तब्दील होने का आरोप लगाते हुये समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ने के बावजूद सरकार प्रदेश की करोड़ों जनता को उसके भाग्य के भरोसे छोड़कर राजसुख भोगने में मग्न हो गई है।

श्री यादव ने कहा कि कोरोना संकट के प्रति प्रशासन तंत्र ने उदासीनता का रवैया अपना लिया है। भाजपा सरकार की संकट से निबटने की इच्छाशक्ति भी कमजोर हो चली है। अब न तो कोई श्रमिकों की सुरक्षित और सम्मानित ढंग से वापसी में रूचि ले रहा है और न ही नागरिकों की जिंदगी-मौत के प्रति संवेदना जता रहा है।

उन्होने कहा कि मुख्यमंत्री जांच और क्वारंटीन स्थलों के बारे में बड़े-बड़े दावे करते हैं लेकिन सच यह हैं कि अब क्वारंटीन सेन्टर्स लोगों के लिए ‘यातना शिविर‘ में तब्दील हो गए है। इनकी हालत बेहद दयनीय है। अधिकारियों ने तालाबो, पोखरों और उजाड़ जगहों में क्वारंटीन किए जाने वाले श्रमिकों को पशुओं से भी बुरी दशा में रखा जा रहा है। भाजपा सरकार इसे ही फाइव स्टार व्यवस्था बता रही है जिसके विरोध में कई जगह डाक्टर, नर्स और श्रमिक भी प्रदर्शन कर चुके हैं।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना वायरस की बीमारी से लड़ने पर जो व्यय हुआ है उसका ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए। जनता को यह जानने का अधिकार है कि खर्च कहाँ हुआ। सरकार की बदइंतजामी और घोर लापरवाही का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि वीवीआईपी जिले गोरखपुर के सहजनवां ब्लाक में क्वारंटीन सेन्टर में एक प्रवासी श्रमिक के बिस्तर में सांप घुस गया। श्रमिक की किस्मत अच्छी थी कि वह जिंदा बच गया। कुछ दिन पहले गोण्डा में एक स्कूल के अंदर बने क्वारंटीन सेन्टर में 16 साल के एक लड़के को सांप काटने से मौत हो गई। इन सेन्टरों में घटिया खाना, दिये जाने के साथ वहां तैनात स्टाफ को समय से हाजिर न होने की भी शिकायतें आम है।

उन्होने कहा कि श्रमिकों का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है यह अस्तित्व की लड़ाई है तथा लम्बे समय तक संघर्ष जारी रहने वाला है। सरकार चालाकी से बसों की बहस चलाये रखना चाहती है जबकि बसों का विवाद निरर्थक है। इसे बस करना चाहिए, हजारों श्रमिक दूसरें राज्यों और सीमाओं में अभी भी फंसे हुए है। उनके बारे में उत्तर प्रदेश की सरकार संवेदनशील नहीं है।


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