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अमेरिकी दबाव के संदर्भ में पुतिन की महत्वपूर्ण भारत यात्रा

मास्को में 9 मई को हजारों रूसी सैनिकों ने रेड स्क्वायर पर मार्च किया जो द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की 80 वीं वर्षगांठ पर आयोजित की गई थी

अमेरिकी दबाव के संदर्भ में पुतिन की महत्वपूर्ण भारत यात्रा
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- डॉ. अजय पटनायक

रणनीतिक साझेदारी प्रारूप में इस वर्ष पुतिन की यात्रा न केवल व्यापार और अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बल्कि संघर्ष विराम समझौते के बाद भारत और अन्य ब्रिक्स सदस्यों की संभावित भागीदारी के लिए भी जरूरी है। यूरोपीय शांति रक्षकों के बारे में रूस के विरोध को देखते हुए अन्य देशों के लोग मास्को को स्वीकार्य हो सकते हैं। यहां तक कि राष्ट्रसंघ शांति स्थापना के लिए भारत जैसी तटस्थ शक्तियों की आवश्यकता होगी

मास्को में 9 मई को हजारों रूसी सैनिकों ने रेड स्क्वायर पर मार्च किया जो द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की 80 वीं वर्षगांठ पर आयोजित की गई थी। इस मौके पर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य विश्व नेता उपस्थित थे। द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए 2.5 करोड़ से 2.7 करोड़ सोवियत सैनिकों और नागरिकों को यह दिन समर्पित किया गया। भारत की ओर से रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने प्रतिनिधित्व किया क्योंकि 22 अप्रैल को पहलगाम हमले और परवर्ती घटनाओं के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शामिल नहीं हो सके।

पहलगाम हमले के बाद पुतिन और मोदी ने फोन पर बातचीत के दौरान भारत-रूस संबंधों को मजबूत करने और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर चर्चा की। पुतिन ने इस बार भारत में दोनों देशों के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है।

अक्टूबर, 2000 में भारत-रूस सामरिक भागीदारी संबंधी घोषणा पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से भारतीय प्रधानमंत्री व रूसी परिसंघ के राष्ट्रपति के बीच शिखर बैठकें होती रही हैं जिनमें दोनों देश सर्वोच्च स्तर पर अपने संबंधों का जायजा लेते हैं और उन्हें दिशा एवं प्रोत्साहन प्रदान करते हैं। ये दौरे प्रत्येक देश के नेताओं के बीच वैकल्पिक होते हैं। चूंकि मोदी ने पिछले साल जुलाई में रूस का दौरा किया था इसलिए रूसी राष्ट्रपति की अगली यात्रा इस साल कभी भी होने की उम्मीद है।

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों और राजनयिक अलगाव ने रूस को पश्चिम के बाहर सहभागियों की तलाश करने के लिए मजबूर किया। पुतिन ने ब्रिक्स, एससीओ और जी-20 जैसे मंचों पर नेताओं से मिलने के हर अवसर का उपयोग किया है लेकिन अधिक उपयोगी और सहायक स्टैंड-अलोन द्विपक्षीय बैठकें हैं। रूस ने बहुपक्षीय और द्विपक्षीय दोनों प्रारूपों की कोशिश की है। 2022 में ही सभी पांच मध्य एशियाई नेताओं ने मास्को में 9 मई को आयोजित विजय दिवस परेड में भाग लिया था। इस साल रूस ने जीत की 80वीं वर्षगांठ के लिए भारत और चीन सहित कई अन्य 'मित्रÓ देशों के नेताओं को आमंत्रित किया।

यूक्रेन में युद्ध के बाद से इस विजय दिवस परेड का रूस के लिए विशेष अर्थ है। यूक्रेन में रूस के विशेष सैन्य अभियानों के मुख्य लक्ष्यों में से एक 'गैर नाज़ीकरण' रहा है। मित्र देशों के नेताओं को निमंत्रण का उद्देश्य केवल रूस की साझेदारी की विश्वसनीयता का प्रदर्शन करना नहीं बल्कि यह संदेश देना भी है कि राष्ट्रवाद की आड़ में फासीवादी अभी भी बहु-जातीय और बहु-सांस्कृतिक देशों को तोड़ने के लिए उपयोग करते हैं। इस तरह उनके खिलाफ लड़ाई अभी भी प्रासंगिक और आवश्यक है।
भारत-रूस संबंध वार्षिक रणनीतिक साझेदारी बैठक का प्रारूप अधिक फलदायी रहा है और दोनों देशों के संबंध इस आधार पर लगातार मजबूत हुए हैं। 2000 के बाद यूक्रेन युद्ध की शुरुआत तक दोनों देशों के सर्वोच्च नेतृत्व बैठक कर रहे हैं।

दो साल के अंतराल के बाद मोदी ने 2024 में रूस का दौरा किया और इस साल पुतिन की यात्रा होने वाली है। जब पुतिन ने वर्ष 2021 में भारत का दौरा किया था तब अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर (आईएएसटीसी) एवं व्लादिवोस्तोक-चेन्नई कॉरिडोर जैसे परिवहन गलियारों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। अगले साल यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में समरकंद (एससीओ बैठक) में बैठक हुई। रूस के हित मुख्य रूप से इस बात पर केंद्रित थे कि मित्र देशों को यूक्रेन पर अपनी स्थिति कैसे समझाई जाए। समरकंद में मोदी ने प्रसिद्ध बयान दिया कि 'अब युद्धों का युग नहीं है'। 2024 में कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पुतिन - मोदी बैठक हुई जिसके बाद जुलाई 2024 में 22वें वार्षिक रणनीतिक साझेदारी शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। ये बैठकें रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की परवाह किए बिना व्यापार और आर्थिक संबंधों को बनाए रखने में मदद करती हैं। तेल आयात रोकने के पश्चिमी देशों के आह्वान के बावजूद भारत ने रूसी तेल खरीद जारी रखी। भारत ने यूक्रेन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ कभी मतदान नहीं किया है जिसे मास्को द्वारा बहुत सराहा गया।

2025 में दोनों नेताओं की अगली बैठक वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक वातावरण में कुछ प्रमुख बदलावों की पृष्ठभूमि में होगी। राजनीतिक दृष्टि से रूस पर अमेरिका द्वारा यूक्रेन के साथ संघर्ष विराम समझौते तक पहुंचने के लिए दबाव डाला जा रहा है। रूस ने युद्ध समाप्त करने की इच्छा तो दिखाई है लेकिन वह तीन वर्षों में किए गए लाभ की कीमत और यूक्रेन के लिए नाटो सदस्यता के विरोध जैसे अपने अन्य मुख्य सुरक्षा हितों की कीमत पर ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है। रूस द्वारा 19-20 अप्रैल को 30 घंटे के घोषित ईस्टर युद्धविराम के बावजूद दोनों देशों के बीच वास्तविक युद्धविराम अभी भी दूर है। रूस द्वारा संघर्ष विराम समझौते में विलम्ब को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति समय-समय पर अधिक टैरिफ लगाने की धमकी देते हैं।

आज अमेरिका के सभी व्यापारिक भागीदारों पर अमेरिकी टैरिफ का खतरा मंडरा रहा है। इसमें भारत भी शामिल है जो नए अमेरिकी प्रशासन के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत करने के लिए तैयार और काम करने के बावजूद निश्चित नहीं है कि अमेरिकी नेता की अप्रत्याशित प्रकृति को देखते हुए भविष्य क्या होगा। सभी देशों को पता है कि रियायतें देने से आगे रियायतों की मांग होगी जो उनकी अर्थव्यवस्थाओं के लिए हानिकारक हो सकती है। खुद को और अधिक अमेरिकी झटकों से बचाने के लिए भारत व रूस को आपस में तथा अन्य देशों के साथ व्यापार एवं आर्थिक संबंधों का विस्तार करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए चीन हाल ही में द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करने के लिए वियतनाम, कंबोडिया तथा मलेशिया के साथ बातचीत कर रहा है। भारत व रूस को अपने व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करना होगा जिसमें भारतीय कंपनियां रूस के तेल व गैस, फार्मास्यूटिकल्स एवं आईटी क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं जबकि रूसी कंपनियां भारत के ऊर्जा, बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं। ये सब अमेरिका का विरोध किए बिना किया जाना चाहिए और इसके लिए चतुराई भरी बातचीत और रणनीति की आवश्यकता है।

ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद से वैश्विक भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और रणनीतिक संदर्भ बदल गए हैं। रूस अब एक बहिष्कृत देश नहीं है जिसे अमेरिका यूक्रेन पर एक सौदा करने के लिए उलझा रहा है। अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते के सिलसिले में चर्चा के लिए मास्को मददगार हो सकता है। रूस के साथ अमेरिका ऊर्जा समझौते भी चाहता है। इस पृष्ठभूमि में पुतिन की नई दिल्ली यात्रा पर वैश्विक ध्यान आकर्षित होगा। चूंकि भारत अमेरिका का भी करीबी है इसलिए अमेरिका नई दिल्ली को संकेत दे सकता है कि वह रूस के साथ बातचीत से क्या चाहते हैं।

रणनीतिक साझेदारी प्रारूप में इस वर्ष पुतिन की यात्रा न केवल व्यापार और अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बल्कि संघर्ष विराम समझौते के बाद भारत और अन्य ब्रिक्स सदस्यों की संभावित भागीदारी के लिए भी जरूरी है। यूरोपीय शांति रक्षकों के बारे में रूस के विरोध को देखते हुए अन्य देशों के लोग मास्को को स्वीकार्य हो सकते हैं। यहां तक कि राष्ट्रसंघ शांति स्थापना के लिए भारत जैसी तटस्थ शक्तियों की आवश्यकता होगी जो मास्को और कीव दोनों को स्वीकार्य होगा।
हालांकि पुतिन की भारत यात्रा की पुष्टि हो गई है लेकिन तारीखों की घोषणा अभी बाकी है। व्यापार व टैरिफ मुद्दों एवं युद्ध के बाद शांति प्रयासों के लिए मास्को और नई दिल्ली को रणनीतिक रूप से संलग्न होने की जरूरत होगी जो नेताओं की उच्चतम स्तर पर बैठक द्वारा सबसे अच्छी तरह से पूरा होता है। यह पुतिन की आगामी यात्रा को महत्वपूर्ण बनाता है।

(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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