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समाजवादी विचार को जीने वाले नेता थे पुरुषोत्तम कौशिक

पुरूषोत्तम कौशिक जी के बड़े बेटे विश्वनाथ कौशिक ने 5 अक्टूबर की रात को 10 बजे वाट्सअप संदेश से सूचित किया कि कौशिक जी नहीं रहे

समाजवादी विचार को जीने वाले नेता थे पुरुषोत्तम कौशिक
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रायपुर। पुरूषोत्तम कौशिक जी के बड़े बेटे विश्वनाथ कौशिक ने 5 अक्टूबर की रात को 10 बजे वाट्सअप संदेश से सूचित किया कि कौशिक जी नहीं रहे। विश्वास नहीं हुआ। कई बार उनका चेहरा देखाए फिर मनोज दुबे जी का फेसबुक संदेश भी। पुरुषोत्तम कौशिक जी छठवीं दशक के मध्य प्रदेश के समाजवादी आंदोलन के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे। उनका संबंध जार्ज साहब, मधु लिमये, मधुदंडवते, सुरेंद्रमोहन और शरद यादव से अत्यंत घनिष्ठता का था।

पुरूषोत्तम कौशिक जी से मेरा परिचय ग्वालियर में स्व. विष्णुदत्त तिवारीजी के घर हुआ था। उनकी सरलता, सादगी, सौम्य चेहरा और प्रभावशाली नेतृत्व ने मुझे अत्यंत प्रभावित किया। समाजवादी आंदोलन में कम ही ऐसे नेता थे जो कौशिक जी की तरह से सलीके से सफेद धोती-कुर्ता पहनते हों। ग्वालियर के बाद दिल्ली में लगातार मुलाकात होती रही। जब भी घर जाताए एक केतली में काली चाय और मैरीगोल्ड के दो बिस्कुट के साथ चर्चा होती। वे श्री जार्ज फर्नांडीज के अत्यंत करीबी थे। लेकिन स्वतंत्र विचारों वाले सिद्ध किसान, समाजवादी नेता थे। मंत्री होने के बावजूद सभी कार्यकर्ताओं से मुलाकात किया करते थे तथा यथासंभव मदद भी।

जनता पार्टी की टूट के बाद ज्यादा दिन मंत्री नहीं रहे तथा दिल्ली में उन्होंने पी एचडी खत्म करी, तब उन्होंने मुझसे रायपुर और भिलाई में जाकर उनके काम संभालने का प्रस्ताव किया। वे चाहते थे कि मैं उनके संसदीय क्षेत्र में ही सक्रिय राजनीति करूं तथा रायपुर को केंद्र बनाकर मध्य प्रदेश में समाजवादी आंदोलन को मजबूती दूं। कौशिक जी के कहने पर मैं वहां पर गया भी लेकिन मुझे छत्तीसगढ़ी और परदेशी वाला भाव लोगों के बीच देखने को मिला। स्थानीय लोगों और बाहरी लोगों के बीच अलगाव दिखलाई पड़ा। मैं किसी पर निर्भर होकर राजनीति नहीं करना चाहता था, इस कारण कौशिक जी के साथ रायपुर, भिलाई, महासमुंद में संगठन के स्तर पर सक्रिय नहीं हुआ। लेकिन कौशिक जी के साथ मप्र में संगठन सक्रिय था।

जनता दल की जब सरकार बनी तब विश्वनाथ प्रताप सिंह कौशिक जी को मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन वे विद्याचरण शुक्ल के दबाव में थे। श्री शुक्ला जन मोर्चा गुट में होने के कारण प्रबल दावेदारी कर रहे थे। इस कारण भिलाई से जीतकर आने के बावजूद कौशिक जी को मंत्री नहीं बनाया गया। जब वीपी सिंह की सरकार चली गई तब चंद्रशेखर जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कौशिक जी पर बहुत दबाव डाला कि वे अपनी इच्छानुसार मंत्रालय लेकर केंद्रीय मंत्री की शपथ लें, लेकिन कौशिक जी तैयार नहीं हुए।

एक वाकया मुझे आज भी याद है, जिसकी कल्पना करना आम राजनीतिक कार्यकर्ता और नेता के लिए बहुत मुश्किल है। उन दिनों मैं 421 वि_लभाई पटेल हाउस में रहता थाए जो कौशिक जी के नाम पर आबंटित कमरा थाए वहां दोपहर के समय ओमप्रकाश चौटाला जी, यशवंत सिन्हा जी, बेनी माधवजी और ओमप्रकाश श्रीवास्तव जी आये। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष जी ;जनता पार्टी के सभी कार्यकर्ता चंद्रशेखर जी को अध्यक्ष जी के तौर पर ही संबोधित करते थे चाहते हैं कि आप आज ही शपथ लें। स्वयं मंत्रालय तय कर लें। लेकिन बिना एक मिनट लगाये कौशिक जी तैयार नहीं हुए। सभी नेतागण सोफे से उठकर नीचे बैठ गये तथा उन्होंने कहा कि हम आपको साथ लेकर ही जाएंगे। लेकिन कौशिक जी तैयार नहीं हुए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुझे मतदाताओं ने वीपी सिंह जनतादल के नाम पर वोट दिया है। मैं उनको नहीं छोड़ सकता। राजनीति में लोभए लालच, पदलोलुपता जिस स्तर पर बढ़ी है उसमें यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि कोई व्यक्ति इस तरह आसानी से केंद्रीय मंत्री का पद ठुकरा सकता है।

दूसरा वाकया मुझे याद है। पुरूषोत्तम कौशिक को कपार्ट की रीजनल कमेटी का सदस्य बनाया जाना। इस कमेटी में मैं भी था तथा अन्ना हजारे भी थे। हम दोनों एक साथ अहमदाबाद में होने वाली बैठकों में जाया करते थे। कौशिक जी की ग्रामीण विकास में अत्यधिक रुचि थी। वे महासमुंद के इलाके में संस्था के माध्यम से ग्रामीण विकास का कार्य भी किया करते थे। लेकिन मैंने देखा था कि उनकी संस्था का कोई सक्रिय सचिवालय नहीं थास जिसे वे स्थापित करना चाहते थे। जब भी कभी सचिवालय स्थापित करने की बात आतीए संसाधनों के अभाव में फैसला टल जाता।

तीसरा वाकया मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के बाद रायपुर का है जब पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह रायपुर आये, हवाई अड्डे से मीटिंग स्थल तक रास्ते भर उन पर पत्थर फेंके गये, काल झंडे दिखाये गये, लेकिन प्रशासन और सरकार के तमाम दबाव के बावजूद पुरुषोत्तम कौशिक जी ने बड़ी सभा का आयोजन किया। कौशिक जी किसी भी परिस्थिति से घबराने वाले नेता नहीं थे।
छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के लिए चलाये गये आंदोलन के वे प्रमुख नेता थे। वैसे कई संगठन अलग अलग नये राज्य के गठन के लिए कार्य कर रहे थे लेकिन सभी संगठनों के सर्वमान्य नेता के तौर पर पुरुषोत्तम कौशिक जी को जाना जाता था। राजनीति से एक किस्म का सन्यास लेने बावजूद भी छत्तीसगढ़ में जो भी बड़े जनआंदोलन चले उनको कौशिक जी का वरद हस्त प्राप्त रहा, चाहे वह नशाबंदी आंदोलन हो या अभी चल रहा किसान आंदोलन।

कौशिक जी ने कभी भी सत्ता पक्ष या विपक्ष में रहते हुए घटिया स्तर की राजनीति नहीं की। कौशिक जी तमाम समाजवादी नेताओं के नजदीक थे लेकिन वे किसी को भी अपना नेता नहीं मानते थे। समाजवादी सोच होने के नाते सभी वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करते थे। लेकिन किसी भी गुटबाजी से दूर रहते थे।

मैं लगातार कौशिक जी के साथ दौरा किया करता था। उनका हजारों समाजवादी कार्यकर्ताओं के साथ नजदीकी संबंध और रिश्ता था। मैं जब भी रायपुर जाता कौशिक जी के यहां समता कॉलोनी में ही ठहरा करता था। कौशिक जी जब चुनाव हार गये तथा वि_लभाई पटेल हाउस छूट गया तब वे वापस महासमुंद चले गये। समाजवादी विचार के विभिन्न पार्टियों के प्रमुख नेता उनसे बार.बार मिल कर छत्तीसगढ़ की कमान संभालने का अनुरोध किया करते थे लेकिन वे कभी तैयार नहीं हुए। स्वयं वीपी सिंह जी ने, मुलायम ंिसंह जी ने तथा जार्ज फ र्नांडीज जी ने उनसे कई बार अनुरोध किया लेकिन वे किसी भी एक समाजवादी गुट द्वारा बनायी गयी पार्टी के साथ कार्य करने को तैयार नहीं थे। वहां खेतीवाड़ी में रुचि लेते थे। बीच-बीच में जब भी कभी रहता उनके साथ ही ठहरता। हर समय वे समाजवादी आंदोलन को एकजुट करने की बात करते थे। विधायकए सांसदए मंत्री रहने के बावजूद कभी उन पर भ्रष्टाचार, परिवारवाद तथा राजनीतिक सत्ता के दुरूपयोग करने का कोई आरोप नहीं लगा।

लगातार विभिन्न पार्टियों के नेता उनके छोटे बेटे दिलीप कौशिक को परंपरागत सीट से टिकट देने का प्रस्ताव देते रहे लेकिन कभी कौशिक जी ने दोनों बेटों को अपने जीते जी स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने आजीवन अपनी विश्वसनीयता कायम रखी। सिद्धांतवादी राजनीतिज्ञ होने के नाते उनका मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में बहुत सम्मान था। देशभर के समाजवादी कार्यकर्ता भी उन्हें अपने एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर देखते थे।

अंतिम बार मेरी मुलाकात रायपुर में हुई थी, जब छत्तीसगढ़ के समाजवादियों ने समाजवादी समागम आयोजित कर उनका सम्मान किया था। फोन पर बातचीत होती रहती थी। 1 अक्टूबर को फेसबुक पर उनके बारे में मैंने लिखा था कि अपने जमाने में छत्तीसगढ़ के सबसे रहीस व्यक्ति नेमीचंद जी, उन्हें राईस ंिकंग के नाम से भी जाना जाता था तथा विद्याचरण शुक्ल जिनका एक समय में खानदानी तौर पर मध्य प्रदेश में एक छत्र राज्य हुआ करता था, दोनों दिग्गजों को न्यूनतम संसाधनों से हराने वाले समाजवादी नेता पुरुषोत्तम कौशिक जी थे। इन्होंने सतत रूप से छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलन का नेतृत्व किया।

उन्होंने जो भी संघर्ष किया उसमें किसानों की जीत हुई। ऐसे समय में जब राजनीतिक दलों और राजनेताओं की विश्वसनीयता समाज में लगातार घटती चली जा रही है। नयी पीढ़ी के लिए श्री पुरुषोत्तम कौशिक जी का संपूर्ण राजनैतिक जीवन प्रेरणादायी है। समाजवादी सिद्धांत को जीने वाले सच्चे समाजवादी को शत-शत नमन।


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