Top
Begin typing your search above and press return to search.

'इंडिया' की बैठक के प्रयोजन और निहितार्थ

1 जून को लोकसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण का मतदान जब तक समाप्त होगा

इंडिया की बैठक के प्रयोजन और निहितार्थ
X

1 जून को लोकसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम चरण का मतदान जब तक समाप्त होगा, संयुक्त प्रतिपक्ष यानी इंडिया की दिल्ली में बैठक आहूत की गई है। यह बैठक एक ओर जीत के प्रति इंडिया के विश्वास की अभिव्यक्ति है वहीं वह सरकार बनाने की रणनीति का हिस्सा भी कही जा सकती है। चुनावी नतीजों को लेकर जैसे अनुमान लगाये जा रहे हैं, वे निश्चित रूप से विपक्षी गठबन्धन में उत्साह का संचार करने के लिये पर्याप्त हैं। तो भी बैठक बुलाया जाना इस बात का संकेत है कि इंडिया चौकन्ना है और वह ऐसी कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता जिससे जोड़-तोड़ में माहिर भारतीय जनता पार्टी सेंधमारी कर सके। बैठक को लेकर यह भी कयास लगाये जा रहे हैं कि बहुमत मिलने की स्थिति में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार इसमें तय हो सकता है।

चुनाव के परिणाम 4 जून को निकलेंगे। दोपहर तक ही तय हो जायेगा कि किसकी सरकार बनेगी। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी अपने बल पर 370 और अपने सहयोगियों (नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस- एनडीए) के साथ मिलकर 400 पार जाने का नारा दे रही है। हालांकि यह लक्ष्य 7 मई को हुए मतदान के तीसरे चरण के बाद ही हवा-हवाई हो चुका है। तो भी इसका जिक्र कभी-कभार भाजपा की प्रचार सभाओं में होता रहता है। यह अलग बात है कि अब भाजपा इतना ही कह रही है कि वह सरकार बनाने लायक सीटें (272) तो ले ही आयेगी, यानी मोदी तीसरी बार पीएम बनने जा रहे हैं। दूसरी तरफ जो जमीनी हालात दिखाई दे रहे हैं उससे इंडिया को बढ़त साफ महसूस की जा सकती है।

अब तो केवल 8 राज्यों की मात्र 57 सीटों पर मतदान रह गया है लेकिन अब तक कांग्रेस व गठबन्धन के सहयोगी दलों की सभाओं में उमड़ी भीड़ ने बता दिया है कि जादुई आंकड़े को भाजपा नहीं इंडिया छूने जा रहा है। जिस उत्तर प्रदेश को भाजपा का सबसे मजबूत किला कहा जाता है, वहां भी उसे अपनी कई सीटें बचाने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां 2019 में भाजपा का स्ट्राइक रेट शत प्रतिशत या लगभग उतने का स्ट्राइक रेट था, वहां के बारे में पूरे दावे से कोई नहीं कह पा रहा है कि वह इस प्रदर्शन को दोहरा सकेगी। उल्टे, केरल, तमिलनाडु, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब जैसे राज्यों में इस प्रकार का प्रदर्शन इंडिया द्वारा होना सम्भव बतलाया जा रहा है। जिस हिन्दी पट्टी को लेकर भाजपा-एनडीए बहुत आश्वस्त थे, वहां हर राज्य में उनकी नाव डगमगा रही है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक में भाजपा पिछले दोनों (2014 व 19) चुनावों के मुकाबले पिछड़ती दिख रही है।

इस स्थिति में अनेक ऐसे तथ्य हैं जिन्हें लेकर इंडिया को बहुत सावधान रहने की आवश्यकता होगी। सम्भवत: प्रस्तावित बैठक का यह भी एक महत्वपूर्ण एजेंडा होगा; और यदि न हो तो उसे होना चाहिये। मुश्किल से 2 वर्ष पहले तक भाजपा के बारे में लोगों की यही राय थी कि उसे पराजित नहीं किया जा सकता और मोदी का कोई विकल्प नहीं है। राहुल गांधी की दो भारत जोड़ो यात्राओं, मल्लिकार्जुन खरगे का कुशल नेतृत्व, प्रियंका गांधी की मेहनत, शरद पवार, ममता बनर्जी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, अरविंद केजरीवाल, एमके स्टालिन, कल्पना सोरेन आदि के जुझारूपन ने इंडिया को जीत की दहलीज तक लाया है। इसके बाद रह जाती है तो सतर्कता- ईवीएम को लेकर।

543 सीटों वाली लोकसभा के लिये बटन दबी मशीनों को देश भर के जिन हजारों स्ट्रांग रूम में रखा गया है उनकी कक्षों के खुलने तक निगरानी और चौकस निगाहों से वोटों की गिनती उतनी ही आवश्यक है जितनी अब तक की जमीनी दौड़-धूप। सरकार बनाने के लिये भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। यह कहने की भी ज़रूरत नहीं है। यह भी ख्याल रखना होगा कि अब भी तमाम शासकीय मशीनरी सरकार के अप्रत्यक्ष नियंत्रण में है। कायदे से वह केन्द्रीय निर्वाचन आयोग के तहत है पर उसकी पिछली कार्यप्रणाली ने कह दिया है कि उससे ऐसी कोई आशा न की जाये क्योंकि अपनी निष्पक्षता व स्वायत्तता का तमगा उसने खुद ही निकाल फेंका है। प्रशासन, पुलिस एवं सारी वे एजेंसियां जो नयी सरकार के गठन के वक्त थोड़ी सी भी भूमिका निभाती हैं, उन सभी पर नज़र रखनी होगी।

एक बात तो साफ है; और जिसे सभी मान रहे हैं, वह यह कि इंडिया की सम्भावित जीत के बाद भी मोदी व भाजपा की ओर से सारी ऐसी कोशिशें की जायेंगी कि सत्ता उसके हाथ में रहे। ऐसा मानने वालों की तादाद बहुत कम है कि वह बहुत शालीनता व आसानी से सत्ता को जाने देगी।

कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति भी बन सकती है। ऐसे में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जायेगी। देश का यह सर्वोच्च कार्यालय भी मोदी के नियंत्रण में काम करता है- यह बात सामने आ चुकी है। यदि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर आती है और इंडिया को स्पष्ट बहुमत मिलता है तब तो ठीक है, परन्तु अगर एनडीए के अल्पमत में होने के बावजूद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर आती है तो उसे राष्ट्रपति पहले आमंत्रित कर सकती हैं। इंडिया को इस बाबत तैयारी कर रखनी होगी। उसे पहले सरकार बनाने का दावा पेश करना होगा। इसी बैठक में पीएम का नाम तय करना इस परिप्रेक्ष्य में रणनीतिक रूप से बहुत ज़रूरी है वरना बाजी हाथ से निकल जायेगी।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it