अशिष्टता के शब्दकोश को नहीं अपनाएगी जनता
कुफ्र टूटा खुदा खुदा करके! आखिर यह लंबा उकताने वाला चुनाव खत्म होने को आ ही गया

- शकील अख्तर
हमारे गांवों में हास्यबोध बहुत है। कामन सेंस भी। पहले भी शायद बताया कि कृषि के मामले में पहले नोबल पुरस्कार विजेता नार्मन बोरलाग ने कहा था कि- भारत के किसानों में सहज ज्ञान बहुत है। वे कृषि की अपनी पारंपरिक पद्धति को बहुत सफलतापूर्वक नई पीढ़ी को हस्तांतरित करते रहते हैं और नया ज्ञान भी सीखते रहते हैं। इन्दिरा गांधी द्वारा की गई हरित क्रान्ति से बोरलाग बहुत प्रभावित थे।
कुफ्र टूटा खुदा खुदा करके! आखिर यह लंबा उकताने वाला चुनाव खत्म होने को आ ही गया। 6 दौर हो गए। सातवां और आखिरी एक जून को हो जाएगा।
मगर यह एक जून आने में इतनी देर क्यों कर रही है? सब चाहते हैं कि यह जल्दी आए। चुनाव निपट जाएं ताकि प्रधानमंत्री को आराम मिल सके।
सबको डर है कि अभी बचे 5 दिन में प्रधानमंत्री पता नहीं और क्या बोल जाएं! खुद उनका चुनाव बचा हुआ है। प्रियंका गांधी और डिंपल यादव ने उनके चुनाव क्षेत्र वाराणसी जाकर माहौल गर्म कर दिया है। दोनों का संयुक्त रोड शो बहुत सफल रहा। वाराणसी के लोगों में जिस तरह का उत्साह था वह प्रधानमंत्री को और उकसा सकता है।
अभी तक उन्होंने क्या क्या बोला यह बताना बेकार है। इतिहास में भी कहीं दर्ज नहीं होगा। क्या कभी किसी ने इतिहास में पढ़ा है- भैंस! अभी हाल में मुजरा कहा है। इसके आगे अभी क्या क्या कह सकते हैं किसी को नहीं पता। एक लंबी लिस्ट है। जिसमें टोंटी भी है। बाकी चीजें मंगलसूत्र, बिजली, बैंक अकाउंट मछली वगैरह हम सोच सकते हैं कि हमारी बातचीत में कभी न कभी आने वाले शब्द हैं। मगर यह भैंस, मुजरा, टोंटी क्या आम बोलचाल में उपयोग होते हैं?
भारत के प्रधानमंत्री जो कहते थे दुनिया उसे ध्यानपूर्वक सुनती थी। आज जो प्रधानमंत्री कह रहे हैं उसकी गांवों तक में हंसी हो रही है। सबसे ज्यादा मजा लोग भैंस खोल कर ले जाएंगे, का ले रहे हैं। कांग्रेस भैंस ले जाएगी! लोग हंस रहे हैं। कह रहे हैं कि सुना यह था कि कांग्रेस विदेशी कपड़े ले जाती थी। उसकी होली जलाती थी। अशिक्षा और गरीबी ले जाने की बात करती थी। बीमारियों को दूर करने की। पोलियो ड्राप की। गांव-गांव में प्राइमरी हेल्थ सेन्टर खुलवाए थे। मां और बच्चे का स्वास्थ्य देखा जाता था। स्कूल में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) शुरू किया था। मगर ये भैंस ले जाएंगे? कहकर गांव वाले हंसते हैं।
हमारे गांवों में हास्यबोध बहुत है। कामन सेंस भी। पहले भी शायद बताया कि कृषि के मामले में पहले नोबल पुरस्कार विजेता नार्मन बोरलाग ने कहा था कि- भारत के किसानों में सहज ज्ञान बहुत है। वे कृषि की अपनी पारंपरिक पद्धति को बहुत सफलतापूर्वक नई पीढ़ी को हस्तांतरित करते रहते हैं और नया ज्ञान भी सीखते रहते हैं। इन्दिरा गांधी द्वारा की गई हरित क्रान्ति से बोरलाग बहुत प्रभावित थे।
तो भारत का ग्रामीण सब समझता है। उसमें जबर्दस्त सामान्य समझ है। जब इन्दिराजी ने हरित क्रान्ति की शुरुआत की तब यह कहा जा रहा था कि भारत का किसान नई खेती के लिए तैयार नहीं होगा। यह वे लोग थे जो भारत को यथास्थितिवादी बनाए रखना चाहते थे। किसी भी नए परिवर्तन से बचते थे। मगर भारत के किसान ने बहुत तेजी के साथ नई खेती में दिलचस्पी ली। और भारत के गोदाम अनाज से भर दिए।
बोरलाग अमेरिकी थे। उसी अमेरिका के जिसके राष्ट्रपति निक्सन से यह कहते हुए इन्दिरा गांधी ने हरित क्रान्ति शुरू की थी कि ले जाओ अपने अनाज के जहाज वापस। अनाज के बहाने दबाव मत डालो कि हम पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद न करें। पाकिस्तान उन पर अत्याचार कर रहा है। वे शरण लेने के लिए हमारे देश में आ रहे हैं। हम चुप नहीं रह सकते। पाकिस्तान को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। और वही हुआ। इन्दिरा ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।
तो सोचिए पाकिस्तान में तो इन्दिरा गांधी के खिलाफ माहौल था ही उस अमेरिका में भी था जो इन्दिरा के सामने पाकिस्तान की मदद नहीं कर पाया। उस समय वहां के कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलाग भारत की तारीफ करते हैं। यह बड़ी बात है और भारत का किसान इस तारीफ के काबिल भी था, अब भी है।
खैर तो कभी हमारे देश के प्रधानमंत्री इस स्तर की बातें करते थे। अमेरिका को झुकाने वाली। उससे पहले नेहरू साइंटिफिक टेंपर ( वैज्ञानिक मिजाज) की बात करते थे। और केवल बात नहीं करते थे उसे बनाने के लिए देश भर में साइंस इंस्टिट्यूट स्थापित किए। आईआईटी खोले। एम्स खोला। उच्च शिक्षा से लेकर स्कूली शिक्षा तक एक माहौल बनाया।
ऐसे हुआ करते थे देश के प्रधानमंत्री। लाल बहादुर शास्त्री जिनका जय जवान जय किसान अभी कुछ साल पहले तक जनता में ही नहीं सरकारों में भी मान्य था। अब जनता में तो बचा है। मगर सरकार ने जवान और किसान दोनों को तोड़ दिया। जवान अग्निवीर बनाकर। ठेके की नौकरी चार साल की और किसान जो आपके लिए खेत में अनाज उगाता है आपने उसके लिए सड़कों पर कीलें गाड़कर। अब जवान और किसान जब अपने लिए जय सुनता है तो उसे लगता है कि कितनी पुरानी बात है जब उसकी जय होती थी। आज तो क्षय (मिटाने) की बात हो रही है। प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। सब तरफ से विरोध हो रहा था कंप्यूटर का। उस समय एक सदी आगे की सोची। कंप्यूटर क्रान्ति की। शिक्षा में ऐसा नवाचार (इनोवेशन) लाए गांवों के लड़के-लड़कियां शहर के अच्छे स्कूलों के बराबर खड़े हो गए। गांवों में नवोदय स्कूल खोलकर उन बच्चों को नए अवसर दे दिए जो कभी सोच भी नहीं सकते थे कि वे इस उच्च स्तर पर भी पढ़ सकते हैं।
मनमोहन सिंह। जब 2008 में पूरी दुनिया मंदी की शिकार हो रही थी तब मनमोहन सिंह ने भारत को उससे बचाया। इतने बड़े आर्थिक विशेषज्ञ थे कि उन्हीं के बारे में कहा जाता है कि जब वे बोलते थे तो पूरी दुनिया उन्हें सुनती थी। उनके बारे में आप कहते हैं देहाती औरत! मनमोहन सिंह का कद कम नहीं हुआ। सम्मान किसका गिरा अगर सोच सकते हैं तो आप खुद सोचिए।
भारत के प्रधानमंत्रियों का सम्मान विश्व भर में रहा है। यह इतिहास में दर्ज है। गुट निरपेक्ष आंदोलन आज भी विदेश नीति, इन्टरनेशनल स्टडीज में पढ़ाया जाता है और इस आंदोलन के जनक जवाहर लाल नेहरू के बारे में भी। दुनिया के विश्वविद्यालयों में जब राजशाही ( मोनार्की) के खात्मे के बारे में पढ़ाया जाता है तो उसमें आखिरी कील ठोकने वाली भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का भी जिक्र होता है। राजाओं के प्रीविपर्स और प्रिवलेज खत्म करने का।
विश्वविध्यालय का जिक्र चला तो यह याद रखना भी जरूरी है कि जिन प्रधानमंत्री के लिए रेनकोट पहनकर नहाने वाला कहा गया उनके नाम से कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में छात्रवृति दी जाती है। अब कैम्ब्रिज क्या है? शायद आज की तारीख में कोई यह भी पूछ सकता है। और कोई सामान्य आदमी पूछे तो एक बार ठीक भी है लेकिन डर यह लगता है कि भैंस की बात करने वाले भी पूछ सकते हैं। और जो संसद में नारे लगवा सकते हैं कि मनमोहन चोर है वे यह भी कह सकते हैं कि कैम्ब्रिज क्या है? दस साल हो गए। मनमोहन सिंह के खिलाफ एक आरोप साबित नहीं कर पाए। मगर उनका चरित्र हनन खूब किया। यहां तक कि उनके घर सीबीआई तक भेजी थी। मगर क्या मिला?
चुनाव आते हैं जाते हैं।मगर देश के प्रधानमंत्री का एक स्तर होता है। गरिमा (डिग्निटी) तो बड़ा शब्द है, उसे निभाना तो सबके लिए आसान नहीं है। मगर एक सामान्य स्तर बोलने का तो सब रखते हैं। वह भी खत्म कर दिया।
वैसे कहा तो यह जाता है कि जो स्तर ऊपर होता है वही नीचे आता है। भारत के प्रधानमंत्री जिन शब्दों को बोलते हैं वह जनता में भी चलने लगते हैं। मगर इस मामले में हमारे महान देश की जनता बहुत विवेकवान है। एक बार नहीं दस बार मुजरा बोल लें मगर जनता इस शब्द को आत्मसात नहीं करेगी। जर्सी गाय, कांग्रेस की विधवा, आजकल बोल रहे हैं शहजादे पहले एक के लिए बोलते थे अब कई बना दिए मगर जनता के शब्दकोष में यह नहीं आते। भाषा और शिष्टता के मामले में यह देश बहुत सभ्य और संस्कारी है। यहां अशिष्टता का शब्दकोश चलना बहुत मुश्किल है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


