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जनसुनवाई बनी तमाशा, जनता को मिले हताशा

जनसुनवाई में कई शिकायतकर्ता सालों से चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा। गरीब जनता अपनी दिहाड़ी छोड़ कलेक्टर कार्यालय पहुंचती है। कलेक्टर कार्यालय पहुंचने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है

जनसुनवाई बनी तमाशा, जनता को मिले हताशा
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गजेन्द्र इंगले
ग्वालियर: जनसुनवाई योजना की शुरुआत राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जी ने लोगो को किसी भी तरह की होने वाली परेशनियो से मुक्त करने के लिए की गयी है। इस योजना के तहत राज्य के नागरिक पर अत्याचार हो रहे है या उन्हें कोई समस्या है तो उन लोगो को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, ऐसे पीड़ित जनसुनवाई क माध्यम से समाधान पा सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा हो रहा है?
मंगलवार दोपहर 12 बजे का समय ग्वालियर कलेक्टर कार्यालय में जनसुनवाई चल रही थी। जिले के मुखिया कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह सहित कई अधिकारी उपस्थित ही नहीं थे। एडीएम एच बी शर्मा व अन्य एसडीएम युनूस कुरैशी जनता की समस्या सुन रहे थे। ज्यादातर मामलों में समस्या के समाधान की जगह को जनता को केवल धुत कार, फटकार व आश्वासन ही मिल रहे थे। उम्मीद की आस लिए आई जनता, मायूसी के आंसू लिए लोट रही थी।
आपको बता दें कि जनसुनवाई में कई ऐसे शिकायतकर्ता भी थे जो सालों से चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा। गरीब जनता अपनी दिहाड़ी छोड़ कलेक्टर कार्यालय पहुंचती है। कलेक्टर कार्यालय पहुंचने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है। पैदल ही यहां पहुंचना पड़ता है, फिर पहाड़ी चढ़नी पड़ती है। कोई बुजुर्ग बीमार या दिव्यांग यदि ऑटो से आए भी तो भी उसके पहाड़ी तो पैदल ही चढ़नी पड़ती है। इतने कष्ट उठाकर अपनी समस्या क समाधान क लिए जब शिकायतकर्ता टी धर्मराव सभागार पहुंचता भी है तो वहा का माहौल जनता को सुकून देने वाला कतई नहीं होता। चौकीदार व अन्य स्टाफ की धक्का मुक्की कहासुनी आम बात है। इससे भी दुखद हैं कि शिकायत सुनने वाले अधिकारी भी जनता से तू ताड़ क अभद्रता से बात करते हैं। संविधान में नागरिक को सम्मानपूर्वक जीवन जीने क अधिकार की धज्जियां उड़ती हैं। यदि ये सारे नागरिक भी मानहानि क मुकदमे लगाने लग जाएं तो न्यायालय में लंबित प्रकरण की बाढ आ जाए।
ऐसा नहीं है कि हमेशा से हालात ऐसे ही रहे हैं। जनसुनवाई का माहौल क्या हो सब मुखिया पर निर्भर करता है। पूर्व में भी पी नरहरी, संजय गोयल, अनुराग चौधरी जैसे कलेक्टर रहे हैं। उनके समय पर जनसुनवाई में माहौल जन हितैषी रहता था। जनता को पानी क साथ साथ चाय बिस्किट भी मिलता था। सबसे बड़ी बात ये कलेक्टर स्वयं जनसुनवाई में बैठकर जनता की समस्या को गम्भीरता से सुनते थे। ऐसे कई मामले उस समय सुर्खियों म रहते थे। जब जनता को त्वरित समाधान मिलता था।
नवागत कलेक्टर अक्षय कुमार सिंह भी संवेदनशील हैं। उन्हें भी इस तरह का प्रयास करना चाहिए व जनसुनवाई का माहौल जनता के लिए सरल बनाने का प्रयास करना चाहिए। पब्लिक सर्वेंट का अर्थ जन सेवक होता है। यह मूल भावना के साथ ही हर अधिकारी को जनसुनवाई में बैठना चाहिए। फिलहाल जनता का मोह जनसुनवाई से भंग होता जा रहा है। कई शिकायतकर्ता चक्कर काट कर थक चुके हैं। जनसुनवाई में आने वाली शिकायते भी कम हुई हैं। ऐसा ही हाल रहा तो जनता यहां अपनी पीड़ा लेकर आना ही बन्द कर देगी। इसलिए जनसुनवाई की व्यवस्था को जल्द से जल्द चुस्त दुरुस्त करना चाहिए।


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