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पं. श्यामलाल चतुर्वेदी को कवि एवं साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि

त्रिवेणी संगम साहित्य समिति के अध्यक्ष मकसूदन बरीवाला ने कहा कि चतुर्वेदी जी छत्तीसगढ़ी के गीतकार थे, उन्होंने महज 15 वर्ष की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था

पं. श्यामलाल चतुर्वेदी को कवि एवं साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि
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राजिम। छत्तीसगढ़ के जाने-माने साहित्यकार पद्मश्री पं. श्यामलाल चतुर्वेदी के निधन पर राजिम के कवि एवं साहित्यकारों ने गहरा दुख व्यक्त किया तथा उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर साहित्य समिति के अध्यक्ष काशीपुरी कुंदन ने कहा कि चतुर्वेदी जी बड़े ही सरल हृदय के थे। जब राजिम कुंभ शुरू हुआ तो उस समय वह बिना मानदेय के ही राजिम के लोगों को संबोधित करने के लिए सहज भाव से संगोष्ठी में उपस्थित होते रहे। वे यहां के संस्कार और संस्कृति को देख कर बड़े ही प्रसन्न नजर आते थे।

आज से कुछ वर्ष पहले भाटापारा में साहित्यिक कार्यक्रम था वहां श्यामलाल चतुर्वेदी जी आए हुए थे। उन्हें पता चला कि राजिम से कोई कवि आये हैं तो खासतौर से मुलाकात करने के लिए वह खुद चले आए। राजिम के प्रति उनका लगाव शुरू से था। त्रिवेणी संगम साहित्य समिति के अध्यक्ष मकसूदन बरीवाला ने कहा कि चतुर्वेदी जी छत्तीसगढ़ी के गीतकार थे। उन्होंने महज 15 वर्ष की उम्र में लिखना शुरू कर दिया था। वे बिलासपुर से रायपुर 114 किमी साइकल से आते थे। तुकाराम कंसारी ने कहा कि वे साहित्य के अनमोल हीरा थे। उनके जाने से हम सब को गहरा आघात पहुंचा है। उनकी मां उन्हें बचपन में ही पं. सुंदरलाल शर्मा के छत्तीसगढ़ी दानलीला रटा दी थी। नतीजतन वह छत्तीसगढ़ी में लिखना शुरू किए और समय अंतराल पश्चात छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के पहले चेयरमैन भी बने। वह छत्तीसगढ़ी में लिखने के लिए प्रेरित भी किए।

जितेंद्र सुकुमार ने कहा कि साहित्य शिक्षा व पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान चतुर्वेदी जी का रहा है। शासन ने उन्हें उत्कृष्ट नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा। उनकी प्रमुख कृतियों में कहानी संग्रह भोलवा भोलाराम, पर्रा भर लाई, बेटी के बिदा आदि प्रमुख है। गोकुल सेन ने कहा कि आकाशवाणी रायपुर में उनके साथ मुझे कविता पढ़ने का अवसर मिला वह पल मेरे लिए अविस्मरणीय रहा। उन्होंने मुझे लगातार लिखते रहने की बात कही।
इस अवसर पर संतोष सोनकर, श्रवण प्रखर, तुलोराम, किशोर निर्मलकर, रोहित साहू, रविंद्र साहू, संतोष प्रकृति, रामेश्वर रंगीला, मोहनलाल मानिकपुन, टीकमचंद सेन, रमेश सोनसायटी सहित बड़ी संख्या में कवि एवं साहित्यकार उपस्थित थे।


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