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मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी का हो रहा विरोध

एनआईए ने कश्मीर के जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज को गिरफ्तार कर लिया है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी का हो रहा विरोध
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2016 में 'अवैध' गिरफ्तारी

एनआईए ने अक्टूबर 2020 में भी परवेज के घर और दफ्तर समेत कश्मीर में कई स्थानों पर छापे मारे थे. परवेज को इससे पहले भी एजेंसियों ने निशाना बनाया है. 2016 में उन पर जम्मू और कश्मीर के विवादास्पद कानून पीएसए के तहत आरोप लगाए गए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

76 दिनों की हिरासत के बाद उन्हें जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के आदेश पर रिहा करना पड़ा था. उस समय अदालत ने उनकी गिरफ्तारी को ही "अवैध" बताया था और कहा था कि उनकी गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले जिला मैजिस्ट्रेट ने अपनी शक्तियों का "दुरुपयोग" किया है. अदालत ने पुलिस की जांच और गवाहों पर भी सवाल उठाए थे.

लेकिन स्पष्ट है कि परवेज आज भी पुलिस और अन्य एजेंसियों के निशाने पर हैं. उनकी गिरफ्तारी का कई राजनेताओं, पत्रकारों और ऐक्टिविस्टों ने विरोध किया है. संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर विशेष अधिकारी मैरी लॉलर ने एक ट्वीट में परवेज का समर्थन करते हुए लिखा कि "वो एक आतंकवादी नहीं बल्कि मानवाधिकारों के संरक्षक" हैं.

गिरफ्तारी का विरोध
राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने ट्विटर पर कहा कि वो खुर्रम को जानते हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें गिरफ्तार करने की सलाह सरकार को किसने दी.

परवेज सुरक्षाबलों के हाथों प्रताड़ित किए गए लोगों के लिए काम करने वाली संस्था एएफडी के प्रमुख भी हैं और लंबे समय से कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों को ट्रैक करते रहे हैं.

2006 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय रीबॉक मानवाधिकार पुरस्कार दिया गया था. 2004 में वो सिविल सोसायटी की तरफ से कश्मीर के लोलाब में चुनावों की निगरानी कर रहे थे जहां उनकी गाड़ी में हुए एक बम विस्फोट ने उनके एक सहयोगी और उनके ड्राइवर की जान ले ली. परवेज को भी उस धमाके की वजह से अपने एक टांग गंवानी पड़ी.

 

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