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परमाणु हथियारों पर रोक का प्रस्ताव, सवा सौ देशों ने संधि स्वीकारी

परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी पहली वैश्विक संधि की स्वीकृति के लिए संयुक्त राष्ट्र में 120 से अधिक देशों ने मतदान किया है

परमाणु हथियारों पर रोक का प्रस्ताव, सवा सौ देशों ने संधि स्वीकारी
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संयुक्त राष्ट्र। परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी पहली वैश्विक संधि की स्वीकृति के लिए संयुक्त राष्ट्र में 120 से अधिक देशों ने मतदान किया है। हालांकि, भारत, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान सहित अन्य परमाणु क्षमता सम्पन्न देशों ने परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने की खातिर कानूनी तौर पर बाध्यकारी व्यवस्था के लिए हुई वार्ताओं का बहिष्कार किया।

परमाणु हथियार प्रतिबंध संधि परमाणु अप्रसार के लिए कानूनी तौर पर बाध्यकारी पहली बहुपक्षीय व्यवस्था है, जिसके लिए 20 साल से वार्ता चलती रही है। इस संधि पर शुक्रवार को गर्मजोशी और तारीफ के बीच मतदान हुआ, जिसमें इसके पक्ष में 122 देशों ने वोट किया। इस संधि के विरोध में सिर्फ एक देश नीदरलैंडस ने वोट किया जबकि एक देश सिंगापुर मतदान से दूर रहा।

भारत, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इस्राइल जैसे परमाणु क्षमता संपन्न देशों ने इन वार्ताओं में हिस्सा नहीं लिया। परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध के मकसद से कानूनी तौर पर बाध्यकारी व्यवस्था पर वार्ता के लिए इस साल मार्च में एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था। वार्ता के लिए एक सम्मेलन बुलाने के लिए पिछले साल अक्तूबर में 120 से ज्यादा देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव पर मतदान किया था। भारत ने इस प्रस्ताव पर मतदान से खुद को दूर रखा था।

अक्तूबर में प्रस्ताव पर वोट से दूर रहने को लेकर दिए गए अपने स्पष्टीकरण में भारत ने कहा था कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि प्रस्तावित सम्मेलन परमाणु निरस्त्रीकरण पर एक समग्र व्यवस्था कायम करने को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की लंबे समय से रही अपेक्षा पर खरा उतर पाएगा। भारत ने यह भी कहा था कि जिनेवा स्थित निरस्त्रीकरण पर सम्मेलन (सीडी) निरस्त्रीकरण पर चर्चा के लिए एकमात्र बहुपक्षीय मंच है। उसने कहा था कि वह परमाणु हथियारों पर समग्र सम्मेलन (सीएनडब्ल्यूसी) पर सीडी में वार्ता की शुरुआत का समर्थन करता है। सीएनडब्ल्यूसी में प्रतिबंध और विलोपन के अलावा सत्यापन भी शामिल है।

परमाणु हथियारों के वैश्विक विलोपन के लिए अंतरराष्ट्रीय सत्यापन को जरूरी बताते हुए भारत ने कहा था कि मौजूदा प्रक्रिया में सत्यापन के पहलू को नहीं जोड़ा गया है। मतदान से दूर रहने के लिए दिए गए अपने स्पष्टीकरण पर कायम रहते हुए भारत ने संधि के लिए हुई वार्ता में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया था। सितंबर में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में इस संधि पर सभी देश दस्तखत कर सकेंगे। कम से कम 50 देशों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद यह संधि प्रभावी हो जाएगी। अमेरिका, रूस और अन्य परमाणु क्षमता संपन्न देशों के साथ-साथ उनके कई सहयोगी देशों ने भी वार्ता से दूरी बनाए रखी। उत्तर कोरिया ने भी वाता र्में हिस्सा नहीं लिया।

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस (तीनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं और वीटो की ताकत से लैस हैं) के स्थायी प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा कि उन्होंने, संधि की वार्ता में हिस्सा नहीं लिया है और इस पर दस्तखत, इसके अनुमोदन या कभी इससे जुड़ा पक्ष बनने का कोई इरादा नहीं रखते है। यह पहल अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा माहौल की हकीकत का साफ तौर पर अनादर करती है। संयुक्त राष्ट्र में तीनों देशों के राजदूतों ने कहा कि यह संधि उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम से पैदा हुए गंभीर खतरों को लेकर भी कोई समाधान नहीं पेश करती।

जी20 सम्मेलन का रिश्तों में प्रगति के बारे में संक्षेप समीक्षा की. इसमें उन्होंने मोदी की नवंबर 2016 में हुई जापान यात्रा के बाद से महत्वपूर्ण परियोजनाओं की प्रगति पर भी फौरी तौर पर समीक्षा की. प्रधानमंत्री मोदी ने उसके बाद से द्विपक्षीय संबंधों में हुई प्रगति को लेकर संतोष जताया. मोदी ने कहा कि वह प्रधानमंत्री एबे की आगामी भारत यात्रा पर नजर रखे हुए हैं तथा उम्मीद है कि उनकी इस यात्रा से उनके बीच सहयोग और मजबूत होगा. इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सामने अतंकवाद, आतंकी अड्डों और आतंकी फंडिंग से निपटने के लिए 10 सूत्री एजेंडा पेश किया. इसके बाद सभी शिर्ष नेताओं ने साझा बयान जारी करते हुए दुनियाभर में होने वाले आतंकी हमलों की निंदा की और इससे निपटने का संकल्प लिया. इस दौरान मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात हुई।


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