जंग की आग में फिल्म का प्रचार
भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर फाइल्स, केरला स्टोरीज और वैक्सीन वॉर जैसी फिल्मों का प्रमोशन चुनावी मंचों से किया

- सर्वमित्रा सुरजन
भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर फाइल्स, केरला स्टोरीज और वैक्सीन वॉर जैसी फिल्मों का प्रमोशन चुनावी मंचों से किया, यहां तक तो ठीक था, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि अब इजरायली राजदूत को भी फिल्म प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी घटनाओं से वैश्विक मंच पर भारत की कैसी छवि बनेगी, ये विचारणीय है।
अपनी फिल्म के प्रमोशन के चक्कर में अभिनेत्री कंगना रनौत ने देश के लिए अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी है। दुनिया के सामने भारत को लगभग शर्मिंदा करने के हालात बना दिए हैं। दरअसल कंगना रनौत की फिल्म तेजस इस शुक्रवार को प्रदर्शित होने वाली है। मार्केटिंग के युग में फिल्में भी बिना प्रचार-प्रसार और प्रमोशन के नहीं चलती हैं। पहले फिल्म के वितरक और जिन सिनेमाघरों में फिल्में लगती थीं, उनके मालिकान लाउडस्पीकर को कस्बों-शहरों में घुमाकर नयी फिल्म के आने की जानकारी दे दिया करते थे।
प्रदर्शन से पहले फिल्मों के लुभावने पोस्टर शहर भर में टंग जाया करते थे। लेकिन अब सोशल मीडिया का जमाना है, जहां अलग-अलग प्लेटफार्म्स पर जाकर अभिनेता-अभिनेत्रियां अपनी फिल्मों, वेब सीरीज या धारावाहिकों की जानकारियां दिया करते हैं, इसके अलावा कभी मॉल्स तो कभी बाजारों में खुद जाकर अपनी फिल्म के बारे में जानकारी देते हैं। चूंकि कंगना की फिल्म दशहरे के मौके पर आ रही थी तो रामलीला का मंच भी फिल्म के प्रचार के लिए इस्तेमाल हो गया। दशहरे पर राम और रावण दो ही मुख्य किरदार होते हैं, तो कंगना ने लगे हाथ रावण को मौजूदा वैश्विक हालात से जोड़कर बता दिया कि वो किसे राम मानती हैं।
कंगना रनौत ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रही विनाशकारी जंग में हमास को आधुनिक रावण बता दिया है। दरअसल कंगना रनौत ने नयी दिल्ली में इजरायली राजदूत नाओर गिलोन से मुलाकात की है। जिसकी फोटो उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट और ट्विटर पर शेयर की हैं। कंगना ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा कि 'आज पूरी दुनिया, ख़ासकर इज़रायल और भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी जंग लड़ रहे हैं। कल जब मैं रावण दहन करने दिल्ली पहुंची, तो मुझे लगा कि इजरायली एम्बेसी आकर उन लोगों से मिलना चाहिए जो आज के आधुनिक रावण हमास जैसे आतंकवादियों को परास्त कर रहे हैं। जिस प्रकार से छोटे बच्चों को,महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा हैं, ये दिल को झकझोर देने वाला है। मुझे पूरी उम्मीद हैं आतंकवाद के ख़िलाफ इस युद्ध में इज़रायल विजयी होगा।
वैसे ये पहली बार नहीं है, जब कंगना ने इजरायल के समर्थन में इस तरह बयान दिया। हमास के हमले के बाद भी उन्होंने इजरायल के साथ अपनी सहानुभूति दर्शाई थी। दरअसल कंगना रनौत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नक्शेकदमों पर ही हैं। श्री मोदी ने भी सबसे पहले इजरायल के समर्थन में बयान दिया था और फिलिस्तीन के लिए कुछ नहीं कहा था। दुनिया में इससे सही संदेश नहीं गया, ये बात जैसे ही विदेश मंत्रालय को समझ आई, उसने भूल सुधार करते हुए पांच दिन बाद बयान दे दिया कि भारत शांति के पक्ष में है और फिलिस्तीन को उसका हक मिलने का समर्थन करता है।
प्रधानमंत्री के बयान पर तो भूल-चूक माफ वाले अंदाज में काम हो गया। लेकिन अब कंगना रनौत के बयान को कैसे संभाला जाएगा। वैसे तो स्वतंत्र देश की स्वतंत्र नागरिक होने के नाते कंगना रनौत को पूरा हक है कि वे अपनी राय बेरोकटोक जाहिर कर सकें। मगर ये सारी बातें उन्होंने इजरायली राजदूत से मुलाकात के बाद कही हैं। इसके बाद दुनिया में सवाल उठ सकते हैं कि आखिर भारत का पक्ष क्या है। वैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने फिर दोहराया है कि वह फिलिस्तीन को मदद भेजना जारी रखेगा और उसके साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने पर काम करता रहेगा। लेकिन घरेलू मोर्चे पर फिल्म के प्रमोशन के लिए एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय मसले को जिस तरह घसीटा गया है, वह किसी लिहाज से सही नहीं है।
कंगना रनौत ने भले ही भाजपा की निगाह में चढ़ने के लिए, सरकार को अंध समर्थन देने के लिए इस तरह का बयान दिया हो, लेकिन असल में इससे देश की किरकिरी होने के आसार ही बने हैं। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते भी कंगना से ये सवाल किया जा सकता है कि जब उन्हें इजरायली महिलाओं और बच्चों पर हमास के अत्याचार दिखे हैं और उनका दिल इससे टूटा है, तो क्या उन्हें फिलिस्तीनी बच्चों और वहां के निर्दोष नागरिकों की चीख-पुकार से जरा भी फर्क भी नहीं पड़ा। जिस तरह इजरायल फिलिस्तीन में राहत शिविरों, अस्पतालों, मस्जिदों, चर्च को निशाना बना रहा है, सैकड़ों बच्चों को मारा जा चुका है, क्या ये सब देखकर कंगना रनौत का दिल नहीं टूटता। हमास को रावण कह देना और उसके खात्मे की कामना करना, एक जटिल मुद्दे का अतिसरलीकरण है।
कंगना रनौत चाहे जितने तरीकों से अपनी फिल्म का प्रचार कर लें, लेकिन कम से कम उन्हें जंग की आग में अपनी फिल्म को चमकाने की कोशिश नहीं करना चाहिए थी। वैसे भी इस बार दशहरे पर उन्होंने इतिहास रच ही दिया है। दिल्ली की लवकुश रामलीला में इस बार कंगना ने रावण के पुतले पर तीर चलाए। ये और बात है कि तीन बार की कोशिश के बाद भी जब उनसे तीर नहीं चला तो रामलीला कमेटी के ही एक सदस्य ने उनकी मदद की। इस वजह से सोशल मीडिया पर कंगना रनौत का खूब मजाक भी उड़ रहा है। अब कंगना कोई पेशेवर तीरंदाज तो हैं नहीं जो उनसे तीर चलाया जाएगा, इसलिए उनका इस वजह से मजाक उड़ाना सही नहीं है।
लेकिन फिर भी लोगों ने उन पर फब्तियां कसने का मौका इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि कंगना रनौत सुर्खियों में बने रहने के लिए जिस तरह की बयानबाजी करती हैं, उसमें उनका पक्षपात, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को बढ़ाने का उन्माद साफ झलकता है। कंगना किसी न किसी मोदी सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगी रहती हैं, बल्कि कई बार चापलूसी करती दिखती हैं। कल भी रावण दहन के दौरान कंगना रनौत ने जय श्रीराम के नारे लगाए और कहा कि भगवान राम सबसे बड़े हीरो हैं, और उनके जैसा न तो कोई था और ना ही कोई होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले भगवान राम पर कंगना ही नहीं इस देश के बहुसंख्यक समाज की आस्था है। लेकिन सवाल ये है कि वो कौन से राम हैं, जिन्हें कंगना अपना हीरो बता रही हैं। क्या ये वो राम हैं, जिनके नाम का इस्तेमाल कर भाजपा ने सत्ता का सफर तय किया है, या फिर ये गंगा-जमुनी संस्कृति वाले राम हैं, जिनके नाम से पहले लोग सीता का नाम लेते हुए जय सियाराम का अभिवादन करते रहे हैं।
कंगना रनौत को कल लवकुश रामलीला में बतौर महिला रावण पर तीर चलाने का मौका मिला तो इस इतिहास को रचने के साथ-साथ वे मिसाल भी कायम कर सकती थीं। जय श्रीराम के साथ वे जय सियाराम भी कह सकती थीं। स्त्रीशक्ति को दिखाते हुए बिल्किस बानो से लेकर महिला पहलवानों, मणिपुर की महिलाओं और उज्जैन की नाबालिग बच्ची जैसे कई मामलों में इंसाफ की आवाज बुलंद रामलीला के मंच से कर सकती थीं। हमास के लिए उन्हें आधुनिक रावण की संज्ञा याद आई, लेकिन अपने देश में अलग-अलग किरदारों के पीछे छिपे रावणों को कंगना ने बड़ी आसानी से अनदेखा कर दिया।
दरअसल कंगना या उनकी तरह के सुविधापरस्त लोगों से ऐसी कोई भी उम्मीद रखना बेवकूफी ही है। उनके एजेंडे में भारत के आधुनिक रावणों का जिक्र करना शामिल ही नहीं है, क्योंकि इससे उनकी फिल्म को कोई फायदा नहीं मिलता।
भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर फाइल्स, केरला स्टोरीज और वैक्सीन वॉर जैसी फिल्मों का प्रमोशन चुनावी मंचों से किया, यहां तक तो ठीक था, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि अब इजरायली राजदूत को भी फिल्म प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी घटनाओं से वैश्विक मंच पर भारत की कैसी छवि बनेगी, ये विचारणीय है।


