इजराइल के समर्थन के बहाने देश में नफरत को बढ़ावा!
देश की सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा सिर्फ इजराइल का इकतरफा समर्थन ही नहीं कर रही है बल्कि इस बहाने देश में नफरत और विभाजन को और बढ़ावा भी दे रही है

- शकील अख्तर
प्रेम, भाईचारे, मेल-मिलाप से ही इतनी विविधताओं वाला यह देश एक रहा है। आगे बढ़ा है। अभी जातिगत जनगणना में देखा कि कितनी जातियां हैं! याद रखना मुश्किल है। इनके बीच समानता बराबरी के अधिकार देने से ही बात बनेगी। देवरिया जैसा विभाजन करने से तो नहीं! अगर हर जगह राहुल के शब्दों में इतना केरोसिन नहीं छिड़का होता तो देविरया में और उसके बहाने पूरे प्रदेश और उसके बाहर भी जातिगत ध्रुवीकरण नहीं हो रहा होता।
देश की सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा सिर्फ इजराइल का इकतरफा समर्थन ही नहीं कर रही है बल्कि इस बहाने देश में नफरत और विभाजन को और बढ़ावा भी दे रही है। उसने एक वीडियो जारी किया है। जिसमें वह घटनाओं को इस तरह दिखा रही है जिससे राजनीतिक रूप से कांग्रेस के खिलाफ माहौल बने और धार्मिक रूप से मुसलमानो के खिलाफ।
इजराइल के मामले में नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की भी एक ही नीति थी कि इजराइल ने अरब देशों की जमीन पर अवैध कब्जा किया है जो उसे खाली करना होगा। अभी तक मोदी सरकार भी फिलिस्तीन का समर्थन करती थी। वहां के मामले में संतुलित रूख अपना रही थी।
मगर अब जातिगत जनगणना के बाद पिछड़ों में आए फिर से उभार के बाद उसने अचानक अपनी नीति बदल ली। प्रधानमंत्री मोदी ने खुल कर इजराइल का समर्थन कर दिया। और उनकी पार्टी भाजपा ने इसके बहाने मुस्लिम विरोध का नया अभियान शुरू कर दिया।
इजराइल-फिलिस्तीन समस्या अलग है मगर इसके बहाने भाजपा और दूसरे साम्प्रदायिक लोगों की राजनीति अलग। अन्ना हजारे के साथ झूठ का एक आन्दोलन चला भाजपा को सत्ता में लाने वाले कुमार विश्वास जैसे लोग अन्तरराष्ट्रीय स्थिति के बहाने सीधे भारतीय मुसलमानों पर सवाल उठाने लगे। आश्चर्यजनक रूप से ओबीसी की राजनीति कर रहे कुछ लेखक पत्रकार सोशल मीडिया के इनफ्लूएंसर ( प्रभावित करने वाले) भी मुसलमानों को टारगेट करने लगे। यह लोग देवरिया में तो प्रेमचंद यादव के परिवार के साथ हैं। मगर दूसरी तरफ अडानी के भी, मणिपुर के मामले में सरकार की चुप्पी के भी, ब्रजभूषण शरण सिंह के भी और वहां इजराइल के साथ भी हैं।
जातिगत जनगणना करवाने की सबसे जोरदार मांग राहुल गांधी की थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने उसे करवा भी दिया। जाहिर है यह ओबीसी के राजनीतिक सशक्तिकरण में सबसे ज्यादा फायदेमंद होगी। लेकिन फिलहाल तो ओबीसी के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग- आएगा तो मोदी ही- का माहौल बनाने में लगे हुए हैं। उनके लिए मुसलमान से नफरत सबसे जरूरी चीज है। यही भाजपा के लिए भी है। इसलिए उसने महिला बिल में ओबीसी महिलाओं को जगह नहीं दी क्योंकि वह जानती है कि मुसलमान विरोध के चलते ओबीसी अपनी महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण पर ध्यान नहीं देगा। बल्कि इजराइल-फिलिस्तीनियों को कैसे मारे इस पर ही ध्यान लगा कर रखेगा।
नफरत और विभाजन की राजनीति ने देश में किस तरह जहर भर दिया है यह रोज-रोज नए -नए रूपों में सामने आ रहा है। मगर कोई सोचने वाला नहीं है। हर चीज को मुस्लिम विरोध की तरफ मोड़ दो यही सोच बना हुआ है। मगर यह समस्या का हल नहीं है। नफरत और विभाजन के जहर का प्रवाह आप नियंत्रित नहीं कर सकते।
अभी देवरिया में जो हुआ और उसके बाद जिस तरह जातीय विभाजन हुआ उसमें आप मुसलमान एंगल चाहकर भी नहीं जोड़ सकते। मणिपुर में बहुत कोशिश की मगर वहां कोई मुस्लिम एंगल नहीं है। ब्रजभूषण शरण सिंह के मामले में नहीं है। किसान आंदोलन में नहीं था। वास्तव में यह कहीं नहीं है। मगर मुसलमान के खिलाफ माहौल बनाकर 80 प्रतिशत लोगों को एक करने की राजनीति के लिए यह बनाया जाता है।
अब जब जातिगत जनगणना 80 बनाम 20 का झूठा नरेटिव ( कहानी) तोड़ रही है तो इजराइल-फिलिस्तीन के बहाने फिर ओबीसी और दलितों को धर्म की राजनीति की तरफ खींचा जा रहा है। राहुल गांधी ने कहा कि ओबीसी दलित आदिवासी मिलकर 84 प्रतिशत होते हैं।यह सच्चाई है। उन्होंने यह नहीं कहा कि यह 84 प्रतिशत किसी एक गठबंधन के साथ आएंगे। हां यह जरूर कहा कि अपनी आबादी के हिसाब से अपना हक लेंगे।
इसी बात ने भाजपा की सारी राजनीति को गड़बड़ा दिया। और वह सामाजिक न्याय की इस लड़ाई को वापस धर्म के मैदान में खींचने में जुट गई। ताजा फिलिस्तीन-इजराइल युद्ध उसे इसके लिए बहुत मौजूं लगा। सरकार ने अपनी पुरानी सारी विदेश नीतियों को भूलते हुए अरब देशों का हमेशा पाकिस्तान के मामले में भारत का समर्थन भूलते हुए और यहां तक कि फिलिस्तीन के नेता यासेर अराफात को हर मुद्दे पर भारत के साथ खड़े होने को भूलते हुए इजराइल का समर्थन कर दिया। यह विदेश नीति नहीं है। घरेलू राजनिति में वोट का जुगाड़ है।
भारत का मुसलमान पिछले साढ़े 9 साल से यह सब देख और भुगत रहा है। अब तो लोकसभा के अंदर तक मुसलमानों को गालियां दी जा रही हैं। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद सबसे पहले घर वापसी के नाम पर उन्माद फैलाया गया। फिर लव जिहाद लाया। और उसके बाद तो लीचिंग और खुल कर हमें मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए। केन्द्रीय मंत्रियों के कथन पाकिस्तान चले जाओ, गोली मारो, जुमे के दिन सड़कों पर कब्जा हो जाता है और प्रधानमंत्री तक के श्मशान-कब्रिस्तान, कपड़ों से पहचानो जैसे एक से बढ़कर एक साम्प्रदायिक बयान आने लगे। वोट और सिर्फ वोट! इसके लिए गिरने की कोई सीमा नहीं। न ही यह चिंता कि यह नफरत और विभाजन की राजनीति कहां जाकर रुकेगी। हिन्दू-मुसलमान कब तक चलेगा?
देवरिया में देख ही लिया कि जब चारों तरफ केरोसिन छिड़का हुआ था तो वहां किस तरह हत्याकांड हुए और उसके बाद तत्काल मामला जातिगत विभाजन में बदल गया। राहुल की मोहब्बत की दुकान का मतलब ही यही है कि नफरत का बाजार बंद करो। यह नफरतें तुम्हें कहीं नहीं ले जाएंगी। और यह बात तो रोहित वेमुला को आत्महत्या करने पर मजबूर करने, गुजरात में दलितों को नंगा करके खंबे से बांधकर पीटने, मध्य प्रदेश के सीधी में आदिवासी के सिर पर पेशाब करने से लेकर देवरिया में एक पक्ष प्रेमचंद यादव के मकान पर नोटिस चिपकाकर उसे बुलडोजर चलाकर गिराने की कोशिशों से साबित हो ही गई कि यह नफरत केवल मुसलमान तक सीमित नहीं रहेगी। नफरत की आग सबको जलाएगी। अगर हिन्दू-मुसलमान की राजनीति नहीं रोकी तो जाति की राजनीति भी नहीं रुकेगी। अगर हिन्दू-मुसलमान में केवल फर्क ही बताते रहे तो फिर जातियों में क्या और कितना फर्क है यह रोक पाओगे?
प्रेम, भाईचारे, मेल-मिलाप से ही इतनी विविधताओं वाला यह देश एक रहा है। आगे बढ़ा है। अभी जातिगत जनगणना में देखा कि कितनी जातियां हैं! याद रखना मुश्किल है। इनके बीच समानता बराबरी के अधिकार देने से ही बात बनेगी। देवरिया जैसा विभाजन करने से तो नहीं! अगर हर जगह राहुल के शब्दों में इतना केरोसिन नहीं छिड़का होता तो देविरया में और उसके बहाने पूरे प्रदेश और उसके बाहर भी जातिगत ध्रुवीकरण नहीं हो रहा होता।
अभी भी समय है। मुसलमानों, यादवों, ब्राह्मणों, दलित आदिवासी, मणिपुर की पीड़ित महिलाओं किसी के खिलाफ भी नफरत फैलाने से बाज आओ। यह दुनिया नफरत से नहीं चल सकती। देश की राजनीति के लिए विदेश नीति को मत बदलो। वहां भारत का जो सम्मान है वह उसकी न्यायप्रियता के लिए है। वहां हम हमेशा कहते रहे हैं कि कितने फिलीस्तिनियों को मारा गया। हजारों तो बच्चे हैं।
पहली बार हमास ने हमला किया है इतना बड़ा। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार बहुत बुरा है। महिला की डिग्निटी चाहे जीवित या मृत किसी भी अवस्था में रखना चाहिए। नग्न इजराइली महिला के शव पर नारे लगाते हुए हमास के लोगों की जितनी निंदा की जाए कम है। मगर अफसोस यही होता है कि सही सोच समझ वाले सब ने उस वीडियो की निंदा की। मगर मणिपुर में महिलाओं के साथ नग्न परेड निकालते हुए हरकत करते हुए, पहलवान लड़कियों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले जिसे अब कोर्ट में पुलिस ने भी मान लिया है, बिलकिस बानो के बलात्कारियों को जमानत देने, स्वागत करने के मामले में वह लोग चुप रहे जो इजराइल के मामले पर बोल रहे हैं।
दो पैमाने भी यह पिछले साढ़े 9 साल की ही देन है। नहीं तो पहले देश की मानसिकता में इतना जहर नहीं भरा हुआ था। निर्भया के समय पूरा देश एक हो गया था। लेकिन अब भाजपा विधायक सेंगर के मामले से लेकर हाथरस महिला पहलवानों और मणिपुर की महिलाओं तक पीड़िताओं पर ही सवाल उठाए गए, उन्हीं पर जुल्म हुए और आरोपियों को समर्थन मिला।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


