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कोरोना की दूसरी लहर पर प्रधानमंत्रीजी की पहली मन की बात

अब प्रश्न यह उठता है कि ऑक्सीजन की सप्लाई चेन को कौन बाधित कर रहा है? क्यों ऑक्सीजन जरूरतमंदों और अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है? एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सिलिंडरों और टैंकरों का अभाव ऑक्सीजन क

कोरोना की दूसरी लहर पर प्रधानमंत्रीजी की पहली मन की बात
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अब प्रश्न यह उठता है कि ऑक्सीजन की सप्लाई चेन को कौन बाधित कर रहा है? क्यों ऑक्सीजन जरूरतमंदों और अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है? एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सिलिंडरों और टैंकरों का अभाव ऑक्सीजन की कमी के लिए उत्तरदायी है। यह अन्वेषण का विषय है कि यह कमी वास्तविक है या मुनाफाखोरों द्वारा कृत्रिम रूप से पैदा की गई है। यह विषय इतना गंभीर है कि सरकार को इस पर अविलंब श्वेत पत्र लाना चाहिए।

अंतत: प्रधानमंत्रीजी ने कोविड-19 की विनाशकारी दूसरी लहर के विषय में राष्ट्र को संबोधित किया। निश्चित ही बंगाल और अन्य राज्यों के बेपरवाह और लापरवाह स्टार प्रचारक को देश के प्रधानमंत्री की सधी हुई भूमिका में प्रवेश करने में दिक्कत हुई होगी। यह कुछ-कुछ वैसा ही था जैसे टी 20 की उच्छृंखलता का आनंद ले रहे किसी खिलाड़ी को अचानक टेस्ट मैच के अनुशासन में बांध दिया जाए। आलोचना बहुत हो रही थी इसलिए अंतत: विवश होकर उन्हें इस अप्रिय विषय पर बात करनी पड़ी, उनका अनमनापन पूरे संबोधन में स्पष्ट झलक रहा था। उनके पास कहने को कुछ विशेष था नहीं- कम से कम ऐसा कुछ तो बिल्कुल नहीं था जो अस्पताल, ऑक्सीजन और दवा के अभाव में बदहवास इधर-उधर भटकते और तड़प-तड़प कर दम तोड़ते लोगों को आश्वस्त कर पाता।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के प्रारंभ में कोविड-19 भयंकर दूसरी लहर का जिक्र इस प्रकार किया मानो यह कोई प्राकृतिक आपदा हो। आशा तो यह थी कि प्रधानमंत्री देश से इस बात के लिए क्षमा मांगेंगे कि कोविड-19 की अधिक घातक, अधिक संक्रामक, अधिक संहारक दूसरी लहर के आगमन की वैज्ञानिकों की चेतावनी को उन्होंने अनदेखा किया। उम्मीद यह भी थी कि चुनाव प्रचार के दौरान हुई अपनी विशाल रैलियों के माध्यम से कोविड प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ाने का अप्रत्यक्ष संदेश देने की भूल लिए आदरणीय प्रधानमंत्रीजी क्षमा याचना करेंगे। वे साहसपूर्वक यह स्वीकार करेंगे कि कुंभ का विशाल आयोजन एक भयंकर भूल थी। वे कहेंगे कि अहमदाबाद में स्वयं उनके नाम पर बनाया गया भव्य क्रिकेट स्टेडियम बाद में भी बनाया जा सकता. किंतु प्रधानमंत्री शायद यह जानते हैं कि भूलें और मूर्खताएं भी यदि विशाल हों तब इनमें भी एक महाकाव्यात्मक आकर्षण उत्पन्न हो जाता है जो जनता को चकित-भ्रमित कर सकता है।

बहरहाल कोविड-19 की इस दूसरी लहर का जिक्र प्राकृतिक आपदा की भांति करना प्रधानमंत्री जी की विवशता थी। यदि इसे मानवकृत आपदा का दर्जा दिया जाएगा तो इसके लिए वर्तमान सरकार और उसके मुखिया की गलत और गैरजिम्मेदार नीतियों के जिक्र से बचा नहीं जा सकता।

प्रधानमंत्री ने अपने निकट परिजनों को गंवा चुके देशवासियों से कहा- परिवार के एक सदस्य के रूप में मैं आपके दु:ख में शामिल हूं। किंतु इस विशाल परिवार के मुखिया के रूप में देश के लोगों की इस महामारी से रक्षा न कर पाने की नैतिक जिम्मेदारी से प्रधानमंत्री बच नहीं सकते। मिशिगन विश्वविद्यालय के एपिडेमियोलॉजी और बायोस्टेटिक्स विभाग के इस सेकंड वेव के हमारे देश में भयंकर प्रसार की भविष्यवाणी करते आंकड़े पब्लिक डोमेन में हैं। ऐसी ही अन्य अनेक चेतावनियां दुनिया के अग्रणी देशों के शीर्ष वैज्ञानिकों ने हमें दी हैं। निश्चित ही यह सूचनाएं हमारी सरकार तक भी पहुंची होंगी और स्वाभाविक रूप से जनता में पैनिक न फैले इसलिए सरकार ने इन्हें सार्वजनिक नहीं किया होगा। किंतु यह प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहेगा कि क्या हमने इन चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया? हमने वैक्सीन मैत्री की महत्वाकांक्षी पहल प्रारंभ की जबकि हमारे अपने लोगों को वैक्सीन की जरूरत थी। आज हम विदेशी वैक्सीन्स के आयात को आनन फानन में मंजूरी दे रहे हैं और महज 100 देशवासियों पर एक सप्ताह के परीक्षण के बाद यह हमारे टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा होंगी।

प्रधानमंत्रीजी ने अपने भाषण में वैक्सीन के संबंध में जो घोषणा की वह चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा- एक मई के बाद से, 18 वर्ष के ऊपर के किसी भी व्यक्ति को वैक्सीनेट किया जा सकेगा। अब भारत में जो वैक्सीन बनेगी, उसका आधा हिस्सा सीधे राज्यों और अस्पतालों को भी मिलेगा। उनकी इस घोषणा के बाद सरकार समर्थक मीडिया ने 18-45 वर्ष के लोगों को टीकाकरण कार्यक्रम के दायरे में लाने के लिए प्रधानमंत्रीजी की जय-जयकार प्रारंभ कर दी। अभी तक पूरी दुनिया के अनेक देशों में चलाए जाने वाले सफल टीकाकरण अभियानों की कुछ विशेषताएं रही हैं, यह अभियान सरकार द्वारा संचालित होते हैं, टीके बिना भेदभाव के सबको सुलभ कराए जाते हैं और यह टीकाकरण बिल्कुल मुफ्त होता है। स्वतन्त्रता के बाद हमारे देश ने अनेक मास वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाए और यह कार्यक्रम सभी के लिए तथा मुफ्त रहे हैं। किंतु भारत सरकार इस वैश्विक महामारी के सबसे भयंकर दौर में टीकाकरण कार्यक्रम में निजी क्षेत्र को प्रवेश करने का अवसर दे रही है और अब यह बाजार के हवाले होगा।

प्रधानमंत्री जी ने कहा कि 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का वैक्सीनेशन चालू करने से हमारी वर्क फोर्स को सुरक्षा मिलेगी। प्रधानमंत्रीजी निश्चित रूप से यह तो जानते ही होंगे कि टीकाकरण के तत्काल बाद ही प्रतिरोध क्षमता विकसित नहीं होती। दूसरी खुराक के 14 दिन बाद ही इम्युनिटी विकसित होने के दावे किए गए हैं। सच्चाई यह है कि इस भयंकर दूसरी लहर में हमारा कामकाजी युवा संक्रमण से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है। कोआपरेटिव फेडरलिज्म की बारम्बार चर्चा करने वाले प्रधानमंत्रीजी का यह फैसला नोटबन्दी, जीएसटी और लॉकडाउन जैसे फैसलों की अगली कड़ी है जिसमें केंद्र सरकार बिना राज्यों को विश्वास में लिए एकतरफा निर्णय उन पर थोप देती है।

प्रधानमंत्रीजी ने देश में 12 करोड़ लोगों को विश्व में सबसे कम समय में वैक्सीनेट करने की उपलब्धि की चर्चा की। सच्चाई यह है कि हम अपनी 140 करोड़ की जनसंख्या के केवल 11.61 प्रतिशत लोगों को वैक्सीनेट कर पाए हैं। पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी से रोगियों की मृत्यु के भयावह दृश्य सामने आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बोबड़े ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन इस विषय पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई की और सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार 12 अप्रैल, 2021 की स्थिति में ऑक्सीजन की दैनिक खपत 3842 मीट्रिक टन थी। जबकि कुल मेडिकल एवं इंडस्ट्रियल स्टॉक 50000 मीट्रिक टन था और दैनिक उत्पादन क्षमता 7287 मीट्रिक टन थी। वर्तमान में मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन की खपत उत्पादन क्षमता की केवल 54 प्रतिशत है। इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन को शुद्ध करके मेडिकल ग्रेड ऑक्सीजन में बदला जा रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि ऑक्सीजन की सप्लाई चेन को कौन बाधित कर रहा है? क्यों ऑक्सीजन जरूरतमंदों और अस्पतालों तक नहीं पहुंच पा रही है? एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सिलिंडरों और टैंकरों का अभाव ऑक्सीजन की कमी के लिए उत्तरदायी है।

यह अन्वेषण का विषय है कि यह कमी वास्तविक है या मुनाफाखोरों द्वारा कृत्रिम रूप से पैदा की गई है। यह विषय इतना गंभीर है कि सरकार को इस पर अविलंब श्वेत पत्र लाना चाहिए। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री के भाषण में इस विषय में जो कुछ कहा गया वह नाकाफी था और इसका मूल भाव यह था कि कोविड संक्रमण में तीव्र वृद्धि के बाद ऑक्सीजन की कमी एक स्वाभाविक स्थिति है और सरकार की कोशिशों से दूर हो जाएगी।

अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से अपील करते हुए कहा- 'मेरा राज्य प्रशासन से आग्रह है कि वो श्रमिकों का भरोसा जगाए रखें, उनसे आग्रह करें कि वो जहां हैं, वहीं रहें। बेहतर होता कि प्रधानमंत्री प्रवासी श्रमिकों से क्षमा मांगते कि पिछले एक वर्ष में वे इनके लिए कुछ भी नहीं कर पाए। न केवल इन श्रमिकों को दुबारा महानगरों की ओर पलायन करना पड़ा अपितु उन्हीं असुरक्षित परिस्थितियों में रहने और काम करने हेतु इन्हें विवश होना पड़ा और अब फिर रोजगार छिनने के बाद वे घर लौटने को मजबूर हुए हैं।

प्रधानमंत्रीजी उपलब्धियों का श्रेय तो अकेले ले लेते हैं किंतु अपनी असफलताओं को राज्यों पर थोपने और अप्रिय जिम्मेदारियों के निर्वाह हेतु वे सहकारी संघवाद की शरण में चले जाते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से प्रधानमंत्री ने युवाओं से छोटी-छोटी समितियां बनाकर कोविड अनुशासन का पालन सुनिश्चित कराने को कहा जबकि बच्चों से ऐसा माहौल बनाने का आग्रह किया जो लोगों को बाहर निकलने के लिए हतोत्साहित करे। प्रधानमंत्री द्वारा देश की जनता को फैंसी तथा दिखावटी टास्क देना कोई नई बात नहीं है। लेकिन उस समय जब कोविड-19 की इस खतरनाक दूसरी लहर का निशाना खास तौर पर युवा और बच्चे बन रहे हैं तब भी उनका स्वयं को इन्हें टास्क देने से न रोक पाना आश्चर्यजनक भी था और दु:खद भी। प्रधानमंत्री ने जनभागीदारी से कोरोना को हराने की अपील की और समाजसेवी संस्थाओं से सेवा कार्य जारी रखने को कहा। देश की जनता कब तक सरकारी तंत्र की असफलता और निकम्मेपन को सेवा कार्यों के माध्यम से छिपाती रहेगी?
डॉ राजू पाण्डेय


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