संकट में फंसे पाकिस्तान में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का स्वागत
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ देश की राजनीतिक व्यवस्था में हुई उथल-पुथल और बार-बार हुए आंदोलनों के बाद सत्ता में आए हैं

इस्लामाबाद। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ देश की राजनीतिक व्यवस्था में हुई उथल-पुथल और बार-बार हुए आंदोलनों के बाद सत्ता में आए हैं।
शरीफ के देश के प्रधानमंत्री बनने का जश्न राजनीतिक और आर्थिक रूप से संकट में घिरे देश में कम होता देखा जा रहा है। हालांकि उनका जगह-जगह स्वागत भी हो रहा है।
देश में तनाव पहले से ही कम होता दिख रहा है, क्योंकि नया प्रीमियर सिस्टम में को दुरुस्त करने में लग गए हैं। लेकिन देश के चेहरे पर दिख रहे राजनीतिक संकट को लेकर मौजूदा अनिश्चितता खत्म होती नहीं दिख रही है।
पीएम शरीफ के लिए दो मुख्य चुनौतियां उनके सामने हैं, प्रधानमंत्री की सीट पर उनका 'हनीमून पीरियड' बर्बाद करना।
पहला, राजनीतिक अस्थिरता और राजनीतिक और लोकतांत्रिक संकट पर इसका सीधा प्रभाव है। समझौते, दबाव की रणनीति और असफल राजनीतिक युद्धाभ्यास के माध्यम से सत्ता में बने रहने के लिए इमरान खान के बेताब प्रयासों के बावजूद उन्हें अभी भी देश के लोगों के बीच भारी समर्थन प्राप्त है। वह जब भी बाहर आते हैं, दबाव बनाने के लिए अपनी ताकत दिखाते हैं, ताकि शरीफ सरकार के लिए अशांति महसूस करे।
जनता का दबाव अब पूरे पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में इमरान खान द्वारा सार्वजनिक सभाओं के आयोजन और शरीफ की सरकार को सत्ता परिवर्तन के लिए एक 'अंतर्राष्ट्रीय साजिश' के माध्यम से सत्ता में लाई गई कठपुतली हाइब्रिड सरकार के रूप में घोषित करने के साथ पूरे जोरों पर होने वाले हैं।
शरीफ की सरकार को संसद में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, भले ही उनके कट्टर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इमरान खान इसमें नहीं हैं।
यह अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों के गठबंधन के साथ गठित सरकार का प्रबंधन है, जो न केवल इमरान खान को बाहर करने के लिए, बल्कि अपने निहित राजनीतिक हितों के लिए इस गठबंधन में शामिल हुए हैं।
शरीफ के प्रधानमंत्री के रूप में खड़े होने के साथ उन्होंने प्रतिबद्धताओं का भारी भार अपने ऊपर लिया है। उन्होंने और उनके सहयोगी दलों जैसे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने छोटे दलों से गठबंधन किए हैं, जो अब उनके द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के लिए उनकी ओर देख रहे हैं।
शरीफ के लिए दूसरा सबसे मुश्किल काम देश की जर्जर, बर्बाद आर्थिक स्थिति को सुधारना है, जो किसी शाही झंझट से कम नहीं है।
इमरान खान के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार द्वारा पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि नहीं करने के राजनीतिक निर्णय के साथ-साथ सुधारों की कमी ने पहले से मौजूद दीर्घकालिक, कठिन समस्याओं को जोड़ा है।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) आर्थिक दृष्टि से एक असाधारण कठिन परिस्थिति का सामना कर रहा है। आर्थिक गड़बड़ी अब उन फैसलों के समानांतर खड़ी है, जिसे यह सरकार आगे ले जाएगी।
अगर वह देश की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए सही फैसला लेती है, तब भी उसे सड़कों, सोशल मीडिया और टेलीविजन स्क्रीन पर इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ेगा।


