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पीएमओ से जवाब आने में लग गए 11 माह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी मशीनरी के कामकाज के तौर-तरीकों में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं, उन्होंने 'डिजिटल इंडिया' और 'न्यू इंडिया' का नारा दिया है

पीएमओ से जवाब आने में लग गए 11 माह
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भोपाल ! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी मशीनरी के कामकाज के तौर-तरीकों में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं, उन्होंने 'डिजिटल इंडिया' और 'न्यू इंडिया' का नारा दिया है, मगर रेलवे का दफ्तर कुछ और कहानी कह रहा है। पीएमओ के जरिए भेजी गई शिकायत का जवाब पश्चिम रेलवे कार्यालय से ई-मेल पर आने में 11 माह लग गए।

देश के कई हिस्सों में रेलवे ने यात्रियों को खास सुविधा दे रखी है। इसके मुताबिक, सामान्य टिकट पर 15 रुपये का अतिरिक्त भुगतान करके दिन के समय में आरक्षित डिब्बे में यात्रा की जा सकती है। ऐसी ही सुविधा उत्तर-पश्चिम (नॉर्थ-वेस्टर्न जयपुर) से गुजरने वाले कई गाड़ियों में उपलब्ध है। कई गाड़ियों में कुछ डिब्बे इसी तरह के यात्रियों के लिए होते हैं।

मध्यप्रदेश के नीमच जिले के निवासी सूचना के अधिकार कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने जयपुर के स्टेशन पर इस तरह की सूचनाएं पढ़ीं तो उन्होंने एक दरख्वास्त प्रधानमंत्री कार्यालय के लोक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (पीएमओपीजी) को पांच मई 2016 को दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने अनुरोध किया कि पश्चिम क्षेत्र से गुजरने वाली छोटी दूरी की गाड़ियों में अतिरिक्त 15 रुपये का भुगतान करने पर स्लीपर क्लास में दिन के समय यात्रा की सुविधा उपलब्ध कर दी जाए तो बेहतर होगा।

गौड़ ने आईएएनएस से चर्चा के दौरान कहा कि जिस यात्री को दिन में यात्रा करना होती है, उसे जो सुविधा अन्य स्थानों पर अतिरिक्त 15 रुपये देने पर मिल रही है, उसके लिए उन्हें कहीं ज्यादा रकम देना पड़ती है, यह सुविधा पश्चिम क्षेत्र के यात्रियों को भी मिले, इसे ध्यान में रखकर ही उन्होंने आवेदन पीएमओपीजी को भेजा, क्योंकि प्रधानमंत्री दफ्तर को भेजी शिकायत के जल्द निपटारे की उम्मीद थी।

गौड़ द्वारा पांच मई 2016 को भेजा गया आग्रह पत्र उसी दिन पीएमओपीजी के मार्फत पश्चिम रेलवे के मुंबई कार्यालय के जनशिकायत प्रकोष्ठ (पीजीसी) को ऑनलाइन भेज दिया गया, मगर मजे की बात यह है कि पीएमओपीजी के महाप्रबंधक कार्यालय को गौड़ तक जवाब भेजने में 11 माह लग गए। गौड़ को 27 मार्च, 2017 को जवाब मिला।

यहां बताना लाजिमी है कि प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति कार्यालय के पोर्टल पर दर्ज कराई जाने वाली शिकायतें ऑटोमैटिक तौर पर संबंधित विभाग की ओर बढ़ जाती है। इस शिकायत के मामले में भी ऐसा ही हुआ था।

नियमों का हवाला देते हुए गौड़ कहते हैं कि केंद्रीयकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली में संबंधित को जानकारी 60 दिन में उपलब्ध कराने का प्रावधान है, अगर ऐसा नहीं होता है तो दंड का प्रवाधान भले ही न हो, लेकिन अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान अवश्य है।

गौड़ को रेलवे से जो जवाब मिला है, उसमें कहा गया है कि 'आपके द्वारा छोटी दूरी की गाड़ियों के यात्रियों के लिए 15 रुपये अतिरिक्त देकर शयनयान में यात्रा करने देने संबंधी सुझाव को दर्ज कर लिया गया है। और प्रकरण समाप्त हो गया।'

गौड़ का कहना है कि पीएमओपीजी में आमजन शिकायत इसलिए दर्ज कराते हैं, ताकि उनका जल्द निपटारा हो, मगर इस मामले से एक बात तो साफ हो गई है कि रेलवे ने पीएमओपीजी के जरिए भेजे गए आवेदन को भी गंभीरता से नहीं लिया। लिहाजा, सरकार को जवाब देने का समय तय किए जाने के साथ दंड का भी प्रावधान करना चाहिए, जिससे आमजन की उम्मीदें बरकरार रहें।


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