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प्रधानमंत्री का निर्देश और रियल एस्टेट में पारदर्शिता की आवश्यकता

प्रधानमंत्री मोदी जी ने हाल ही में हुई 'प्रगति' (प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाईमली इम्प्लीमेनटेशन) बैठक में भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम (रेरा)के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर देते हुए कहा कि अधिनियम का सख्त अनुपालन परियोजनाओं की गुणवत्ता, समय पर डिलीवरी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है

प्रधानमंत्री का निर्देश और रियल एस्टेट में पारदर्शिता की आवश्यकता
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- अरुण कुमार डनायक

यदि 'घर' को 'भरोसे' से जोड़ना है, तो कानून, प्रशासन और निजी क्षेत्र को मिलकर उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करनी होगी — यही विश्वास इस क्षेत्र की असली बुनियाद बनेगा। उपभोक्ताओं का विश्वास और बिल्डरों की ईमानदारी साथ मिलकर ही एक जवाबदेह और न्यायपूर्ण आवास व्यवस्था की नींव रखी जा सकती है। रेरा को बिल्डरों के खिलाफ कठोर कदम, जैसे दंडात्मक कार्रवाई, जुर्माना, बैंक खातों पर रोक, या पंजीयन रद्द करना, अंतिम उपाय के रूप में अपनाना चाहिए। इसके बजाय,पहले चरण में सुधारात्मक और नियामक उपायों पर ध्यान देना अधिक प्रभावी होगा।

प्रधानमंत्री मोदी जी ने हाल ही में हुई 'प्रगति' (प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाईमली इम्प्लीमेनटेशन) बैठक में भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम (रेरा)के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर देते हुए कहा कि अधिनियम का सख्त अनुपालन परियोजनाओं की गुणवत्ता, समय पर डिलीवरी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे रेरा के तहत सभी रियल एस्टेट परियोजनाओं का अनिवार्य पंजीकरण करें और उपभोक्ता शिकायतों का समयबद्ध समाधान सुनिश्चित करें।

भारत में घर केवल एक संपत्ति नहीं, बल्कि सुरक्षा, सम्मान और स्थायित्व का प्रतीक होता है—हर मध्यमवर्गीय परिवार का सबसे बड़ा सपना। लेकिन आज यह सपना रियल एस्टेट की उलझनों में फंसा हुआ है। अधूरी परियोजनाएं, कब्जे में देरी और लगातार बढ़ती शिकायतें लाखों गृह-क्रेताओं की नियति बन चुकी हैं। समय पर निर्माण न होने से न सिर्फ लागत बढ़ती है, बल्कि उपभोक्ता दोहरी मार झेलते हैं—किराए और होम लोन की। 'प्रगति' जैसे उच्च-स्तरीय ई-गवर्नेंस मंच पर इस मुद्दे का उभरना रियल एस्टेट क्षेत्र में व्याप्त गंभीर समस्याओं को रेखांकित करता है।

2016 में लाग ूरेरा का उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता, बिल्डरों की जवाबदेही और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करना है। परंतु व्यवहार में रेरा अनेक चुनौतियों से घिरा है—सीमित अधिकार, जटिल अपील प्रक्रियाएं, सेवानिवृत नौकरशाहों की नियुक्ति, पेशेवर हितसाधकों एवं व्यवसाय विशेषज्ञों की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप इसके प्रभाव को कमजोर करते हैं।

बिल्डरों को असंवेदनशील नौकरशाही की प्रशासनिक बाधाओं, जटिल अनुमोदन प्रणाली, पक्षपातपूर्ण निर्णय और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे परियोजनाएं लटक रही हैं। परिणामस्वरूप, रेरा के तहत पंजीकृत परियोजनाएं कम हैं, लेकिन शिकायतें अधिक, जो इसके कमजोर क्रियान्वयन को उजागर करता है।

सराहनीय उद्देश्य के बावजूद रेरा की क्रियान्वयन क्षमता सीमित है। रेरा अधिकारियों के पास सीमित दंडात्मक शक्ति तो है, लेकिन उनकी सिफारिशों को लागू कराने का कोई ठोस तंत्र नहीं है। राज्य सरकारों द्वारा रेरा को गंभीरता से लागू न करने के कारण यह कानून निष्प्रभावी हो गया है। आदेशों की अवहेलना होने पर उपभोक्ता को वर्षों की कानूनी प्रक्रिया के लिए न्यायालय जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता, और कई बार रेरा के वरिष्ठ अधिकारी ही आवंटियों को हाईकोर्ट जाने की सलाह देते हैं।
रेरा, बिल्डर का पंजीकरण रद्द होने की स्थिति में, आवंटितियों को संगठित करउनकी संस्था द्वारा शेष निर्माण कार्य पूरा करने की अनुमति दे सकता है। व्यावहारिक रूप से बिल्डर के सहयोग के बिना अनुभवहीन आवंटियों के लिए पंजीकृत संस्था बनाना और मार्टगेज भूसंपत्ति का पंजीकरण कराना कठिन होता है।यह प्रक्रिया प्राय: लालफीताशाही की जटिलताओं में उलझकर रह जाती है।

रेरा अक्सर अधूरे निर्माण कार्यों को बिना लाभ के पूर्ण करने का दायित्व राज्यों के अर्ध-शासकीय निकायों, जैसे गृह निर्माण मंडल, को सौंपता है। ये निकाय प्राय: रेरा के आदेशों का पालन नहीं करते, और शासन स्तर पर भी कोई प्रभावी हस्तक्षेप नहीं होता।

रेरा अक्सर आवंटियों के पक्ष में निर्णय देता है, लेकिन बिल्डर से राशि वसूलने में गृह खरीदारों को प्रशासनिक सहायता नहीं मिलती। क्रेता जिलाधिकारी कार्यालय में रिकवरी रेवेन्यू सर्टिफिकेट दाखिल कर वसूली शुरू कर सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद धीमी और अप्रभावी है। जब सरकार स्वयं कर वसूली में असमर्थ है, तो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा ईश्वर के भरोसे ही रह जाती है। रेरा में पदस्थ पूर्व नौकरशाह भी क्रेताओं के हित में जिला प्रशासन पर अपने प्रशासनिक रसूख का उपयोग कर वसूली हेतु दबाव नहीं बनाते।

रेरा के प्रावधानों में एक महत्वपूर्ण विसंगति यह है कि अपीलीय अधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय सिविल न्यायालय की डिक्री की तरह निष्पादनीय होता है, लेकिन रेरा में नियुक्त न्यायनिर्णायक अधिकारी को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह परिवाद की सुनवाई के बाद सिविल न्यायालय के समकक्ष निर्णय दे सके। यह विसंगति रेरा की प्रथम स्तर की कार्यवाही की प्रभावशीलता को सीमित करती है और आवंटितियों को त्वरित न्याय प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न करती है।

रेरा को बिल्डर, आबंटी या रियल एस्टेट एजेंट से आवश्यक जानकारी मांगने और जांच करने का अधिकार है। जांच के बाद, यह दीवानी आदेश जारी कर सकता है, लेकिन आपराधिक कार्रवाई शुरू नहीं कर सकता । धोखाधड़ी के मामलों में पुलिस केस दर्ज करने के लिए आबंटियों को स्वतंत्र रूप से भारतीय न्याय संहिता के तहत कार्रवाई करनी पड़ती है।

प्रधानमंत्री का रियल एस्टेट क्षेत्र में हस्तक्षेप सुधारों की दिशा में प्रेरणादायक और सकारात्मक कदम है। यह हस्तक्षेप रेरा के प्रभावी क्रियान्वयन, बिल्डरों की जवाबदेही सुनिश्चित करने, शिकायतों के त्वरित समाधान और गृह खरीदारों के लिए समयबद्ध मुआवजा प्रदान करने की दिशा में आशा जगाता है। फिर भी, प्रशासनिक देरी, जटिल मंजूरी प्रक्रियाओं, और आपराधिक कार्रवाई की सीमाओं जैसे मुद्दों को दूर करने के लिए और अधिक समन्वित प्रयासों की जरूरत है। यह कदम एक महत्वपूर्ण शुरुआत है, लेकिनअभी लंबा सफर तय करना बाकी है। रेरा को सख्ती से लागू करने का केंद्र का निर्देश उपभोक्ता-हितैषी मंशा को दर्शाता है, लेकिन अब राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे स्थानीय विकास प्राधिकरणों की जवाबदेही सुनिश्चित करें और निगरानी व्यवस्था को मजबूत करें।

यदि 'घर' को 'भरोसे' से जोड़ना है, तो कानून, प्रशासन और निजी क्षेत्र को मिलकर उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करनी होगी — यही विश्वास इस क्षेत्र की असली बुनियाद बनेगा। उपभोक्ताओं का विश्वास और बिल्डरों की ईमानदारी साथ मिलकर ही एक जवाबदेह और न्यायपूर्ण आवास व्यवस्था की नींव रखी जा सकती है। रेरा को बिल्डरों के खिलाफ कठोर कदम, जैसे दंडात्मक कार्रवाई, जुर्माना, बैंक खातों पर रोक, या पंजीयन रद्द करना, अंतिम उपाय के रूप में अपनाना चाहिए। इसके बजाय,पहले चरण में सुधारात्मक और नियामक उपायों पर ध्यान देना अधिक प्रभावी होगा। रेरा को बिल्डरों और क्रेताओं के बीच गांधीजी के अहिंसक, मध्यस्थता, और आपसी सुलह आधारित दृष्टिकोण अपनाकर रियल एस्टेट क्षेत्र में निष्पक्षता, पारदर्शिता, और विकास को बढ़ावा देना चाहिए। यह क्रेताओं के हितों की रक्षा के साथ-साथ क्षेत्र के समग्र विकास को प्रोत्साहित करेगा। सौहार्दपूर्ण समाधान और विश्वास बढ़ाने के लिए रेरा को चाहिए कि वह भू संपदा विशेषज्ञों के साथ समयबद्ध मध्यस्थता सत्र आयोजित करे, बिल्डरों को सुधार का अवसर दे, आपसी सहमति पर आधारित पंचायत-शैली के फैसलों से विवाद सुलझाए, और क्रेताओं व बिल्डरों के लिए रेरा नियमों हेतु जागरूकता कार्यक्रम चलाए।
(लेखक गांधी विचारों के अध्येता व समाज सेवी हैं )


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