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आरएसएस और तालिबानी एक-दूसरे के पूरक, दोनों में किसी प्रकार का अंतर नहीं : उदित राज

कांग्रेस नेता उदित राज ने सोमवार को कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की सोच को तालिबानी जैसा बताया था

आरएसएस और तालिबानी एक-दूसरे के पूरक, दोनों में किसी प्रकार का अंतर नहीं : उदित राज
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तालिबान और आरएसएस एक-दूसरे के समान हैं : उदित राज

नई दिल्ली। कांग्रेस नेता उदित राज ने सोमवार को कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खरगे के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की सोच को तालिबानी जैसा बताया था।

इस पर समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में उदित राज ने कहा कि निश्चित तौर पर इस बात में किसी को भी कोई शक नहीं होना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और तालिबानी एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है।

उन्होंने कहा कि हम सभी लोगों ने देखा कि जब अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भारत में आए, तो कैसे उनकी तालिबानी सोच उभरकर सामने आई। तालिबानी विदेश मंत्री के सामने किसी भी महिला पत्रकार को आगे आने की इजाजत नहीं दी गई। ऐसी स्थिति में आप लोग तालिबानी सोच का अंदाजा सहज ही लगा सकते हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इसी तरह की विचारधारा से ग्रसित हैं। ऐसी स्थिति में इस सवाल का उठना लाजमी है कि क्या ऐसे संगठन को मौजूदा समय में किसी भी कीमत पर स्वीकार किया जा सकता है। ऐसे संगठन हमेशा से ही आधुनिकता के खिलाफ रहे हैं।

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि तालिबानी राज में जिस तरह का अशोभनीय व्यवहार महिलाओं के साथ किया जाता है, ऐसी सोच और विचारधारा का आरएसएस ने समर्थन किया है। ऐसी स्थिति में आप लोग ऐसे लोगों से प्रगतिशील मानसिकता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। ऐसे लोग हमेशा से ही आधुनिकता के विरोधी रहे हैं।

उन्होंने आरएसएस को एक महिला विरोधी पार्टी करार दिया और कहा कि आज तक इस संगठन में किसी महिला को सर्वोच्च कमान नहीं दी गई है। ऐसी स्थिति में आप लोग सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि यह लोग किसी भी कीमत पर किसी महिला की प्रगति को स्वीकार नहीं कर सकते हैं।

साथ ही, उन्होंने दक्षिण भारत को लेकर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में दक्षिण भारत के राज्यों में दो मुद्दों को लेकर चर्चा का बाजार गुलजार है। पहला तो हिंदी भाषा। दक्षिण के सूबों में हिंदी भाषा को लेकर विवाद का सिलसिला कई दफा देखने को मिल चुका है। इसके अलावा, दक्षिण भारत के लोगों की एक शिकायत है कि हमारे राज्य अत्याधिक कमाई करके केंद्र सरकार को देते है। लेकिन, इसके एवज में हमें क्या प्राप्त होता है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। दक्षिण भारत के सूबों का यह कहना है कि हम ही सबसे ज्यादा कमाई करके केंद्र को देते हैं। लेकिन, हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों को उनके विकास के लिए आवंटित कर दिया जाता है। इसे लेकर भी दक्षिण के सूबों में लोगों के बीच में विरोध के स्वर देखने को मिलते हैं।

उन्होंने आगे कहा, "जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई है, तब उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच में कई मुद्दों को लेकर विवाद देखने को मिला है। हमारे बीच में उत्तर और दक्षिण भारत के बीच में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। इसका असर सीधे तौर पर देश के विकास पर पड़ेगा। दक्षिण भारत के सूबे विज्ञान और तकनीक के मामले में आगे बढ़े हैं। इस वजह से श्रमिकों की गरिमा भी बढ़ी।"

उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के राज्यों में शिक्षा की स्थिति काफी बेहतर है। इस वजह से वहां की आर्थिक दशा भी बेहतर है। ऐसा वहां पर सामाजिक सुधार की वजह से हुआ है। सबसे पहले दक्षिण भारत में ही आरक्षण दिया गया है।


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