मप्र में सियासी दंगल राज्यसभा की 'तीसरी सीट' को लेकर!
मध्य प्रदेश की सियासत में संग्राम छिड़ा हुआ है, और इसकी मूल वजह राज्यसभा के चुनाव को माना जा रहा है

भोपाल। मध्य प्रदेश की सियासत में संग्राम छिड़ा हुआ है, और इसकी मूल वजह राज्यसभा के चुनाव को माना जा रहा है। कांग्रेस और भाजपा को एक-एक सीट मिलना तय है और दोनों दल तीसरी सीट को हासिल करना चाहते हैं और उसी के चलते गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी विधायकों को अपने पाले में लाने की कवायद चल पड़ी है।
राज्य से राज्यसभा में पहुंचे तीन सदस्यों, कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, भाजपा के सत्यनारायण जटिया और प्रभात झा का कार्यकाल खत्म हो रहा है और इन तीनों सीटों के लिए इसी माह चुनाव होना है। इन तीन सीटों में से एक-एक सीट कांग्रेस और भाजपा को मिलना तय है। लेकिन बाकी बची तीसरी सीट के लिए कांग्रेस को दो और भाजपा को नौ विधायकों की जरूरत है।
वर्तमान विधानसभा की स्थिति पर गौर करें तो राज्य में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं है। राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल 228 विधायक हैं। दो सीटें खाली हैं। कांग्रेस के 114 और भाजपा के 107 विधायक हैं। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार चार निर्दलीय विधायकों, दो बसपा और एक सपा विधायक के समर्थन से चल रही है।
राज्यसभा के एक सदस्य के लिए 58 विधायकों का समर्थन चाहिए। इस स्थिति में कांग्रेस और भाजपा के एक-एक सदस्य का चुना जाना तय है। बाकी बची तीसरी सीट पाने के लिए दोनों दलों को जोर लगाना होगा। और समझा जाता है कि राज्य की सियासत में चल रहा ड्रामा इसी तीसरी सीट के लिए है।
बीते दो दिनों से कांग्रेस के अलावा बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों की खरीद-फरोख्त का मामला जोर पकड़े हुए है। नौ विधायकों को दिल्ली ले जाने की बात सामने आई। इनमें से सात विधायकों को हरियाणा के गुरुग्राम में एक होटल में रखा गया, जहां से बसपा विधायक रामबाई को मुक्त कराने का कांग्रेस ने दावा किया है। पांच विधायकों को दिल्ली से भोपाल वापस भी लाया गया है।
इस खरीद-फरोख्त को आगामी राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस के दो दिग्गजों, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा के लिए बड़ा दावेदार माना जा रहा है। वहीं भाजपा किसी भी स्थिति में तीसरी सीट भी जीतना चाहती है। कांग्रेस खुले तौर पर भाजपा पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगा रही है तो दूसरी ओर भाजपा इसे कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह द्वारा रचा गया पूरा खेल बताने में लगी है।
सूत्रों का कहना है कि अभी तो विधायकों की खरीद-फरोख्त का मसला चर्चा में है, मगर यह सिलसिला अभी थमने वाला नहीं है, क्योंकि नामांकन 13 मार्च तक भरा जाना है और मतदान 26 मार्च को होना है। इसलिए गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी विधायकों पर दोनों दलों की नजर रहने वाली है।


