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कर्नाटक चुनाव से उभरते राजनीतिक विरोधाभास

कर्नाटक चुनाव में क्या होगा और हवा किस तरफ बहेगी, इस पर विचार किए बिना यह कहा जा सकता है कि यह एक ऐसा चुनाव है जिसका महत्व आज और अभी के बजाय भविष्य के लिहाज़ से बहुत ज्यादा है

कर्नाटक चुनाव से उभरते राजनीतिक विरोधाभास
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- जगदीश रत्तनानी

यह चुनाव राज्य और उसके 5.20 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह कर्नाटक के लोगों पर एक बड़ी जिम्मेदारी भी डालता है। कर्नाटक ऐसा राज्य है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में अग्रणी रहा है। भारतीयों का है कि कर्नाटक नए और आधुनिक तकनीक-आधारित समाधानों के निर्माण में शीर्ष पर बना हुआ है। उदाहरण के लिए, यह ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की कुल स्थापित शक्ति में देश का नेतृत्व करता है।

कर्नाटक चुनाव में क्या होगा और हवा किस तरफ बहेगी, इस पर विचार किए बिना यह कहा जा सकता है कि यह एक ऐसा चुनाव है जिसका महत्व आज और अभी के बजाय भविष्य के लिहाज़ से बहुत ज्यादा है। शायद ही कभी किसी राज्य का चुनाव राष्ट्र के लिए इतना महत्वपूर्ण रहा हो जितना कि कर्नाटक में हो रहा चुनाव है। हम जो देख रहे हैं वह केवल एक चुनावी लड़ाई नहीं बल्कि एक बड़े संदेश के लिए संघर्ष है जो इस चुनावी परिणाम से पूरे देश और दुनिया को जाएगा। अपने-अपने राजनीतिक झुकाव के बावजूद अधिकांश पर्यवेक्षक इस बात से सहमत होंगे कि इस चुनाव के परिणाम 2024 के संसदीय चुनाव और उसके बाद की भारतीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेंगे।

यह चुनाव राज्य और उसके 5.20 करोड़ से अधिक मतदाताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह कर्नाटक के लोगों पर एक बड़ी जिम्मेदारी भी डालता है। कर्नाटक ऐसा राज्य है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में अग्रणी रहा है। भारतीयों का है कि कर्नाटक नए और आधुनिक तकनीक-आधारित समाधानों के निर्माण में शीर्ष पर बना हुआ है। उदाहरण के लिए, यह ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की कुल स्थापित शक्ति में देश का नेतृत्व करता है। यह स्टार्ट-अप और उन लोगों के लिए ऐसा राज्य है जो इसे (स्टार्ट-अप) पनपने और प्रयोग करने के लिए अपनी शक्ति खर्च करते हैं। भारत की कूल 95 यूनिकॉर्न कंपनियों में (यानी वे कंपनियां जो एक छोटे से आइडिया के साथ शुरू होती हैं और कुछ समय बाद टर्नओवर 1 बिलियन डॉलर से अधिक हो जाता है। राज्य का हिस्सा 42 प्रतिशत है। अब यहां 13,000 से अधिक स्टार्ट-अप कंपनियां हैं।

40 साल से भी पहले कर्नाटक में इंफोसिस की कहानी लिखी गई थी जिसने भारत को वैश्विक सॉफ्टवेयर सेवा पावरहाउस के रूप में स्थापित किया। टीसीएस और अन्य कंपनियों के जरिए एक क्रांति की शुरुआत हुई जिसमें प्रत्यक्ष रोजगार में 50 लाख से अधिक लोग हैं और अप्रत्यक्ष रूप से कई गुना ज्यादा संबंधित हैं। इन्फोसिस और इसके संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने ईमानदारी के संदेश दिए और बताया कि कैसे एक सीधा रास्ता दीर्घकालिक व्यवसाय बनाने में मदद कर सकता है। इन कहानियों को पूरे भारत में शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में बार-बार बताया गया है। उन्होंने मूल्यों के साथ विकास की एक आधुनिक कहानी को चिह्नित किया। लोगों की बेहतरी के लिए व्यवसाय की इस कहानी को नई ऊंचाइयां मिली जब कर्नाटक में अजीम प्रेमजी के नेतृत्व में मूल्य और दान देने का आध्यात्मिक दृष्टिकोण उस समय आया जब उन्होंने कहा कि 'मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम में से जिन लोगों को धन प्राप्त है, उन्हें उन लाखों लोगों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाने की कोशिश करने में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए जिन्हें बहुत कम उपलब्ध हैं। मैं इस विश्वास पर काम करना जारी रखूंगा।' आईटी कंपनी विप्रो कंपनी के संस्थापक प्रेमजी ने इस क्षेत्र में नए आयाम बनाए। वे भारत के सबसे बड़े बिजनेस लीडर बन गए हैं। उन्होंने 2019 में संकल्प लिया कि वे अपने जीवनकाल में दान की राशि को 21 बिलियन अमरीकी डालर तक बढ़ाएंगे।

भारत का हर विद्यार्थी इन कहानियों को जानता है। ये कहानियां कर्नाटक को एक ऐसे राज्य के रूप में दर्शाती हैं जो भविष्य की ओर देखता है, जो एक दृढ़, आधुनिक, वैश्वीकृत भारत की जरूरतों को पूरा करने में आगे है और जहां भारतीय न केवल उपभोक्ता हैं बल्कि प्रतिभा व विचारों के महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता हैं। यह पेशेगत उत्कृष्टता, सेवा की भावना के साथ-साथ लचीलेपन तथा विनम्रता का प्रतीक है।

इसके बावजूद कर्नाटक वह राज्य भी है जो अलग कारणों से सुर्खियों में रहा है, जैसे कि कॉलेजों में लड़कियां हिजाब पहन सकती हैं या नहीं, इस मुद्दे पर संबंधित समूहों द्वारा खड़ा किया गया विवाद। फरवरी, 2022 में यह विवाद चरम पर पहुंचा। उस दौरान सामने आई तस्वीरों और बयानों ने कर्नाटक की ऐसी छवि पेश की जो इस राज्य की वास्तविकता के प्रतिकूल थी। एक ऐसा राज्य जहां सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में हाल ही में वृद्धि देखी गई थी। पिछले साल राज्य के गृह मंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने विधानसभा में बताया था कि 1 जनवरी, 2019 से 15 फरवरी, 2022 के दरम्यान राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के 63 मामले दर्ज किए हैं। इन मामलों में फरवरी, 2022 तक कोई दोषसिद्धि नहीं हुई है। इसका मतलब है कि पिछले तीन साल से कुछ अधिक समय में हर 18 दिनों में सांप्रदायिक अशांति का एक मामला हुआ।

इस जबरदस्त और महत्वपूर्ण चुनाव में प्रचार के आखिरी दिन एक बार सांप्रदायिक एजेंडे की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं क्योंकि भाजपा ने बजरंग दल के बचाव में अपनी सारी ताकत लगा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 'बजरंग बली की जय' का नारा लगाकर इसका नेतृत्व कर रहे हैं और मतदाताओं से वोट डालते समय भी यही नारा लगाने के लिए कह रहे हैं। यह स्पष्ट है कि यदि कोई नकाब उन्होंने पहनी है तो वह उतर गई है और धार्मिक आधार पर की गई अपील भी सीधी और साफ दिखाई दे रही है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि भाजपा को लग रहा है कि वह अपना आधार गवां रही है। उसे लगता है कि धर्म की एक खुराक उसे भाजपा के भीतर आंतरिक और स्थानीय क्षेत्रों में कांग्रेस द्वारा दी गई चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी जो कथित तौर पर कर्नाटक में भाजपा शासन की पहचान बन गए बड़े भ्रष्टाचार पर प्रहार कर रही है। भाजपा ने यह कदम कांग्रेस के घोषणापत्र के उस बिंदु को लेकर उठाया है जिसमें बजरंग दल और पीएफआई जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने सहित कानून के अनुसार निर्णायक कार्रवाई का वादा किया गया है जो धार्मिक आधार पर घृणा फैलाने में लगे हैं।

इस पृष्ठभूमि में ही कर्नाटक का विरोधाभास निहित है। पढ़ा-लिखा शेष भारत कर्नाटक को ज्यादातर उसके तकनीकी क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले लोगों के किस्सों और बेंगलुरु की जीवंतता के माध्यम से जानता है। वह बेंगलुरु, जिसे कई लोगों ने और निश्चित रूप से आईटी पेशेवरों ने काम करने के लिए शीर्ष शहर के रूप में अपना वोट दिया है। बेंगलुरु आने वाले आगंतुक शहर की ऊर्जा और गति को नोट करेंगे जो अंतत: उन्हें इस शहर को पसंद करने के लिए मजबूर करता है। देश भर से लोग यहां आते हैं और अपना करियर गढ़ते हैं। दूसरी ओर राज्य सांप्रदायिक संघर्ष का एक अड्डा बन गया है। यह सच है कि राज्य की राजनीति बदल गई है, भाजपा ने सत्ता हासिल कर ली है और अपनी जड़ें जमा ली हैं लेकिन उसी समय लोगों के एक वर्ग ने नए और उस कटु संदेश को अपनाया है जो एक को दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है। हिजाब विवाद के पीछे राजनीतिक मंशा थी किन्तु इसके लिए जमीनी स्तर पर लोगों को संदेश के लिए तैयार किया गया। हालांकि यह तर्क देना उचित है कि बहुत सारे संघर्ष राजनीतिक रूप से पैदा किए गए हैं लेकिन इन सारे विवादों का शीर्षक समान रूप से यह है कि हिंदुत्व की राजनीति दक्षिण में प्रवेश कर चुकी है और कर्नाटक इसका प्रवेश द्वार है।

इस राजनीतिक प्रक्रिया में मूल्यों के साथ विकास का संदेश खो सकता है। एक सशक्त राजनीतिक संदेश के अभाव में यह बात लोगों के सामने नहीं आई है। इस समय दिखाया कुछ जा रहा है लेकिन सतह के नीचे की कहानी अलग है। राज्य सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण संबंधी दस्तावेजों में कहा गया है कि कर्नाटक में प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 3.05 लाख रुपये (वित्त वर्ष 2022 के लिए अनुमानित) शीर्ष पांच भारतीय राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। फिर भी अन्य महत्वपूर्ण संकेतक नहीं बने हैं। उदाहरण के लिए एनएफएचएस के आंकड़ों से पता चलता है कि कर्नाटक बच्चों में स्टंटिंग यानी उम्र के अनुरुप कम ऊंचाई (बौनेपन) के मामले में राष्ट्रीय रैंकिंग में हाल के वर्षों से नीचे आ गया है। उम्र के अनुसार ऊंचाई रैखिक विकास मंदता (क्यूम्यलेटिव ग्रोथ डिफिशिएट)और विकास वृद्धि को नापने का एक तरीका है। कर्नाटक में 2019-21 में 35.4 प्रतिशत बच्चे बौनेपन से पीड़ित थे। एक रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में कर्नाटक 30 राज्यों में 24 वें स्थान पर है जो 2015-16 की तुलना में 2019-21 में तीन स्थान नीचे है। मुद्दा यह है कि विभाजनकारी एजेंडे से प्रभावित प्रचार अभियान के दौरान सामाजिक संकेतकों और वे कैसे आगे बढ़ रहे हैं, इस पर शायद ही चर्चा की गई है।

चुनाव परिणाम इस जटिल मुद्दे पर मार्गदर्शन करने में मदद करेंगे। भाजपायी अभी सांप्रदायिक विषयों पर बोलेंगे। ऐसा करके वे 2024 के राष्ट्रीय चुनावों को भी अपनी लंबी छाया से प्रभावित करने की कोशिश करेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)


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