परिजनों को नहीं आया तरस, पुलिस ने भेजा वृद्धाश्रम
जिस व्यक्ति ने वर्षों तक नौकरी कर अपने कठिन श्रम, संकल्प और कमाई से परिवार को खड़ा किया
ताउम्र पत्नी और बेटियों पर बालकोकर्मी ने लुटाई थी अपनी खुशी
कोरबा-बालकोनगर। जिस व्यक्ति ने वर्षों तक नौकरी कर अपने कठिन श्रम, संकल्प और कमाई से परिवार को खड़ा किया, इसकी कीमत सेवानिवृत्ति के बाद क्या चुकानी होगी? उसे सपने में भी इसका आभास न रहा होगा।
जिसने सात फेरे लेकर जन्म जन्मांतर तक साथ निभाने की कसम खाई और जिन बेटियों के जन्म पर पिता ने अपनी खुशी लुटाई, उम्र के इस पड़ाव पर इन तीनों ने न सिर्फ उसका साथ छोड़ा बल्की कई तरह की अमानवीय यातनाएं दी, जिससे उसके जीवन पर संकट उत्पन्न होने लगा था। पुलिस ने परिवार को समझाने की भरसक कोशिश की लेकिन अंतत: भारी मन से मुखिया को वृद्धाश्रम भेजना पड़ा।
यह किसी उपन्यास में लिखी काल्पनिक कहानी अथवा किसी फिल्म का दृश्य नहीं बल्कि आधुनिक बदलते दौर में टूटती सामाजिक और पारिवारिक मान्यताओं के पतन का जीता-जागता उदाहरण है। बालको थाना क्षेत्र के नेहरू नगर निवासी शिव कुमार नामदेव के साथ यह घटनाक्रम हुआ। बालको में वर्षों तक काम करते हुए शिव कुमार ने पत्नी और 2 बेटियों को वह सभी सुख सुविधा दी, जो आम तौर पर एक परिवार का मुखिया देता है। उसने एक बेटी का विवाह कर घर भी बसा दिया।
इस बीच सेवा अवधि पूर्ण होने पर शिव कुमार सेवानिवृत्त हो गया। सेवा में रहते जो खुशियां उसने पत्नी और बच्चों पर लुटाई, उसे लगता था कि सेवानिवृत्ति के बाद परिजन उसी तरह मान-सम्मान देते रहेंगे, किन्तु यह सपने में भी न सोचा था कि बदसलूकी होने लगेगी। सेवानिवृत्ति के बाद मिली रकम उसके आश्रितों ने उड़ा दी और फिर उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार प्रारम्भ कर दिया। आये दिन यह सिलसिला जारी रहा और पुलिस के पास भी मामला आया। उम्रदराज शिव कुमार को जीवन की ढलती साँझ के दौर में अपने साथ रखने के बजाय खून के रिश्ते ने अमानवीय व्यवहार की हदें पार करना शुरू कर दिया।
इस नजारे को देखने वाले भी एकबारगी सहम उठे कि क्या अपनों के बीच इस कदर कटुता हो सकती है? अपने तरह के इस दु:ख भरे किस्से का सकारात्मक हल खोजने का हरसंभव प्रयास बालकोनगर टी आई यदुमणि सिदार ने किया। लेकिन जीवनसंगिनी और 2 बेटियों के उग्र तेवर और नासमझीपूर्ण रवैये के आगे सभी रास्ते बंद हो गए। थाना में ही पत्नी और बेटियों के व्यवहार से शिव कुमार सहमा-सहमा सा रहा और उपस्थित पुलिस कर्मियों की आखें इस नजारे को देख भर आई थी। ऐसे में मजबूरीवश अंतिम विकल्प के रूप में वृद्ध शिव कुमार को कोरबा के वृद्धाश्रम भेजना तय किया गया ताकि उसका सामाजिक पुनर्वास सुरक्षित ढंग से हो सके।
परिवार नाम की संस्था में कतई उचित नहीं : सिदार
बालको थाना प्रभारी निरीक्षक यदुमणी सिदार ने पूरी घटना को भारत और यहां की संस्कृति एवं सामाजिक व पारिवारिक परिदृश्य के संदर्भ में बिल्कुल भी अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में वृद्धजनों की सार संभाल के बजाय उन्हें वृद्धाश्रम भेजे जाने का चलन है। भारत के सन्दर्भ में यह कल्पना कभी नहीं की गई थी लेकिन बदलते दौर ने इस तरह की तस्वीर बना दी, जो बेहद दु:खद है। टूटती सामाजिक व पारिवारिक मान्यताओं को संरक्षित करने की जिम्मेदारी किसी और की नहीं बल्कि परिजनों की ही है। ऐसा होने पर ही वृद्धों को उम्र के अंतिम पड़ाव में ऐेसे दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे।


