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कविताओं के जरिए कवि कहते हैं…अब शब्दों के अर्थ बदलने लगे हैं

'हम एक खतरनाक समय में रह रहे हैं और समय की इस भयावहता से कविता कैसे अछूती रह सकती है। समय गुर्राता है चीखता है और कविताओं में क्षण ही नहीं पूरा दौर कैद होता है

कविताओं के जरिए कवि कहते हैं…अब शब्दों के अर्थ बदलने लगे हैं
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नई दिल्ली। 'हम एक खतरनाक समय में रह रहे हैं और समय की इस भयावहता से कविता कैसे अछूती रह सकती है। समय गुर्राता है चीखता है और कविताओं में क्षण ही नहीं पूरा दौर कैद होता है। वह बर्दाश्त नहीं करते असहमति, मौजूदा राजनीतिक द्वंद्व, सहमति व असहमति की दीवारों को लांघता हुआ अब कविताओं की पंक्तियों में भी दर्ज होने लगा है। यह असहमतियां, कविताओं के माध्यम से कवियों ने काव्य संध्या में ''आज कविता’‘रखी गईं। कविताओं का पाठ विष्णु नागर, अनीता वर्मा, उमाशंकर चौधरी द्वारा किया गया।

रजा फाउण्डेशन द्वारा आयोजित काव्य संध्या में कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध साहित्यकार व फाउण्डेशन के मेनेजिंग ट्रस्टी अशोक वाजपेयी ने किया।

काव्य पाठ का आरंभ उमाशंकर की कविता शब्दों के अर्थ के साथ हुआ। मौजूदा राजनीतिक हालात ने शब्दों के मायनें ही बदल दिए हैं, इस बीच जब बदलने कि की जा रही है कोशिश, हमारा मिजाज, हमारी सोच, सबसे ज्यादा फि जायें, बदलने लगे हैं शब्दों के अर्थ भी। बदले हुए अर्थ में शब्द संवेदनहीन होकर संशंकित करने लगे हैं। इस बदले हुए अर्थ से भूख, गरीबी, अस्मिता और हाशिए पर खड़ा आदमी और ज्यादा उपेक्षित हो गया है। उमाशंकर की कविता और इस तरह ये समय, उस ख़तरनाक समय की तरफ निडर हो कर एक विशेष राजनीतिक सोच से उत्पन्न हुई दूरियों की ओर इशारा कर रहा हैं।

गीत चतुर्वेदी की कविताएं राजनैतिक प्रपंच से उत्पन्न असंवेदनशीलता के झोंकों से निकाल कर कोमल संवेदनाओं की थपकी देती हैं। उनकी कविता 'बड़े पापा की अन्तयेष्टि, अधूरे चुम्बन की आस में शव के थरथराते खुले होंठ संवदेनाओं के एक अलग ही धरातल में ले जाते हैं। बहने का जन्मजात हुनर, एक मानसिक अवस्था जो स्वभाविक है, बहने के खिलाफ तैरना व्यक्ति को सीखना पड़ता है।

विष्णु नागर की कविताओं में पैनापन अपनी पराकाष्ठा में दिखा और उनकी कविता 'आपका नाम नरेन्द्र मोदी, मैं की राजनीति की संकीर्णता जो मैं से शुरू होती है और मैं पर ही खत्म होती है। उस मैं के आगे कहीं कुछ नहीं ठहरता है, न आदर्श न दर्शन न नैतिकता, न परहित न सही न गलत, मैं के अहम् में डूबी राजनीति, आज के राजनैतिक परिदृश्य की विडम्बना। विष्णु नागर की कविता मालवी क्षेत्र विशेष का भाषा और व्यक्तित्व पर पडऩे वाले प्रभाव की सहज स्वीकारोक्ति है।


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