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सामाजिक बदलाव में काव्यात्मकता की अहम भूमिका: नायडू

उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि काव्यात्मकता सामाजिक बदलाव की प्रकिया को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती

सामाजिक बदलाव में काव्यात्मकता की अहम भूमिका: नायडू
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भुवनेश्वर। उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि काव्यात्मकता सामाजिक बदलाव की प्रकिया को बढ़ावा देने में उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती है।

नायडू ने रविवार को यहां 39वें विश्व कवि महा सम्मेलन के समापन सत्र को संबाेधित करते हुए कहा कि कवियों में लोगों को प्रभावित करने और उनके विचारों में बदलाव लाने की क्षमता है और उन्हें इस क्षमता का उपयोग लोगों की भावनाओं, विचारों तथा मनोस्थिति में बदलाव लाने में करना चाहिए ताकि एक बेहतर विश्व का निर्माण हो सके। इस कार्यक्रम में विश्व के अनेक कवियाें ने हिस्सा लिया है।

नायडू ने इस कार्यक्रम को आयाेजित करने के लिए कलिंग औद्योगिक तकनीकी संस्थान (केआईआईटी) और कलिंग सामाजिक संस्थान को बधाई देते हुए कहा कि उन्हें इस महासम्मेलन की थीम ‘कविता के माध्यम से करुणा’ ने विशेष प्रभावित किया है।

नायडू ने कहा कि करुणा की भावना हम सभी में सहज प्रवृत्ति है और हमें इसे महसूस करना चाहिए तथा इसकी उस समय तक इसे बनाए रखने की आदत बनानी चाहिए जब तक यह हमारी आदतों और अवचेतन में समाहित नहीं हो जाए क्योंकि करुणा से करुणा का भाव पैदा हाेती है।

नायडू ने कहा कि कविता मानवीय भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्तियों में से एक है और सबसे गहरी अंतर्दृष्टि, भावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला और मानवीय अनुभव को चेतना के उच्चतम स्तर तक पहुंचाती है। कविता मानवीय भावनाओं के आंतरिक रसायन विज्ञान पर बहुत प्रभाव डालती है। उन्होंने कहा कि हम कैसे किसी चीज के बारे में सोचते हैं, प्रतिक्रिया करते हैं और फिर किस तरह व्यवहार करते हैं, यह सब काफी हद तक साहित्य और फाइन आर्ट्स से प्रभावित होता है।

उन्होंने कहा कि भारत और कविता का संबंध ऐतिहासिक है और रामायण तथा महाभारत अब तक लिखी गई काव्यात्मकता के बेहतरीन नमूने हैं और अपनी महानता के कारण इन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्धि हासिल है।

उप राष्ट्रपति ने कहा कि विवेक और वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार के लिए भारतीय परंपरा को काव्यात्मकता पर ही निर्भर रहना पड़ा है। उन्होंने स्कूलों से आग्रह किया कि वे कविता पाठन और सराहना को पाठ्यक्रम में अनिवार्य तौर पर शामिल करें तथा विश्वविद्यालयों को साहित्य, कला और मानविकी शिक्षा काे बढ़ावा देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हमें चिकित्सकाें , इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की आवश्यकता है, ठीक उसी प्रकार कवियों , लेखकों और गायकों की भी जरूरत है और साहित्य को बढ़ावा देना भाषाओं को प्रोत्साहित करने और संरक्षण देने का एक प्रभावशाली तरीका है। उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक लोगों को अपनी स्थानीय भाषाओं में कविताओं, कहानियों और नाटकों को लिखना चाहिए तथा मातृभाषाओं को बचाने के लिए समर्पित तरीके से प्रयास करने चाहिए।


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