कवि सम्मेलन में तड़के तक कविताओं से बहा हास्य और वीर रस...
'सीमा पर ललकारा है, सिंहों का देश कभी चूहों से हारा है’

नई दिल्ली। तड़के सुबह तक चले राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में इस वर्ष कई रंग दिखाई दिए। जहां कई स्थापित चेहरे नहीं दिखे तो कई नए चेहरों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। कवि सम्मेलन में शुरूआत उपमुख्यमंत्री, भाषा मंत्री मनीष सिसोदिया के भाषण से हुई और उन्होंने कहा, कविताएं देश, समाज और राजनीति का आईना होती हैं, अतीत से वर्तमान तक की तमाम स्थितियों की गूंज कविताओं के माध्यम से हमें देखने और सुनने को मिलती रही है। कवियों ने अपनी प्रेरणादायी रचनाओं से समाज परिवर्तन की राह में अह्म भूमिका निभाई है।
ऐतिहासिक लाल किला, दिल्ली में आयोजित गणतंत्र महोत्सव के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन के शुभारंभ सत्र में उन्होंने गणतंत्र को अक्षुण्य बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया तो सरकार की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं पर भी प्रकाश डाला।
इस अवसर पर कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग, दिल्ली सरकार की सचिव श्रीमती मनीषा सक्सेना भी उपस्थित थीं।
कवि-सम्मेलन की अघ्यक्षता उर्दू के जाने-मान शायर जनाब प्रो. वसीम बरेलवी साहब द्वारा की गई।
यह कार्यक्रम अकादमी की उपाध्यक्ष श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ। हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव डॉ. जीतराम भट्ट ने सभी अतिथियों, कवियों, दर्शकों एवं श्रोताओं का स्वागत किया।
जीतराम भट्ट ने कविता के गणतंत्र को मजबूत करने पर बल देते हुए कहा कि कविता की लय स्वाधीनता की लय है, जो हमारे समाज को मजबूत कर गणतंत्र को भी मजबूत बनाती है। कवि अपने युग की चेतना अपनी कवितओं में अभिव्यक्त करते हुए समाज के नवनिर्माण में मुख्य भूमिका निभाता रहा है।
सुप्रसिद्ध कवि विनीत चौहान के गरिमापूर्ण संचालन में जाने-माने कवि डॉ. कुंअर बेचैन ने शहीदों को समर्पित अपनी रचना में पढ़ा-'सांस का हर सुमन है वतन के लिए/जि़न्दगी ही हवन है वतन के लिए/कह गईं फाँसियों में फंसी गर्दनें/यह हमारा नमन है वतन के लिए।’कवि आलोक श्रीवास्तव ने मां के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कविता पढ़ी तो डॉ. कीर्ति काले ने-'सीमा पर दुश्मन की गोली ने ललकारा है/क्या सिंहों का देश कभी चूहों से हारा है।’कह कर तालियां बटोरी।
कवि दिनेश रघुवंशी ने देश के अमर शहीदों को समर्पित अपने काव्य-पाठ में पढ़ा-'हमेशा तन गए आगे जो तोपों के दहानों के/कोई क़ीमत नहीं होती है प्राणों की जवानों के/बड़े लोगों की औलादें तो कैंडल मार्च करती हैं/जो अपने प्राण देते हैं वो बेटे हैं किसानों के।’
बता दें कि कवि सम्मेलन सुबह चार बजे तक चला और देश भर से पधारे कवियों ने अपने काव्य पाठ में एक ओर देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे वीर सैनिकों और शहीद हुए नौजवानों की गौरव गाथा व्यक्त की वहीं दूसरी ओर समाज की अनेक विसंगतियों पर भी प्रहार किया साथ ही व्यंग्य विनोद के माध्यम से काव्य-प्रेमियों को गुदगुदाया भी और अपनी प्रेरणादायी रचनाओं से देश के नवनिर्माण में भागीदार होने के लिए दर्शकों और श्रोताओं का आह्वान किया।
इस अवसर पर डॉ. अनामिका जैन अम्बर, डॉ. अर्जुन सिसोदिया, डॉ. कविता किरण, गजेन्द्र प्रियांशु, गुणवीर राणा, दिनेश बावरा, पवन जैन, पापुलन मेरठी, प्रमोद तिवारी, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, महेन्द्र शर्मा, राजीव राज, शहनाज हिन्दुस्तानी और संदीप शजर ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम के अंत में हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव डॉ़. जीतराम भट्ट ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए समारोह सम्पन्न किया।


