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पीएमएलए मामला : ईडी ने जांच में शामिल होने के लिए हेमंत सोरेन को चौथा समन भेजा

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 23 सितंबर को जमीन हड़पने के मामले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच में शामिल होने के लिए एक नया समन भेजा है

पीएमएलए मामला : ईडी ने जांच में शामिल होने के लिए हेमंत सोरेन को चौथा समन भेजा
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नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 23 सितंबर को जमीन हड़पने के मामले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच में शामिल होने के लिए एक नया समन भेजा है। एक अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी।

सोरेन को जारी किया गया यह चौथा समन था। पिछली बार उन्हें 9 सितंबर को पेश होने के लिए कहा गया था।

ताजा समन मिलने के बाद सोरेन ने शीर्ष अदालत का रुख भी किया था।

पिछले साल सोरेन से अवैध खनन मामले में पूछताछ की गई थी। ईडी के रांची स्थित कार्यालय में उनकी पत्‍नी के साथ करीब 10 घंटे तक पूछताछ की गई।

मौजूदा मामले में ईडी ने एक आईएएस अधिकारी समेत 13 लोगों को गिरफ्तार किया है।

8 जुलाई को मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा के आवास पर छापेमारी हुई थी।

ईडी को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बैंक खाते से जुड़ा एक चेकबुक मिला। उसके बाद उनका नाम इस केस से जुड़ गया। इसके बाद मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया।

चौंकाने वाला पहलू यह सामने आया कि ये आरोपी लोगों की जमीनों पर गलत तरीके से कब्जा करने के लिए 1932 के दस्तावेजों का इस्तेमाल करते थे और पीड़ितों को बताते थे कि उनकी जमीनें उनके पिता या दादा पहले ही बेच चुके हैं।

आरोपियों ने सेना को पट्टे पर दी गई जमीनों पर धोखे से कब्जा कर लिया और धोखाधड़ी से उन्हें अन्यत्र बेच भी दिया।

एजेंसी ने इनके पास से बड़ी संख्या में फर्जी डीड जब्त किए हैं।

इस मामले में मिश्रा पर आईएएस अधिकारी छवि रंजन की मदद करने का आरोप है और इसके चलते बाद में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

यह मामला झारखंड का है, लेकिन इसका असर बिहार और कोलकाता तक है।

सूत्रों ने बताया कि आरोपी आजादी से पहले के दस्तावेजों का हवाला देकर 1932 के बाद के फर्जी दस्तावेज बनाकर जमीनों पर कब्जा करते थे।

उन्होंने उस समय से भूमि का स्वामित्व होने का दावा किया, जब पूरा क्षेत्र पश्चिम बंगाल था, जिसमें बिहार और झारखंड के कुछ हिस्से भी शामिल थे, जिसमें निजी और सरकारी दोनों भूमि शामिल थीं।

जब ईडी ने जब्त किए गए दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच कराई तो पता चला कि सभी दस्तावेज फर्जी थे।

जिन जिलों के नाम आजादी से पहले अस्तित्व में नहीं थे, उनका उल्लेख आजादी से पहले के दस्तावेजों के साथ किया गया था और 1970 के दशक के पिन कोड का उपयोग पुराने दस्तावेजों में किया गया था।


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