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चुनावी अभियान में पीएम मोदी का अर्थव्यवस्था पर जोर

बीजेपी नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश में लगे हैं. अपने चुनावी अभियान में वो आर्थिक उपलब्धियों पर खास जोर दे रहे हैं

चुनावी अभियान में पीएम मोदी का अर्थव्यवस्था पर जोर
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बीजेपी नेता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश में लगे हैं. अपने चुनावी अभियान में वो आर्थिक उपलब्धियों पर खास जोर दे रहे हैं.

अप्रैल और मई में भारत में होने वाले आम चुनाव मानव इतिहास की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद हैं. हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक फैले दस लाख से भी ज्यादा मतदान केंद्रों पर करीब एक अरब लोग संसदीय चुनावों में मतदान करेंगे. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कर एक और कार्यकाल पाने की कोशिश कर रहे हैं. अपने कार्यकाल के इस विस्तार के लिए मोदी जिस एक मुद्दे पर सबसे ज्यादा आशान्वित दिख रहे हैं, वह है अर्थव्यवस्था.

खुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी अक्सर "विकसित भारत 2047" के बारे में बात करते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि वो चाहते हैं कि अपनी आजादी की 100वीं सालगिरह, यानी साल 2047 तक भारत पूर्ण विकसित अर्थव्यवस्था बने और यह नारा यही बनाने का संकल्प है. हालांकि, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति कैसी रही है और उनके नेतृत्व में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा रहा है, इसके बारे में अलग-अलग मत और आंकड़े हैं.

शीर्ष तीन देशों में जगह पाने की ओर

न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर अरविंद पनगढ़िया को हाल ही में पीएम मोदी ने भारत के वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि आंकड़ों से पता चलता है कि भारत '2026 या 2027 तक' दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.

ग्लोबल डेटा टीएसलोम्बार्ड की मुख्य भारतीय अर्थशास्त्री शुमिता देवेश्वर ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर लोग काफी आशावादी हैं और यह तथ्य भी है कि वैश्विक माहौल को देखते हुए हम दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं."

भारत की मजबूत वृद्धि उसे अभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी बनाती है. साल 2023 के अंतिम तीन महीनों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद एक साल पहले की तुलना में 8.4 फीसद बढ़ा और पिछली तिमाही की तुलना में लगभग एक फीसद ज्यादा रहा. इस मायने में यह 10 अन्य शीर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से काफी आगे है.

बढ़ती बेरोजगारी पर उठते सवाल

आर्थिक वृद्धि के इन आंकड़ों के बीच उठते कई सवाल भी हैं, खासकर लगातार बढ़ती बेरोजगारी को लेकर जो एक बड़ी और गंभीर समस्या बनती जा रही है. बेरोजगारी खासतौर पर युवाओं में ज्यादा है. देश की विशाल और तेजी से बढ़ती आबादी को देखते हुए यह एक प्रमुख मुद्दा है. मौजूदा समय में बेरोजगारी 10 फीसदी के करीब है.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च इन इंडिया से जुड़े सुशांत सिंह का कहना है कि समस्या से निपटने के लिए 'कोई योजना नहीं' है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "जनसांख्यिकीय लाभांश पूरी तरह से एक जनसांख्यिकीय आपदा बन गया है." सुशांत सिंह मोदी सरकार के कार्यकाल में पैदा हुए अन्य आर्थिक मुद्दों की बात करते हैं और विनिर्माण और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई), दोनों पर भारत के अपेक्षाकृत कमजोर आंकड़ों पर प्रकाश डालते हैं.

एचएसबीसी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में शुद्ध एफडीआई अब उस समय की तुलना में कम है, जब मोदी ने 10 साल पहले सत्ता संभाली थी. सुशांत सिंह कहते हैं, "अब यह मामला गंभीर है, क्योंकि इसका मतलब है कि लोग विनिर्माण या उद्योग या कॉरपोरेट्स में निवेश नहीं कर रहे हैं."

मोदी ने 'मेक इन इंडिया' नामक घरेलू विनिर्माण का अभियान चलाया, बावजूद इसके देश में अभी भी विनिर्माण के क्षेत्र में सिर्फ 12 फीसदी नौकरियां ही हैं. देवेश्वर कहती हैं, "हम मूल रूप से कृषि अर्थव्यवस्था वाले देश से सेवा आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश की ओर बढ़ गए हैं और विनिर्माण क्षेत्र बीच में ही रुक गया है."

भारत के आर्थिक सुधार

पनगढ़िया कहते हैं कि मोदी ने कराधान, दिवालियापन कानून और रियल एस्टेट में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में ‘बड़ा बदलाव' आया है. वहीं, देवेश्वर का कहना है कि आर्थिक सुधारों का रिकॉर्ड ज्यादा मिश्रित रहा है. वह कहती हैं, "मुझे नहीं लगता कि हम वहां पहुंच सकते हैं, जहां वो कह रहे हैं. भारत को इन ऊंचे लक्ष्यों को हासिल करने जिस तरह के कठिन आर्थिक संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है, उनके बिना हम वहां नहीं पहुंच सकते हैं."

देवेश्वर कहती हैं कि मोदी का सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें उनकी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है, सरकारी कंपनियों के निजीकरण के वार्षिक लक्ष्य हासिल करने में विफल रही है. वह तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की ओर भी इशारा करती हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद साल 2021 में वापस ले लिया था.

गरीबी और असमानता

इसके बावजूद देवेश्वर का मानना है कि मोदी आर्थिक मामलों पर जनता की भावनाओं को भुनाने की अपनी क्षमता के लिए उतने ही लोकप्रिय हैं और इसका प्रमाण तब मिला, जब उन्होंने कृषि कानूनों को निरस्त किया. वह कहती हैं, "उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वास्तव में देश की नब्ज पर उंगली रखी है. अगर उन्हें लगता है कि भारत में कुछ अच्छा नहीं होने वाला है, तो वो पीछे हट जाएंगे."

यह मोदी की अपील का एक और कारण है. कई पैमानों पर भारत एक बेहद गरीब देश बना हुआ है, फिर भी विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि मोदी के कार्यकाल के दौरान अत्यधिक गरीबी में रहने वाले भारतीयों की संख्या में गिरावट जारी है. पनगढ़िया का कहना है कि सरकार ग्रामीण भारत में कल्याणकारी योजनाओं के मामले में विशेष रूप से सक्रिय रही है.

यदि मोदी को तीसरा कार्यकाल जीतना है, तो देश की विशाल कृषि और ग्रामीण आबादी को उनके लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. पनगढ़िया कहते हैं, "खासकर ग्रामीण इलाकों में हर किसी को केंद्र सरकार से कुछ-न-कुछ मिल रहा है." वह ग्रामीण आवास योजनाओं, शौचालय निर्माण, नकद हस्तांतरण, खाद्य सुरक्षा कानून और रसोई गैस के व्यापक वितरण को इस बात के प्रमाण के रूप में पेश करते हैं कि कैसे मोदी ने देश के सबसे गरीब तबकों तक संसाधनों को वितरित करने की कोशिश की है.

इस बात पर बहुत असहमति है कि भारत के सबसे गरीब लोगों की स्थिति मोदी के शासन काल में कैसी रही है. सुशांत सिंह का कहना है कि पिछले 10 सालों में असमानता बढ़ी है. वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब की हालिया रिपोर्ट के आंकड़ों की ओर इशारा करते हुए सुशांत सिंह कहते हैं, "भारत पहले से कहीं ज्यादा असमान हो गया है. मोदी शासन में यह असमानता वास्तव में बढ़ी है, आय असमानता और धन असमानता दोनों."

सुशांत सिंह आगे कहते हैं, "प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत जी20 में सबसे गरीब देश है. श्रीलंका और बांग्लादेश दोनों ने प्रति व्यक्ति संपत्ति के मामले में भारत को पीछे छोड़ दिया है. बांग्लादेश एक बास्केट केस अर्थव्यवस्था थी, लेकिन प्रति व्यक्ति के मामले में भारत अब बांग्लादेश से भी गरीब है."

मोदी का आधारभूत संरचना में निवेश

एक क्षेत्र जहां मोदी सरकार की आर्थिक उपलब्धियां स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं, वह है बुनियादी ढांचा. साल 2024 के चुनाव पूर्व बजट में सड़कों, रेलवे और हवाई अड्डों के लिए पूंजीगत व्यय में 11 फीसदी वृद्धि का वादा किया गया, जिससे यह करीब 134 अरब डॉलर हो गया. मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान पहले ही डिजिटल और भौतिक, दोनों तरह के बुनियादी ढांचे में भारी निवेश किया है.

पनगढ़िया का कहना है कि अगर भारत को उस तरह के आर्थिक लक्ष्य हासिल करने हैं, जिनके बारे में प्रधानमंत्री बात करते हैं, तो निवेश उचित और महत्वपूर्ण है. देवेश्वर भी इससे सहमत हैं. वह कहती हैं, "आप वास्तव में इसे लोकलुभावन नहीं कह सकते. यह बहुत जरूरी है. भारत की दशकों से चली आ रही प्रमुख समस्याओं में से एक इसका चरमराता बुनियादी ढांचा है. अब नीति की दिशा बहुत सकारात्मक है."

यह एक ऐसा ठोस क्षेत्र है जहां विकसित आर्थिक स्थिति की दिशा में भारत की यात्रा को शायद मापा जा सकता है और यह भी उन कई कारणों में से एक है, जिनकी वजह से पनगढ़िया जैसे कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आगामी चुनाव मोदी के लिए बहुत स्पष्ट रास्ता तैयार कर रहा है.

भले ही मोदी की तीसरी बार चुनावी जीत की संभावना दिखती हो, लेकिन 'विकसित भारत 2047' जैसे ऊंचे लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना कुछ लोगों को वास्तविकता से ज्यादा प्रचार जैसा लगता है. देवेश्वर कहती हैं, "यह अच्छी बात है और इतनी दूर तक कि कोई भी उन्हें 2047 के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराएगा."

सुशांत सिंह बताते हैं कि मोदी की 2047 की बात लंबे समय से स्थापित राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है. वह कहते हैं, "अतीत का गौरव और भविष्य का संभावित गौरव, यह एक सपना है, एक दृष्टिकोण है जिसे वह लोगों को बेचने की कोशिश कर रहे हैं." सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मोदी सरकार स्पष्ट रूप से तीसरी बार सत्ता में आने की राह पर है, लोग इसे पसंद कर रहे हैं.


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