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प्लूटो पर मिली विशाल बर्फीली ज्वालामुखियां

वैज्ञानिकों ने प्लूटो की उबड़ खाबड़ जमीन पर पहली बार ऐसी विशाल बर्फीली ज्वालामुखियों को देखा है जो हाल ही में सक्रिय थीं

प्लूटो पर मिली विशाल बर्फीली ज्वालामुखियां
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नासा के न्यू होराइजन अंतरिक्ष यान की मदद से ली गई तस्वीरों के विश्लेषण के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्लूटो का भीतरी हिस्सा पहले के अनुमान से ज्यादा गर्म था. नेचर कम्युनिकेशन जर्नल ने इस बारे में स्टडी रिपोर्ट छापी है.

कोलोराडो के साउथवेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट के प्लेनेटरी साइंटिस्ट और रिसर्च रिपोर्ट की लेखक केल्सी सिंगर का कहना है कि बर्फीली ज्वालामुखी लावा को हवा में उड़ेलने की बजाय उसे "एक गाढ़े, कीचड़ जैसे ठंडे पानी के मिश्रण या फिर यह भी संभव है कि ग्लेशियर जैसे ठोस बहाव" के रूप में धीरे-धीरे बाहर निकालती हैं.

कई उपग्रहों पर हैं बर्फीली ज्वालामुखियां

माना जाता है कि बर्फीली ज्वालामुखी सौरमंडल के कई और ठंडे उपग्रहों पर मौजूद हैं. हालांकि सिंगर का कहना है कि प्लूटो पर जो ज्वालामुखी दिखी हैं, वो "अब तक देखी गई बर्फीली ज्वालामुखियों से काफी अलग हैं."

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सिंगर के मुताबिक ठीक-ठीक यह बताना मुश्किल है कि इन ज्वालामुखियों का निर्माण कब हुआ लेकिन वैज्ञानिक मान रहे है, "कुछ करोड़ साल या फिर उससे भी जल्दी इनका निर्माण हुआ होगा." प्लूटो के ज्यादातर हिस्सों से अलग इस इलागे में क्रेटर या गड्ढे नहीं हैं. सिंगर के मुताबिक, "इसका मतलब है कि आप इस संभावना से भी इनकार नहीं कर सकते कि अब भी इनका बनना जारी है."

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का गोडार्ड स्पेश फ्लाइट सेंटर की प्लेनेटरी साइंटिस्ट ल्याने क्विक इस खोज को "अत्यधिक महत्वपूर्ण" मान रही हैं. उनका कहना है, "इनसे पता चलता है कि प्लूटो जैसा छोटा पिण्ड जिसने बहुत पहले ही अपनी अंदरूनी उष्मा का ज्यादातर हिस्सा गंवा दिया होगा, वह भी विस्तृत भौगोलिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त ऊर्जा समेटे रखने में सक्षम है. इन खोजों ने हमें सूर्य से बहुत दूर स्थित छोटी बर्फीली जगहों पर तरल पानी की संभवाना को फिर से खंगालने की वजह दे दी है."

द ओपेन यूनिवर्सिटी में प्लेनेटरी जियोसाइंस के प्रोफेसर डेविड रोथरी का कहना है, "हम नहीं जानते कि इन बर्फीली ज्वालामुखियों के विस्फोट के लिए पर्याप्त गर्मी कहां से मिली होगी."

विशाल आकार है ज्वालामुखियों का

रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि राइट मोन्स नाम की एक सरंचना तो करीब 5 किलोमीटर ऊंची और 140 किलोमीटर चौड़ी है और उसका आयतन पृथ्वी पर मौजूद सबसे बड़ी ज्वालामुखी यानी हवाई के मौना लोआ के बराबर है.

रोथरी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि वह मौना लोआ गए हैं और उन्हें इस बात का अनुभव है कि वह कितनी बड़ी है. रोथरी का कहना है, "इससे मुझे अहसास हुआ कि प्लूटो के संदर्भ में राइट मॉन्स कितना बड़ा है, जबकि हमारी धरती के मुकाबले प्लूटो कितना छोटा है."

ज्वालामुखी की तस्वीरें न्यू होराइजंस की मदद से ली गई हैं. यह मानवरहित परमाणु ईंधन से चलने वाला अंतरिक्ष यान आकार में पियानो के बराबर है. यह पहला अंतरिक्ष यान है जो प्लूटो से गुजरा. यान 2015 में प्लूटो के पास से गुजरा था.

प्लूटो के बारे में इससे कई नई जानकारियां मिली हैं. प्लूटो को पहले सौर मंडल का सबसे दूर नवां ग्रह माना जाता था लेकिन 2006 में इसे क्षुद्र ग्रह घोषित कर दिया गया.


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