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पीयूष गोयल ने भारतीय व्यंजनों पर रिपोर्ट का किया लोकार्पण

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने उद्योग संगठन एसोचैम के कार्यक्रम में भारतीय व्यंजन पर एक विस्तृत रिपोर्ट 'इंडियन क्वि जीन्स एट ए क्रॉस रोड' का लोकार्पण किया

पीयूष गोयल ने भारतीय व्यंजनों पर रिपोर्ट का किया लोकार्पण
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नई दिल्ली। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने उद्योग संगठन एसोचैम के कार्यक्रम में भारतीय व्यंजन पर एक विस्तृत रिपोर्ट 'इंडियन क्वि जीन्स एट ए क्रॉस रोड' का लोकार्पण किया। यह रिपोर्ट एसोचैम फाउंडेशन द्वारा तैयार की गई है। रिपोर्ट विदेशी खाद्य पदार्थों के हमलों से देश की खाद्य विरासत की रक्षा करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भारत सभी के लिए सुरक्षित भोजन सुनिश्चित करने और कुपोषण जैसे मुद्दों को हल करने के अपने राष्ट्रीय लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है।

देश के 15 सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में किया गया एक सर्वेक्षण भी रिपोर्ट का हिस्सा है। इसमें 5,000 से अधिक लोगों ने अपने भोजन विकल्पों पर अपनी राय दी है।

सर्वेक्षण के अनुसार, 91 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे खाने में ज्यादा चीनी, नमक और वसा के परिणामों से अवगत हैं। टीयर-1 शहरों की तुलना में, टीयर-2 शहरों में भारतीयों में चीनी, नमक और वसा के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में अधिक जागरूकता है। 81 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके लिए पैकेज्ड खाद्य उत्पाद के पीछे दी गई जानकारी को समझना आसान था जबकि 40 प्रतिशत ने कहा कि इसे पढ़ना बहुत आसान है।

कुल मिलाकर, अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि भारतीय उपभोक्ता खरीदे जाने वाले खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता के बारे में चिंतित हैं और अधिकांश लोग खाद्य पैकेजों पर उपलब्ध कराए गए मौजूदा विवरणों से संतुष्ट नजर आते हैं। इससे यह बात पता चलती है कि बहुत ज्यादा जानकारी की हमेशा आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्ति और परिवार अपने भोजन को लेकर सतर्क रहते हैं।

हालांकि, गैर-ब्रांडेड सामानों के मामले में 94 प्रतिशत उपभोक्ताओं का कहना है कि उन्हें चिंता होती है। इससे पता चलता है कि खाद्य विनियमन को केवल डिब्बाबंद ब्रांडेड खाद्य उत्पादों को लक्षित करने की बजाय गैर-ब्रांडेड और अनपैकेज्ड भोजन की गुणवत्ता और सुरक्षा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो अधिकांश आबादी द्वारा खाया जाता है। जबकि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) जैसे नियामक निकायों ने क्लीन स्ट्रीट फूड हब परियोजना जैसे कुछ कदम उठाए हैं, चुनौती के पैमाने को देखते हुए उनका ध्यान सीमित लगता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पारंपरिक भारतीय व्यंजन उपभोग में संयम और स्वाद तथा पोषण दोनों प्राप्त करने के लिए सामग्री के कुशल संयोजन पर जोर देता है। हालांकि, पश्चिमी भोजन के लिए भारतीयों की पसंद बढ़ रही है। इसे आधुनिकीकरण, शहरीकरण और आर्थिक विकास से जुड़े व्यापक पोषण संबंधी बदलाव के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। यह प्रवृत्ति भारतीय व्यंजनों के साथ-साथ छोटे से मध्यम स्तर के पारंपरिक खाद्य निमार्ताओं को प्रभावित कर सकती है।

एसोचैम के महासचिव दीपक सूद ने कहा, भारत के विविध व्यंजनों को दुनिया भर में अच्छी स्वीकृति मिली हुई है। अब महत्वपूर्ण पोषण वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों को प्रदर्शित करने का समय आ गया है। भारत सरकार ने खाद्या उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने और और बाजरा जैसे उच्च पोषक तत्व वाले खाद्य पदार्थों के प्रचार के लिए नीतियों को लागू करने में कुछ शानदार काम किया है।

रिपोर्ट भारत की खाद्य यात्रा की पड़ताल करती है, आयुर्वेदिक जीवनशैली में अपनी जड़ें पाती हैं जिसे 6000 साल से पुरानी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के रूप में चित्रित किया गया है। इसका फोकस अच्छे स्वास्थ्य और आरोग्य पर है। रिपोर्ट पारंपरिक भारतीय खाद्य पदार्थों की विशिष्टता और वैज्ञानिक चरित्र को सामने लाने का प्रयास करती है और उन्हें वैश्विक व्यंजनों से अलग बनाती है। लोकप्रिय धारणा के विपरीत कि भारतीय भोजन कम स्वस्थ्यकर हैं, रिपोर्ट में कहा गया है कि स्नैक्स, पेय, संगत और मिठाई सहित सभी भारतीय व्यंजनों में गैर-पारंपरिक व्यंजनों की तुलना में कम कैलोरी होती है।

यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब भारत जी20 की अध्यक्षता कर रहा है, जिसका ध्यान स्थायी खाद्य सुरक्षा और मिलेट्स जैसे पारंपरिक खाद्यान्न को बढ़ावा देने पर है।

सूद ने कहा कि मिलेट्स के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में खुद को स्थापित करने के देश के प्रयासों को देश के विभिन्न राज्यों के जी20 देशों के साथ मिलेट्स और पारंपरिक व्यंजनों के लिए सहयोग करने से बल मिल रहा है। भारत इस साल जी20 देशों की बैठक की अध्यक्षता कर रहा है। यह महत्वपूर्ण है कि भोजन के सॉफ्ट पावर का संस्कृति और पाक कला के वैश्विक एकीकरण और देश की समृद्ध और विविध खाद्य विरासत को बढ़ावा देने में इस्तेमाल किया जाए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पारंपरिक खाद्य उद्योग स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाले पौष्टिक और स्वादिष्ट विकल्प प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। पारंपरिक भारतीय भोजन की वैज्ञानिक समझ विकसित करना महत्वपूर्ण है जो लोगों की आवश्यकताओं और खाद्य उद्योग को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारकों पर विचार करता है। यह समझ वैश्विक खाद्य वर्गीकरण पर आधारित नहीं होनी चाहिए।


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