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गांधी को 'महात्मा' बनाने वाला पीटरमारित्ज बर्ग

पीटरमारित्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई यह ऐतिहासिक घटना दमन की अभेद्य दीवार और राहत की आशा- दोनों का प्रतीक है

गांधी को महात्मा बनाने वाला पीटरमारित्ज बर्ग
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- डॉ.डी जॉन चेल्लादुराई

(सर्दियों की सर्द रात में एम के गांधी को ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंके जाने के ठीक 130 साल बाद 7 जून, 2023 को पीटरमारित्ज बर्ग रेलवे स्टेशन की अपनी यात्रा के बाद लेखक के विचार)

पीटरमारित्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई यह ऐतिहासिक घटना दमन की अभेद्य दीवार और राहत की आशा- दोनों का प्रतीक है। तेजी से जटिल हो रही लेकिन परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में पीटरमारित्ज बर्ग का संदेश हमें हर प्रतिकूल परिस्थिति में द्वंद्वात्मक संभावना की याद दिलाता है और पराजित किए बिना जीतने और चोट पहुंचाए बिना उपचार करने के तरीके से पार पाने की संभावना की याद दिलाता है।

हम स्वतंत्रता के 76 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। यहां महात्मा गांधी पर कुछ विचार हैं जिन्होंने देश की स्वतंत्रता को संभव बनाया। वह दिन जिसने उनके जीवन को बदल दिया, वह दिन जब उन्हें पीटरमारित्ज बर्ग रेलवे स्टेशन पर सर्द रात में ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया था। एक अमेरिकी मिशनरी डॉ. जॉन मॉट ने एक बार गांधी से पूछा था कि उनके जीवन का सबसे 'रचनात्मक अनुभव' क्या रहा है? गांधी ने सर्दियों की उस रात के अपने आंतरिक संघर्ष को याद किया जब उन्हें एक श्वेेत पुलिसकर्मी ने यह कहते हुए प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर यह कहकर फेंक दिया था कि 'कुलियों के लिये केवल वैन (सामान वाला डिब्बा) में जगह उपलब्ध है।' उसके बाद वे पीटरमारित्ज बर्ग रेलवे स्टेशन के अंधेरे प्रतीक्षालय में ठंड से कांपते हुए बैठे थे। उन्होंने डॉ मॉट से कहा- 'मेरी सक्रिय अहिंसा उस दिन से शुरू हुई।'

वैश्वीकरण के उथल-पुथल भरे युग में जहां सीमाएं धुंधली हो जाती हैं, अर्थव्यवस्थाएं आपस में जुड़ी होती हैं और पहचान एक-दूसरे से घुल-मिल जाती हैं, पीटरमारित्ज बर्ग शहर एक ऐसा संदेश देता है जो किसी भी श्रद्धेय तीर्थ स्थल की तरह गहरा और प्रभावी होता है। यह एक ऐसा संदेश है जिसने तीन उल्लेखनीय व्यक्तियों को प्रेरित किया: महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और मदीबा नेल्सन मंडेला, जिन्होंने अपने असाधारण जीवन के माध्यम से मानव सभ्यता को मानवता की ओर और अधिक अग्रसर किया।

पीटरमारित्ज बर्ग के संदेश के दो भाग हैं- पहला, बेइंसाफी करने वाला हर व्यक्ति अपने भीतर उस अन्याय को सुधारने और बेहतर भविष्य की आशा प्रदान करने की क्षमता रखता है। दमन की हर दीवार अपने भीतर एक छोटा गेट रखती है; और दूसरा, यह हमें सिखाता है कि 'अन्याय और अन्याय करने वाला एक नहीं है'। हम कुछ लोगों के अपराधों के लिए समग्रता को त्याग नहीं सकते। दूसरे संदेश पर सबसे पहले चर्चा करते हैं। मंडेला, किंग और गांधी इस धारणा से सहमत थे कि उनकी लड़ाई अन्याय के खिलाफ थी, अन्याय करने वाले के खिलाफ नहीं। उन्होंने यह मानते हुए कि गलत करने वाले, बुरे और पापी लोग हमारे अपने ही भाई और बहन थे, अपने प्रयासों को बुरे लोगों के खिलाफ नहीं बल्कि बुराई के खिलाफ दिशा दी।

मानव समुदायों में मतभेद और कलह अंतर्निहित हैं, वैश्विक जीवन की उभरती प्रवृत्ति हमें हर चुनौती को आंतरिक मामला मानने के लिए मजबूर करती है। एक आसन्न वैश्विक गांव की संक्रांति पर खड़े गांधी ने ईसा मसीह के संदेश को दोहराते हुए कहा: 'अपने दुश्मन से प्यार करो'। इस नई मिसाल में, विरोधी अब 'अन्य' नहीं हैं; वे उत्तरोत्तर साथी नागरिक और हितधारक बनते जा रहे हैं। इसी एहसास ने गांधी को सत्याग्रह की कार्यप्रणाली बनाने के लिए प्रेरित किया जो मानव चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक समावेशी उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण है।

इसलिए पीटरमारित्ज बर्ग का पहला संदेश एक सर्जन के समान है जो बीमारी और रोगी के बीच अंतर करता है। हम विरोधी को उनके गलत कामों से छुड़ाने की कोशिश करते हुए समाज को अन्याय से बचाना सीख सकते हैं और दोनों पक्षों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दे सकते हैं।

इस पसंदीदा शहर से मिला दूसरा संदेश पहले वाले संदेश का अग्रदूत है। यह इस बात के इर्द-गिर्द घूमता है कि हम इतिहास की व्याख्या कैसे करते हैं और हम इससे क्या सबक लेते हैं। पीटरमारित्ज बर्ग की घटना की टेपेस्ट्री में हम उन लोगों को प्रमुखता से देखते हैं जिन्होंने गांधी को ट्रेन से उतार दिया और जिन्होंने अगले दिन उन्हें धमकाया भी था। हालांकि समझदार लोगों के लिए यही कैनवास इन अन्याय करने वाले गोरों के उदार पक्ष को प्रकट करता है हालांकि दुर्भाग्य से इसे अक्सर अनदेखा किया जाता है। ट्रेन के डिब्बे से गांधी को फेंकने की घटना के बाद सुबह स्टेशन मास्टर ने उन्हें सांत्वना दी, उन्हें प्रथम श्रेणी का एक और टिकट प्रदान किया। बाद में ट्रेन और कोच की सवारी में साथी यात्रियों ने कंडक्टर से गांधी की रक्षा करने का अनुरोध किया। ये सभी दयालु लोग गोरे ही थे और उस अन्याय करने वाले समाज का हिस्सा थे जिन्होंने गांधी को पीड़ा दी थी।

अन्याय करने वाले वर्ग के ये कुछ सज्जन व्यक्ति एक न्यायसंगत संघर्ष में ट्रम्प कार्ड बनते हैं। इतिहास गवाह है कि युद्ध में जीत के लिए जांची-परखी रणनीति विरोधी की कमजोरी की पहचान करने और उसके मर्म पर हमला करने की रही है। एक न्यायसंगत संघर्ष में भी यह रणनीति उपयुक्त है; विरोधी खेमे में 'हृदय' की उपस्थिति उनकी एक कमजोरी होती है और सत्याग्रह के कारण यह कमजोरी एक ताकत के रूप में काम करती है।

यदि हम इस संदर्भ के माध्यम से ऐतिहासिक घटनाओं को देखते हैं तो हम देखते हैं कि अन्याय करने वालों के बीच स्पष्ट रूप से कुछ ऐसे 'हृदय' थे जो पीड़ित के लिए न्याय और पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करने की आशा का वादा करते थे। स्टेशन मास्टर, गांधी के साथी यात्री और दक्षिण अफ्रीका के अनगिनत यूरोपीय लोग जिनकी सहानुभूति गांधी के साथ हो गई थी- जैसे डोके परिवार, वेस्ट परिवार, पोलाक्स, कैलेनबॉख़, सोनजा श्लेसियन, पत्रकार कार्टराइट, नौकरशाह चिमने, पुलिस अधिकारी की पत्नी सारा अलेक्जेंडर आदि ने उस आशा और राहत को मूर्तरूप दिया। जब दुनिया ने केवल कठिन परिस्थिति को देखा उसी समय गांधी इस दमन के बीच एक छोटे दरवाजे की उपस्थिति देख सकते थे जिसने उन्हें अहिंसक संघर्ष के रास्ते को अपनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा, 'मनुष्य वास्तव में अच्छे हैं, गलतियों के लिए अति संवेदनशील और सत्य के प्रति उत्तरदायी हैं।'

मंडेला के संघर्ष में भी हम इसी तरह की गतिशीलता देखते हैं। उनके संघर्ष में डेनिस गोल्डबर्ग, एडवोकेट जॉर्ज बिज़ोस और लेखक एलन पैटन आशा के उस द्वार के प्रतीक थे। मार्टिन लूथर किंग जूनियर और उनके नागरिक अधिकार अभियान के पक्ष में खड़े होकर ऑर्लोफ मिलर, क्लार्क ओल्सन और जेम्स रीब जैसे श्वेत मंत्रियों ने अपने जीवन को खतरे में डाल दिया। ये लोग राहत के उस द्वार का उदाहरण बनते हैं।

पीटरमारित्ज बर्ग रेलवे स्टेशन पर हुई यह ऐतिहासिक घटना दमन की अभेद्य दीवार और राहत की आशा- दोनों का प्रतीक है। तेजी से जटिल हो रही लेकिन परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में पीटरमारित्ज बर्ग का संदेश हमें हर प्रतिकूल परिस्थिति में द्वंद्वात्मक संभावना की याद दिलाता है और पराजित किए बिना जीतने और चोट पहुंचाए बिना उपचार करने के तरीके से पार पाने की संभावना की याद दिलाता है। हिंसा से भरी दुनिया में यह सभी के लिए न्याय, सुलह और स्थायी भविष्य के लिए एक छोटा द्वार खोलता है।

(लेखक एमजीएम विश्वविद्यालय, औरंगाबाद में एफआईडीएस के डीन हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)


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