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आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर उभरी क्वारंटाइन सेंटर में!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के बीच जहां आम लोगों से 'आत्मनिर्भर भारत' का संदेश साझा किया, तो वहीं मध्यप्रदेश के एक क्वारंटाइन सेंटर में आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर उभरती नजर आई।

आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर उभरी क्वारंटाइन सेंटर में!
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बैतूल | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के बीच जहां आम लोगों से 'आत्मनिर्भर भारत' का संदेश साझा किया, तो वहीं मध्यप्रदेश के एक क्वारंटाइन सेंटर में आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर उभरती नजर आई। यहां ठहराए गए श्रमिकों ने झाड़ू, दोना-पत्तल बनाकर और सब्जियों की पैदावार में सहयोग कर आत्मनिर्भर भारत को बनाने में अपनी हिस्सेदारी जाहिर की।

मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही विकासखंड के धाबा गांव में है विद्या भारती का प्रद्युम्न धोटे स्मृति जनजाति छात्रावास। इस छात्रावास में 40 छात्रों के रहने की व्यवस्था है। इन दिनों छुट्टियां हैं, छात्र घर गए हैं और छात्रावास खाली होने के कारण प्रशासन ने बाहर से आ रहे श्रमिकों को 14 दिन क्वारंटाइन रखने के लिए केंद्र बनाया है। यहां बाहर से आ रहे श्रमिकों के आने-जाने का सिलसिला जारी है। श्रमिकों में बहुसंख्यक जनजाति वर्ग के हैं।

भारत भारती के सचिव व जिला आपदा प्रबन्धन समिति के सदस्य मोहन नागर ने कहा, "यहां आए श्रमिकों से कहा कि केंद्र की दिनचर्या में योग कराया जाता है तो सभी श्रमिक इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए। छात्रावास के अधीक्षक रामनरेश दोहरे द्वारा श्रमिकों को प्रतिदिन एक घंटे योगासन और प्राणायाम का अभ्यास कराया। जब योग किया तो उन्हें आनंद आया और वे नियमित रूप से योग करने लगे।"

उन्होंने बताया कि जनजाति वर्ग और श्रमिक के भीतर कभी भी बैठकर खाने की आदत नहीं रही और यहां क्वारंटाइन किए गए श्रमिक भी इसके लिए मन से तैयार नहीं थे। तभी कुछ ने केंद्र की इमारत की पुताई की इच्छा जताई, तो रंग आदि देने पर उन्होंने पुताई कर डाली।

क्वारंटाइन सेंटर में आए कुछ श्रमिक ऐसे हैं, जो झाड़ू, दोना-पत्तल आदि बनाना जानते हैं। फिर क्या था, पास के खजूर के पेड़ से उन्होंने पत्ते तोड़े और झाडू बनाने में लग गए और उसके अलावा पलाश के पत्ते तोड़कर दोना-पत्तल बनाना शुरू कर दिया। इन दोना-पत्तलों का उपयेाग श्रमिक अपने खाने के बर्तन के तौर पर कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, "इससे पानी कम खर्च हो रहा है, वहीं बर्तनों को साफ करने की जरूरत नहीं होती।"

एक तरफ जहां क्वारंटाइन सेंटर में रुके श्रमिक झाड़ू, दोना-पत्तल बना रहे हैं, वहीं कुछ लोग सब्जियां उगाने में भी मदद कर रहे हैं। महिला श्रमिक छात्रावास परिसर में लगी हरी सब्जियों की निंदाई-गुड़ाई में लगी हुई हैं। इसके अलावा खाली समय में श्रमिक आसपास पड़ी लकड़ियों को बीन लाते हैं।

श्रमिक दिनेश बाघमारे ने कहा, "क्वारंटाइन सेंटर की सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त है। हम यहां योगा आदि कर रहे हैं, बाकी समय खाली रहने पर यहां की पुताई का काम शुरू कर दिया। खाली बैठना अच्छा नहीं लगता।"

इसी तरह विनय जो पुणे में एक कंपनी में काम करता था, वह भी यहां क्वारंटाइन है। वह बताता है कि खाली समय का उपयोग करने के लिए उसने इमारत की पुताई की है। योग करने से उसे आनंद की प्राप्ति हेा रही है, वहीं खाने और रहने की व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं।

छात्रावास में श्रमिकों के भोजन व ठहरने की उत्तम व्यवस्था की गई हैं। यहां उन्हें पलंग और बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं। छात्रावास में आए श्रमिकों को पारिवारिक माहौल की अनुभूति हो रही है।

विद्या भारती जनजाति शिक्षा के राष्ट्रीय सहसंयोजक बुधपाल सिंह ठाकुर ने धाबा ग्राम पहुंचकर श्रमिकों का हालचाल जाना व उनके द्वारा किए जा रहे कार्यो को सराहा है। ठाकुर के अनुसार, इस क्वारंटाइन सेंटर में रुके श्रमिकों के जरिए उनके कौशल क्षमता का भी पता चला और इससे इन लोगों को बेहतर रोजगार के अवसर दिलाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में मदद भी मिलेगी।

उन्होंने आगे कहा कि क्वारंटाइन सेंटर की कार्यशैली आत्मनिर्भर भारत की तस्वीर को जाहिर करने वाली है। वह गांव, जंगल की सामग्री से किस तरह उत्पाद तैयार कर रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं, इसका भी खुलासा कर रही है।


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