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रोहिंग्या शरणार्थियों की तुरंत रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

 जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल रिहा करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है

रोहिंग्या शरणार्थियों की तुरंत रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
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नई दिल्ली। जम्मू में हिरासत में लिए गए रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल रिहा करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) के मार्फत शरणार्थी पहचान पत्र जारी करे।

रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में जम्मू की उप जेल में बंद रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने के किसी भी आदेश को लागू करने से रोकने के लिए शीर्ष अदालत से सरकार को निर्देश देने की मांग की।

याचिका में कहा गया है कि शरणार्थियों को सरकारी सर्कुलर को लेकर एक खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जो संबंधित अधिकारियों को अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान करने और तेजी लाने के निर्देश देता है।

याचिका में कहा गया है कि इसे जनहित में दायर किया गया है, ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया जा सके।

संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) के तहत प्राप्त अधिकारों की रक्षा के लिए यह याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि रोहिंग्या के मूल देश म्यांमार में उनके खिलाफ हुई हिंसा और भेदभाव के कारण बचकर भारत में आने के बाद उन्हें यहां से प्रत्यर्पित करने के खिलाफ यह याचिका दायर की गई है।

याचिका में शीर्ष अदालत से गुहार लगाई गई है कि वह यूएनएचसीआर को इस मामले में हस्तक्षेप करने के निर्देश जारी करे और न केवल जम्मू में, बल्कि पूरे देश में शिविरों में रखने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने की मांग की गई है। इसमें अदालत से शरणार्थी कार्ड मुहैया कराने के लिए भी सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि इस महीने की खबरों के अनुसार, जम्मू में लगभग 150 से 170 रोहिंग्या शरणार्थियों को हिरासत में लिया गया है।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल जनवरी में म्यांमार में अवैध रोहिंग्या मुस्लिम प्रवासियों को निर्वासित करने के केंद्र के फैसले के खिलाफ दलीलें सुनने के लिए सहमति व्यक्त की थी।


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