लोग मरने वाले की सतगति नहीं, संपत्ति की चिंता करते हैं : साध्वी हंसकीर्ति
विवेकानंद नगर स्थित ज्ञानवल्लभ उपाश्रय में जारी चातुर्मासिक प्रवचन में शनिवार को साध्वी हंसकीर्ति श्रीजी ने कहा कि उत्तम पुरुष वही हैं जो अपना दुख दूसरों से नहीं कहते

रायपुर। विवेकानंद नगर स्थित ज्ञानवल्लभ उपाश्रय में जारी चातुर्मासिक प्रवचन में शनिवार को साध्वी हंसकीर्ति श्रीजी ने कहा कि उत्तम पुरुष वही हैं जो अपना दुख दूसरों से नहीं कहते। जो लोग खुद कष्ट सहते हुए भी दूसरों की भलाई करते हैं, वे महापुरुष कहलाते हैं। हर व्यक्ति को अपने जीवन में ऐसा पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीश्री ने कहा कि इंसान जब मृत्य शय्या पर होता है, महावेदनाओं को सहता है। ऐसे वक्त में परिवारजनों की चिंता व्यक्ति के जीवन से ज्यादा उसकी मृत्यु को लेकर रहती है कि अब संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा। लोभ की यह प्रवृत्ति इंसान को शैतान बना देती है। धर्म कहता है कि मृत्यु निकट हो तो सतगति की चिंता होनी चाहिए, न कि संपत्ति की। परिवारजनों का यह कर्तव्य है कि मृत्यु के पूर्व उस व्यक्ति से अंतिम आराधना करवाएं, ताकि उस जीव की आत्मा को सतगति मिले। साध्वीश्री ने कहा, यदि किसी व्यक्ति को पांच लाख का नुकसान हो जाए तो वह सबसे अपनी व्यथा कहता है, लेकिन जब 5 लाख का फायदा होता है तो किसी को नहीं बताता क्योंकि लोग दुख में दूसरों का साथ चाहते हैं, सुख आता है तो सबको भूल जाते हैं। ऐसे दुर्गुण मनुष्य के जीवन को अंधकार की ओर लेकर जाते हैं। जिनमत के अनुसार, सुख-दुख का भोग समभाव से करना चाहिए। अर्थात सुख में ज्यादा खुश नहीं होना है और दुख में रोना नहीं है। जीवन का दूसरा नाम परिवर्तन है। इसे स्वीकार करते हुए शुद्ध भावों के साथ आगे बढ़ते रहिए, एक न एक दिन कल्याण निश्चित होगा।
बेवजह भविष्यवाणी करना, मुहूर्त देखना, ये सब पाप बंध का कारण
साध्वीवर्या ने कहा, जैनाचार्य ज्ञान होने के बाद भी कभी भविष्यवाणी नहीं तो इसकी वजह यही है कि बेवजह भविष्यवाणी करना, मुहूर्त देखना, फल बताना आदि कृत्यों को जिन शासन के विरूद्ध माना गया है। इनसे पाप कर्मों का बंध होता है। जैन धर्म में सिर्फ विशिष्ट प्रसंगों पर ही भविष्यवाणी, मुहूर्त देखने का विधान है। जैसे किसी जिनालय में प्राण-प्रतिष्ठा करनी हो तब साधु भगवंत मुहूर्त बताते हैं या ऐसे ही अन्य महत्वपूर्ण मौकों पर। ग्रह-दोष आदि बातों की भलीभांति जानकारी रखने वालों को समकित के 67 बोल में निमित्त की उपमा दी गई है। समाज को जब जरूरत पड़ती है, निमित्त उसका मार्गदर्शन करते हैं। जैसे कहीं आकाशीय घटना, भूकाल की आशंका हो तो निमित्त सही वक्त पर लोगों को जानकारी देते हैं। ऐसे मौकों पर की गई भविष्यवाणी पाप बंध का कारण नहीं बनती क्योंकि इसका उद्देश्य समाजहित है। वहीं अन्य मतों को मानने वालों के बीच जिन शासन की प्रभावना भी होती है।
तपस्वी का बहुमान
चातुर्मास समिति के प्रचार प्रसार प्रभारी चंद्रप्रकाश ललवानी ने बताया कि शनिवार को तपस्वी संयम जैन ने साध्वीवर्या से आठवें उपवास का प्रत्याख्यान लिया। इस अवसर पर श्रीसंघ ने तपस्वी का बहुमान किया और उनके तप की अनुमोदना की।


