हिमाचल: जनजातीय पांगी घाटी के लोगों ने किया चुनाव के बहिष्कार का ऐलान
हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में जनजातीय पांगी घाटी के लोगों की सुरंग बनाने की मांग पिछले पांच दशकों तक पूरी न होने के विरोध में लोगों ने इस बार चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है

शिमला। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में जनजातीय पांगी घाटी के लोगों की सुरंग बनाने की मांग पिछले पांच दशकों तक पूरी न होने के विरोध में लोगों ने इस बार चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला किया है।
घाटी के लोग हिमपात के छह माह के समय में कारावास भुगतने को मजबूर हैं। चंबा जिले की दूरदराज क्षेत्र पांगी के लोगों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों ने जनता को सुरंग निर्माण का लालच देकर उन्हें मात्र वोट बैंक के रूप में ही इस्तेमाल किया है। अब घाटी के लोगों का लोकतंत्र से विश्वास उठ गया है और इस बार लोगों ने एकजुट होकर लोकसभा चुनाव का बहिष्कार का निर्णय लिया है।
पांगी संघर्ष समिति के संयोजक हरीश शर्मा ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि वर्ष के छह माह से अधिक समय तक घाटी शेष दुनिया से कटी रहती है। राजाओं की दंड भूमि के नाम से जानी जाने वाली पांगी घाटी को आज भी लोग कालापानी ही कहते हैं।
यहां विकास अब तक नहीं हुआ है । लोग तो सुरंग निर्माण की मांग इसलिये कर रहे हैं ताकि बीमार लोगों को समय पर उपचार मिल जाये।
सुरक्षा की दृष्टि से भी यह सुरंग काफी लाभदायक सिद्ध होगी। सुरंग निर्माण से पठानकोट-डलहौजी-तीसा-पांगी-लेह मार्ग की दूरी मात्र 421 किलोमीटर तक सिमट कर रह जाएगी। जबकि वर्तमान में पठानकोट-मनाली-लेह की कुल दूरी 802 किलोमीटर है। लिहाजा इससे रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रति वर्ष करोड़ों रुपए की बचत की जा सकती है।
सरकारें आज देश व प्रदेश के हर कोने में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के बड़े- बड़े दावे कर रही हैं लेकिन पांगी में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात कुछ और ही बयां करते हैं।
आपातकालीन स्थिति में पांगी से रेफर होने वाले मरीजों को मौत के मुंह में धकेला जाता हैं। सर्दियों में बर्फ से ढके मार्गों के बीच से मरीज को 340 किलोमीटर दूर जम्मू पहुंचाना असंभव हो जाता है। यही कारण है कि सर्दियों में उपचार के अभाव में घाटी में मृत्यु दर में भी इजाफा होता है।


