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उच्च पदों पर बैठे लोगों को बिना सोचे बयान नहीं देना चाहिए : साल्वे

वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मंत्रियों या उच्च पदों पर बैठे लोगों को सार्वजनिक तौर पर बयान देते समय संयम बरतना चाहिए

उच्च पदों पर बैठे लोगों को बिना सोचे बयान नहीं देना चाहिए : साल्वे
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नई दिल्ली। वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मंत्रियों या उच्च पदों पर बैठे लोगों को सार्वजनिक तौर पर बयान देते समय संयम बरतना चाहिए। शीर्ष अदालत ने दो वरिष्ठ वकीलों -साल्वे व फली नरीमन- को उसे सहयोग देने या एमिकस क्यूरी के तौर पर नियुक्त किया है, जो यह परीक्षण कर सकें कि चुने हुए प्रतिनिधियों या राजनेताओं को लंबित आपराधिक मामलों पर बयान देने से रोका जा सकता है या नहीं और अगर वे ऐसा करते हैं तो क्या यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मूल अधिकार पर नियंत्रण करने जैसा होगा।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है। इन न्यायाधीशों में इंदिरा बनर्जी, विनीत सरण, एम.आर.शाह व रविंद्र भट शामिल हैं।

सुनवाई के दूसरे दिन साल्वे ने मंत्रियों व उच्च पद धारण करने वाले अन्य लोगों को बिना सोचे समझे बयान देने से बचने पर जोर दिया।

उन्होंने कोर्ट से कहा कि पद मंत्रियों पर कोई भी सार्वजनिक तौर पर कोई भी बयान देते समय संयम बरतने की जिम्मेदारी डालता है।

कोर्ट ने कहा कि कोई कैसे उस स्थिति को संभाल सकता है, जो मंत्री पर संयम लागू करता है? साल्वे ने कहा कि वह प्रशासन से जुड़े मुद्दे के अलावा किसी अन्य मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करेंगे।

साल्वे ने सोशल मीडिया के खतरे का हवाला दिया, खास तौर से निजता के अधिकार का। उन्होंने फेसबुक व व्हाट्सअप यूजर्स के मामले का हवाला दिया, जो अक्सर सोशल मीडिया पर निजता के पहलू को जाहिर करते हैं।

पीठ के एक न्यायाधीश ने लेखक सलमान रुश्दी के मामले का हवाला दिया, जिन्होंने कुछ ऐसा लिखा था जिसे इस्लामी दुनिया के लिए आपत्तिजनक माना गया था।

न्यायाधीश ने पूछा, "मौत की धमकियों के बाद उन्हें सुरक्षा दी गई। वह संभवतया विजिलेंट समूहों द्वारा खतरों का सामना कर सकता है या एक आम आदमी निजी कॉरपोरेशन द्वारा सामना कर सकता है.. इस परिदृश्य में क्या यह स्थिति नहीं है कि व्यक्तियों के अधिकारों को प्रतिबंधित करने की जरूरत है?"

अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा था कि कोर्ट को यह जांच करनी चाहिए कि क्या संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत राज्य की शक्ति को उचित प्रतिबंध लगाने के लिए विस्तार दिया जा सकता है।


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