लोगों को दूषित पानी पीने से नहीं मिल रही निजात
शहर के कई क्षेत्रों में नगर निगम द्वारा की जा रही पानी की आपूर्ति में क्लोरीशन की मात्रा शून्य पायी गई है
गाजियाबाद (देशबन्धु)। शहर के कई क्षेत्रों में नगर निगम द्वारा की जा रही पानी की आपूर्ति में क्लोरीशन की मात्रा शून्य पायी गई है। पिछले दिनों स्वास्थ्य विभाग की टीम ने कई क्षेत्रों में पेयजल के नमूने लिए थे। जिन क्षेत्रों में पेयजल की मात्रा शून्य मिली। नगर निगम को अवगत करा दिया गया था। इससे यह साफ है कि आज भी लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। महानगरवासियों को स्वच्छ पेयजल मिले इसके लिए लाखों रुपए नगर निगम खर्च कर चुका है और करोड़ों रुपए का बजट प्रस्तावित है।
इसके बावजूद लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की न कोई निगम की कारगर योजना है और न ही लोगों को दूषित पानी से निजात मिलने की उम्मीद दिखाई दे रही है। दूषित पानी पीने से लगातार लोग बीमार हो रहे हैं और इलाज के लिए जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं। जांच कराने पर प्रतिदिन दस से पंद्रह मरीजों में टायफाइड के मरीजों की पुष्टि हो रही है।
नगर निगम पिछले लंबे समय से अधिकांश स्थानों पर क्लोरीनेशन नहीं करा रहा है, इसके चलते लोग बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। क्लोरीनेशन न होने से पानी में बैक्टीरिया व वायरस बढ़ रहे हैं। नतीजतन डायरिया, टायफाइड, पीलिया, लीवर व आंत में सूजन की बीमारी की गिरफ्त में लोग आ रहे हैं। जिला अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों में दूषित पानी के कारण बीमारी की चपेट में आने वालों की संख्या अधिक है। शहर की करीब पौने 16 लाख की आबादी के बीच लगभग 12 लाख कनेक्शन धारक जलकल की पर्ची कटवा रहे हैं। लेकिन जो पानी उन्हें पीने को मिलना चाहिए, उसमें लगातार गिरावट आ रही है। माइक्रो इलेक्ट्रानिक्स डोजर मशीन क्लोरीनेशन का काम करती है, लेकिन अधिकांश नलकूपों पर डोजर या तो खराब पड़ा है या लगा ही नहीं है। ऐसे में पानी में क्लोरीन की जो मात्रा शहरियों को मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है। नतीजतन पानी में बैक्टीरिया व वायरस बढ़ रहे है।
गर्मी के मौसम में क्लोरीन का प्रतिशत शून्य होने से डायरिया, टायफाइड, पीलिया, लीवर, आंत में सूजन आदि की शिकायत बढ़ जाती है। हालात यह है कि एमएमजी अस्पताल की ओपीडी में 50 फीसद से ज्यादा मरीज दूषित पानी पीकर बीमार पड़ने वाले होते हैं। निजी क्लीनिक से अस्पताल तक में भी ऐसे मरीजों की तादाद अच्छी खासी देखने को मिल रही है।


