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छात्रवृत्ति घोटाले में गीतराम की गिरफ्तारी का रास्ता साफ

उत्तराखंड में करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति घोटाले के कथित आरोपी एवं समाज कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक गीताराम नौटियाल को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिल पायी है।

छात्रवृत्ति घोटाले में गीतराम की गिरफ्तारी का रास्ता साफ
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नैनीताल । उत्तराखंड में करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति घोटाले के कथित आरोपी एवं समाज कल्याण विभाग के संयुक्त निदेशक गीताराम नौटियाल को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिल पायी है। न्यायालय ने गीताराम की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया है जिससे उनकी (श्री गीताराम) की गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया है।

गीताराम उत्तराखंड के समाज कल्याण घोटाले में कथित रूप से आरोपी हैं। उन पर बतौर हरिद्वार के तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी के रूप में अनुसूचित जाति जनजाति के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति की धनराशि को प्रावधानों के विपरीत आवंटन करने का आरोप है। घोटाले में तथ्य मिलने के बाद गीताराम को विशेष जांच दल ने पूछताछ के लिये बुलाया था।
गीताराम इसके बाद से ही गिरफ्तारी से बचने के लिये तमाम जतन कर रहा है। गिरफ्तारी से बचने के लिये गीतराम ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। एकलपीठ ने आरोपी गीताराम नौटियाल को राहत देने से मना कर दिया था। गीताराम ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उन्हें उच्च न्यायालय में प्रार्थना पत्र पेश करने को कहा।

इसके बाद नौटियाल ने मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की अदालत में याचिका दायर की। लंबी सुनवाई के बाद युगलपीठ ने निर्णय को सुरक्षित रख लिया था। गुरुवार को अदालत ने निर्णय जारी किया और गीताराम की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि छात्रवृत्ति घोटाला एक गंभीर मामला है और याचिकाकर्ता पर गंभीर आरोप हैं। इसलिए याचिकाकर्ता को राहत नहीं दी जा सकती है।

इससे पहले भी गीताराम को उच्च न्यायालय से झटका लग चुका है। उच्च न्यायालय ने गीताराम के मामले में जारी अनुसूचित जाति जनजाति आयोग की ओर से लगी गिरफ्तारी पर रोक को हटा दिया था। कोर्ट ने आयोग की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया था।

आयोग ने गीताराम मामला लंबित होने का हवाला देते हुए गीतराम को गिरफ्तार नहीं करने के निर्देश दिये थे। इसके बाद हरिद्वार निवासी पंकज कुमार ने आयोग के फैसले को जनहित याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने आयोग के निर्णय को खारिज कर दिया था।


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