गरीब बच्चों के पालक घर बैठे दिला सकते हैं प्रवेश
गरीब बच्चों को उनके पालक शिक्षा अधिकार कानून के तहत घर बैठे ऑनलाइन आवेदन कर निजी स्कूलों में प्रवेश दिला सकते है

बिलासपुर। गरीब बच्चों को उनके पालक शिक्षा अधिकार कानून के तहत घर बैठे ऑनलाइन आवेदन कर निजी स्कूलों में प्रवेश दिला सकते है। इसके लिए निजी स्कूलों में पहली कक्षा के 25 फीसदी सीट आरक्षित होता है। अब ऑनलाइन प्र्रवेश प्रक्रिया हो जाने से पारदर्शिर्ता काफी बढ़ जाएगी। 15 से 30 अपै्रल 2018 के बीच ऑनलाइन फार्म भरे जा सकते हैं।
निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार कानून 2009 के तहत बीपीएल कार्डधारी परिवारों के बच्चों को निजी स्कूलों में निशुल्क प्रवेश का प्रावधान है। उनके लिए पहली कक्षा के कुल सीट का पच्चीस फीसदी आरक्षित रखना पड़ता है। सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को नोडल अधिकरी बनाई जाती है। बच्चे के निवास के एक किलोमीटर के दायरे के स्कूलों में आवेदन किया जा सकता है।
निशुल्क प्रवेश के लिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के बच्चे, चालीस प्रतिशत या उससे अधिक नि:शक्तता से ग्रस्त बच्चे, ऐसे बच्चे जिनके संरक्षक आदिम जाति समूह के हो, ऐसे बच्चे जिनके संरक्षक अनुसूचित जनजातियों और परम्परागत वनवासी अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन अधिकारों के मान्यता पत्रधारी हो, साथ ही ऐसे बच्चे जिनके संरक्षक गरीबी रेखा में शामिल हो, ऐसे बच्चे भी जिनके माता-पिता जीवित नहीं है किन्तु उनके मृत्यु के समय गरीबी रेखा के सूची में उनका नाम सम्मिलित हो वे सभी शिक्षा अधिकार कानून के तहत निशुल्क प्रवेश में पात्रता रखते हैं।
हाईकोर्ट ने दिए ये निर्देश
वर्ष 2014 में भिलाई निवासी सीवी बलवंत राव ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाकर अनुरोध किया था कि शिक्षा अधिकार कानून के तहत प्रवेश पाने वाले बच्चों को सरकार मुफ्त गणवेश, पाठ्य पुस्तक व अन्य सुविधाएं दे। राज्य सरकार इन सुविधाओं के एवज के लिए प्रत्येक बच्चो पर 650 रूपए दे रही है।
इस पर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह बच्चों या उनके पालकों को गणवेश या अन्य सुविधाओं के लिए नकद राशि का भुगतान करे। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि मुख्य सचिव निजी स्कूलों में पढ़ने वाले आरटीई के बच्चों को स्कूल के माध्यम से सुविधाएं उपलब्ध कराएं।
25 फीसदी सीट आरक्षित रखना अनिवार्य
शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निजी स्कूलों में कक्षा पहली मे 25 प्रतिशत सीटों का आरक्षण रखना अनिवार्य होता है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए वर्ष 2002-3 के सर्वे के अनुसार गरीबी रेखा में नाम होना चाहिए वहीं शहरी क्षेत्रों के लिए वर्ष 2007-8 के सर्वे के अनुसार गरीबी रेखा में नाम होना चाहिए।
निजी स्कूलों की मनमानी
हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी निजी स्कूलों की मनमानी खत्म नहीं हो पा रही है और शिक्षा अधिकार कानून के तहत पढ़ने वाले बच्चों से डायरी, फोटो, आईकार्ड के नाम पर शुल्क वसूले जा रहे है। यहा तक की शैक्षिक भ्रमण के नाम पर भी मोटी फीस वसूल रहें हैं।


