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सहनशीलता के आलोक में पंडित नेहरु और संघ परिवार

केन्द्र में वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा और उसके प्रधानमंत्री को जरा सी भी आलोचना सहन नहीं है

सहनशीलता के आलोक में पंडित नेहरु और संघ परिवार
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- एल एस हरदेनिया

नेहरू जी से संबंधित ये दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि सहिष्णुता क्या होती है। इस समय सत्ताधारी पार्टी यह दावा कर रही है कि देश में सहिष्णुता का वातावरण है। मेरी राय में इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। सच यह है कि भाजपा और संघ के नेता जो कह रहे हैं और जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उसे कोई भी सहन नहीं कर सकता।

केन्द्र में वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा और उसके प्रधानमंत्री को जरा सी भी आलोचना सहन नहीं है। वे आलोचना करने वाले कई पत्रकारों और विपक्षी नेताओं से बदला लेने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। यहां तक कि उन्हें झूठे-सच्चे आरोप लगाकर गिरफ्तार करने और कई महीनों तक कैद रखने के बहुत से मामले हमने देखे हैं। इस पृष्ठभूमि में नेहरू जी की पुण्यतिथि (27 मई) के अवसर पर यह देखना प्रासंगिक होगा कि नेहरू जी का उनकी आलोचना करने वालों के प्रति क्या रवैया रहता था और वर्तमान शासक दल का क्या रवैया रहता है।

लोकसभा में चीनी हमले पर बहस हो रही थी। बहस में भाग लेते हुए समाजवादी सदस्य हेम बरूआ ने नेहरू जी को गद्दार कह दिया। नेहरू जी स्वयं सदन में बैठे थे। लोकसभा के भोजनावकाश के दौरान नेहरूने हेम बरूआ को बुलवाया। नेहरू जी ने उन्हें काफी पिलवाई, उनके भाषण की प्रशंसा की और आने के लिये धन्यवाद कहकर उन्हें विदा किया।

इसी तरह, लोकसभा में एक समाचारपत्र के विरूद्ध प्रस्तुत अवमानना के प्रस्ताव पर बहस चल रही थी। समाचारपत्र ने तत्कालीन स्पीकर सरदार हुकुम सिंह के विरूद्ध एक अपमानजनक टिप्पणी की थी। टिप्पणी लगभग बेबुनियाद थी इसलिए इसकी लोकसभा में रोषपूर्ण प्रतिक्रिया हुई। अनेक सदस्यों ने मांग की कि संबंधित समाचारपत्र के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए। बहस में हस्तक्षेप करते हुए नेहरू जी ने कहा कि अखबार के संपादक के विरूद्ध काफी कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। इस पर सदन में तालियां बजीं परंतु कुछ क्षणों के बाद, ऊंची आवाज़ में नेहरू ने कहा कि मेरी राय में इस समाचारपत्र की उपेक्षा की जाए, उसकी टिप्पणी को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया जाए। मेरी राय में यही सबसे कड़ी कार्रवाई होगी।

27 मई, 1964 को नेहरू जी की मृत्यु हुई। नेहरू जी की मृत्यु के बाद हेम बरूआ ने एक लेख लिखा। लेख में उन्होंने कहा कि नेहरू के पार्थिव शरीर का मैंने तीन बार चरण स्पर्श किया। पहली बार मैंने आज़ादी के आंदोलन के हीरो के रूप में उन्हें सलाम किया, दूसरी बार एक महान प्रधानमंत्री के रूप में मैंने उन्हें याद किया और तीसरी बार मैंने उन्हें गद्दार कहने के अपने गंभीर अपराध के लिए क्षमा मांगी।

नेहरू जी से संबंधित ये दोनों घटनाएं यह बताती हैं कि सहिष्णुता क्या होती है। इस समय सत्ताधारी पार्टी यह दावा कर रही है कि देश में सहिष्णुता का वातावरण है। मेरी राय में इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। सच यह है कि भाजपा और संघ के नेता जो कह रहे हैं और जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उसे कोई भी सहन नहीं कर सकता। हमें याद है कि बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि यदि राज्य में भाजपा हारेगी तो पाकिस्तान में पटाखे चलेंगे। अमित शाह ने ऐसा कहकर पूरे बिहार का अपमान किया था। बिहार ने उनके द्वारा किए गए इस अपमान का बदला भाजपा को हराकर लिया। यदि ऐसी भाषा में भाजपा के बारे में बोला जाता तो उसके नेता आसमान सिर पर उठा लेते। सच पूछा जाए तो संघ परिवार की यह फितरत है कि यदि वह किसी के बारे में कुछ भी कहे तो उसे सहा जाए परंतु यदि कोई उसके विरूद्ध कोई कुछ कहता है, तो वह उसे कदापि सहन नहीं करता। संघ परिवार की एक और आदत यह है कि यदि कोई उसके किसी विचार या नेता की आलोचना करता है तो वे उसे तुरंत पाकिस्तान चले जाने की सलाह देता है। जैसे जब शाहरूख खान और आमिर खान ने कुछ ऐसी बातें कहीं जो संघ परिवार को पसंद नहीं आईं तो उसकी ओर से आदेश दे दिया गया कि दोनों पाकिस्तान चले जाएं।

सच बात यह है कि जब से दिल्ली में एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली है तब से ही पूरे देश में घृणा का वातावरण निर्मित हो गया है। इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेता, जिनमें कुछ केन्द्रीय मंत्री शामिल हैं, ऐसी बातें कहने लगे हैं जो एक प्रजातांत्रिक समाज में नहीं कही जानी चाहिए। इससे बड़ी चिंता की बात यह है कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने ऐसे गैर-ज़िम्मेदार नेताओं को दंडित करना तो दूर, उन्हें फटकारा तक नहीं।

असल बात यह है कि संघ परिवार के अंदर भी उसके सदस्यों को बोलने की आज़ादी नहीं है। बुनियादी रूप से संघ एक फासिस्ट संगठन है। इस संगठन में उसी तरह की परंपरा है जैसी सेना में रहती है। जब संघ का कोई कार्यक्रम होता है तो स्वयंसेवकों को दो आदेश दिए जाते हैं-पहला शांति बनाए रखिए और दूसरा ताली मत बजाइए।
किसी के भाषण के दौरान ताली उस समय बजाई जाती है जब हमें वक्ता की कोई बात अच्छी लगती है। तालियां बजाना मन की भावना प्रकट करने का माध्यम है। परंतु लगता है कि संघ में अपनी प्रसन्नता जाहिर करने पर भी प्रतिबंध है। संघ यह मानता है कि चूंकि अब हम सत्ता में हैं इसलिए पूरा देश संघ की शाखा बन गया है और वहां वही अनुशासन होना चाहिए, जो संघ की शाखा में रहता है।

लगता है कि संघ यह भूल गया है कि भारत वह देश है जहां गांधी और नेहरू ने जन्म लिया था, जिन्होंने आज़ाद भारत की नींव रखी और सभी नागरिकों को वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी। हम एक प्रजातांत्रिक देश हैं और प्रजातंत्र की सबसे बड़ी शर्त वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

यदि इन स्वतंत्रताओं को सीमित कर दिया जाता है तो उससे प्रजातंत्र की नींव कमज़ोर होती है। प्रजातंत्र का अर्थ केवल चुनाव नहीं है। चुनाव, प्रजातंत्र का एक हिस्सा भर हैं। बोलने-लिखने की आज़ादी प्रजातंत्र में अपरिहार्य है। नेहरू जी ने वास्तविक प्रजातंत्र की नींव रखी थी। आज की सत्ताधारी पार्टी, नेहरू की स्मृति के साथ-साथ उनके द्वारा स्थापित हमारे प्रजातांत्रिक समाज को भी नष्ट करना चाहती है।


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