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मौखिक समझौतों की लाज नहीं रख रही पाकिस्तानी व चीनी सेना

लद्दाख में पैंगांग झील के फिंगर 4 तथा गलवान नदी के घाटी इलाके में भी उसे ऐसी ही परिस्थ्तिियों से जूझना पड़ रहा है।

मौखिक समझौतों की लाज नहीं रख रही पाकिस्तानी व चीनी सेना
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--सुरेश एस डुग्गर--

लद्दाख फ्रंटियर का मसला सर्दियों में सीमा चौकिओं को खाली करने का है......

जम्मू । लद्दाख में चीन की सीमा पर लाल सेना की घुसपैठ से एक बार फिर जूझ रही भारतीय सेना के लिए ऐसी परिस्थितियां इसलिए पैदा हुई हैं क्योंकि पाकिस्तानी सेना के बाद अब चीनी सेना भी उन मौखिक समझौतों की लाज नहीं रख रही है जिसके तहत भयानक सर्दियों में दुर्गम क्षेत्रों में खाली छोड़ी गई सीमा चौकिओं व इलाकों पर कब्जा न करने का समझौता होता हैै। वैसे ऐसा ही धोखा भारतीय सेना करगिल युद्ध के तौर पर 1999 में पाक सेना से खा चुकी है।

लद्दाख में पैंगांग झील के फिंगर 4 तथा गलवान नदी के घाटी इलाके में भी उसे ऐसी ही परिस्थ्तिियों से जूझना पड़ रहा है। पिछले कई सालों से भारतीय सैनिक इन इलाकों में सर्दी के कारण खाली छोड़ी गई सीमा चौकिओं तथा इलाके पर समय पर कब्जा जमा लेते थे लेकिन इस बार उन्हें कोरोना ने मुसीबत में डाल दिया।

अधिकारियों के मुताबिक, मार्च के शुरू में ही चीन सीमा से सटी सर्दियों में खाली छोड़ी गई सीमा चौकिओं पर पुनः कब्जा जमाने की मुहिम भारतीय सेना आंरभ कर देती है। परंतु इस बार लेह स्थित 14वीं कोर ने कवायद में देरी कर दी थी। कारण स्पष्ट था। एक जवान कोरोना पाजिटिव था तो करीब पूरी बटालियन को क्वारांटाइन कर देना पड़ा। वायरस से डर के मारे अन्य बटालियनों की जांच का कार्य आरंभ किया गया तो चीन सीमा पर सैनिकों की रवानगी में हुई देरी का लाभ चीनी सेना ने उठा लिया।

नतीजा सामने था। कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमा उन्हें विवादित घोषित करने वाली चीनी सेना ने 5 हजार से अधिक जवानों, टैंकों, तोपखानों और अन्य बख्तरबंद वाहनों के साथ पैंगांग झील तथा गलवान नदी के उन इलाकों पर कब्जा जमा लिया जिन पर पहले भी कई बार दोनों सेनाओं के बीच मौखिक झड़पें तथा पत्थरबाजी हो चुकी थी।

दरअसल लद्दाख के मोर्चे पर भी अभी तक की स्थिति यह थी कि करगिल की तरह यहां की सीमा चौकिओं को हमेशा ही खाली रखा जाता था। हालांकि करगिल युद्ध से पहले करगिल की सीमा चौकिओं को पाक सेना के साथ हुए मौखिक समझौते के तहत सिर्फ सर्दियों में ही खाली किया जाता था और चीन सीमा पर ऐसा न ही कोई मौखिक समझौता चीनी सेना से था और न ही भारतीय सेना के पास ऐसा साजो सामान था की वह 646 किमी लंबी एएलसी पर सारा साल अपने जवानों की तैनाती बरकरार रखती।

इस बार भी चीनी सैनिकों के कब्जे की खबरें उन गडरियों ने दी थी जो अपने जानवरों के साथ ही गर्मियों की दस्तक के साथ ही चारागाहों की ओर कूच कर गए थे। नतीजतन आनन फानन में भारतीय सेना ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए माउंटन ब्रिगेड के अतिरिक्त लद्दाख स्काउटस के जवानों को टैंको और तोपखानों के साथ कब्जे वाले क्षेत्रों मे तैनात कर दिया। एक जानकारी कहती है कि चीनी सेना के कब्जे में 50 से 60 वर्ग किमी का इलाका है। हालांकि पिछले हफ्ते चीनी सेना के करीब 2 किमी पीछे हटने की खबरें भी आई थीं पर यह वापसी घुसपैठ के मात्र एक प्वाइंट से हुई है जबकि करीब 5 प्वाइंटों पर चीनी सेना अभी भी भारतीय क्षेत्र में कई किमी भीतर आकर डटी हुई है।


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