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काबुल के महत्वपूर्ण फैसलों में अपनी भूमिका को मजबूत करने में जुटा पाकिस्तान

पाकिस्तान अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार के लिए पूरे जोश के साथ प्रचार कर रहा है

काबुल के महत्वपूर्ण फैसलों में अपनी भूमिका को मजबूत करने में जुटा पाकिस्तान
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काबुल/नई दिल्ली। पाकिस्तान अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार के लिए पूरे जोश के साथ प्रचार कर रहा है। प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा तक, हर पाकिस्तानी नेता तालिबान के तत्वावधान में एक व्यापक-आधारित सरकार के लिए माहौल बना रहा है। तालिबान ने अमेरिकी नेतृत्व वाली नाटो सेना के देश छोड़ने पर हाल ही में युद्धग्रस्त देश पर कब्जा किया लिया है, जिसके बाद पाकिस्तान भी एक भूमिका के साथ उभरा है।

फिर भी, पाकिस्तान के इस कोरस यानी सामूहिक स्वर को अविश्वास के रूप में उतना ही संदेह का सामना करना पड़ रहा है। यह मुख्य रूप से इसलिए है, क्योंकि दुनिया तालिबान और उसके सहयोगियों को आतंक के परि²श्य में पाकिस्तानी सेना की आंख और कान के रूप में देखती है, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का भी अहम योगदान है।

जिस तरह से आईएसआई प्रमुख अब नई व्यवस्था में पदों के लिए जुगाड़ में लगे तालिबान समूहों के बीच शांति कायम करने का काम कर रहे हैं, उसने तालिबान की सावधानीपूर्वक तैयार की गई छवि को धूमिल किया है। तालिबान ने हालांकि पाकिस्तान के साथ संबंधों से इनकार किया था, मगर इसने उसे बेनकाब कर दिया है।

इसके अलावा, पाकिस्तान के भीतर और बाहर, एक समावेशी सरकार की मांग को हक्कानी जैसे आईएसआई के प्रतिनिधियों के लिए महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित करने के लिए एक चाल के रूप में देखा जाता है। लेकिन काबुल के नए सत्ता ढांचे के गठन में देरी ने फरहतुल्ला बाबर जैसे दिग्गजों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

पेशावर के वयोवृद्ध राजनेता, जो पाकिस्तान के तालिबानीकृत कबायली बेल्ट का प्रवेश द्वार है, ने 4 सितंबर को ट्वीट करते हुए कहा था, अफगानिस्तान के विजेताओं (तालिबान) की ओर से पिछले शुक्रवार को सरकार बनाने की घोषणा के बावजूद अभी तक सरकार नहीं बन पाई है। हक्कानी, मुल्ला बरादर के बीच आंतरिक शक्ति संघर्ष संभावित कारण है। हक्कानी को काबुल आने वाले कुछ आगंतुकों से खुश होना चाहिए।

पेशावर के अनुभवी राजनेता काबुल के जिस आगंतुक का जिक्र कर रहे थे, वह आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ही हैं।

एक अफगानी एक्टिविस्ट और मानवाधिकार प्रचारक, जरीफा गफरी ने मुल्ला बरादर पर कटाक्ष करते हुए कहा, क्या मुल्ला ब्रदर को याद है कि वह एक पाकिस्तानी जेल में थे? और यह आदमी (आईएसआई प्रमुख) जिसका आज काबुल में स्वागत किया गया है, मुख्य रूप से इसके लिए जिम्मेदार है? क्या उन्हें याद है कि पाकिस्तानी सैनिक उन्हें एक जानवर की तरह उन जंजीरों के साथ जगह-जगह ले जा रहे थे।

ट्वीट में कई प्रकार की चीजें झलकती है। यह पाकिस्तान-अफगान संबंधों में आज और कल के बीच की खाई को दिखाता है। अफगान राजनीति में एक निडर शुरूआत करने वाली गफरी हत्या के तीन प्रयासों से बची हैं। वह 2019 में वर्दक प्रांत की राजधानी मैदान शहर की मेयर ऐसे समय में बनीं थीं, जब आसपास कई महिला राजनेता नहीं थीं। जरीफा को 2020 में अमेरिकी विदेश मंत्री द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साहस दिखाने के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है।

अफगान राजधानी में घूम रही खबरों के अनुसार, पाकिस्तानी दूतावास इस्लामाबाद/रावलपिंडी से काबुल तक प्रति घंटे के आधार पर निर्देश जारी कर रहा है। कम शब्दों में कहें तो पाकिस्तानी दूतावास पाकिस्तान और तालिबान के नेतृत्व के लिए एक डाकघर की भूमिका निभा रहा है।

तमाम बातों से परे, पाकिस्तानी मकसद काबुल हवाई अड्डे और शायद अफगान हवाई क्षेत्र पर भी प्रभावी नियंत्रण रखना है। यह बताया गया है कि वर्तमान में तालिबान का मित्र तुर्की, काबुल हवाई अड्डे का प्रबंधन कर रहा है, लेकिन यह पाकिस्तान द्वारा पर्याप्त नहीं माना जाता है, जो भाग रहे विदेशी नागरिकों की जांच करना चाहता है, क्योंकि इससे उसके लिए अफगानिस्तान में छोड़े गए भारतीय नागरिकों के बीच अन्य लोगों को परेशान करने की संभावना खुल जाएगी।

यह स्पष्ट नहीं है कि सीमा प्रबंधन से पाकिस्तान का क्या मतलब है - हमीद की काबुल यात्रा पर एजेंडा आइटम में से एक। अफगानिस्तान और पाकिस्तान की लगभग खुली सीमा है, जो दशकों से मौजूद है। लेकिन दोनों इस्लामिक भाइयों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद भी है।

तालिबान 1.0 ने अंग्रेजों द्वारा खींची गई डूरंड रेखा की सीमा को स्वीकार नहीं किया, जिसे सीमा के दोनों ओर पश्तूनों की आवाजाही में बाधा के रूप में देखा जाता है। तालिबान 2.0 अफगानों की राहत के लिए उसी पर अडिग है। तालिबान पश्तून हैं, हालांकि उन्हें पश्तून की आचार संहिता का पालन करने के लिए नहीं जाना जाता है।

मीडिया रिपोटरें से, यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान तालिबान को निर्देशित कर रहा है कि उसे विदेशी नागरिकों को निकालने के लिए लंबित अनुरोधों से कैसे निपटना चाहिए। यह लगभग तय है कि ये अनुरोध पश्चिम के देशों के नागरिकों और शायद भारतीयों से संबंधित हैं। चूंकि काबुल हवाई अड्डा पूरी तरह से चालू नहीं है, इसलिए निकासी पाकिस्तान के माध्यम से करनी होगी।

यह वही है, जो पाकिस्तान को अपने काबुल प्रॉक्सी को वैश्विक मान्यता हासिल करने के बड़े सपने देखने में सक्षम बना रहा है। काबुल में अराजकता के बीच फंसे विदेशी नागरिकों के प्रस्थान में एक महत्वपूर्ण कारक बनकर, इस्लामाबाद तालिबान 2.0 को वैधता देने के लिए प्रभावित देशों पर दबाव डाल सकता है।

सही मायने में तो पश्चिमी देश इसका स्वागत बिल्कुल नहीं करेंगे।


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